मधु प्रकाश लढ्ढा

राजसमंद (राव दिलीप सिंह)हिंदुस्तान में दशकों से धार्मिक, सांस्कृतिक और गंगा जमुनी तहजीब का इतिहास सुनते आ रहे हैं। सही मायने में देखें तो सर्वोच्च न्यायालय ने आज पूरी दुनिया को एक बार फिर से इस इतिहास के दर्शन करवाये हैं। डेढ़ अरब की आबादी वाले इस देश में उंगली से भी कम संख्या के लोगों को छोड़ दे तो सभी ने खुले दिलोदिमाग से अयोध्या फैसले का स्वागत किया है।
आज क्या फैसला आया है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि सभी ने इस फैसले का बड़े दिल के साथ स्वागत किया है।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के किस्से जो इतिहास बन गए थे आज एक बार फिर जीवंत हो उठे। विशेषतौर से उस युवा पीढ़ी के लिए जिसने सिर्फ और सिर्फ किस्से सुने थे। इस देश में हाकिम खां सुर और शहीद अशफ़ाक उल्ला को भी उतना ही याद किया जाता है जितना प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मी बाई और शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को।
अनेकता में एकता के गीत गाने वाले इस देश में
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सबने अपने अपने तरीके से स्वागत किया अपने अपने तरीके से व्याख्या की होगी। व्यक्तिगत रूप से मैं अगर विवेचना करूँ तो देखता हूँ कि दशकों से लंबित राम लला-बाबरी मस्जिद विवाद के इस प्रकरण का फैसला ऐतिहासिक है जिसमे कोई भी पक्ष नही हारा है, अदालत के फैसलों में अक्सर एक पक्ष जीतता है और एक पक्ष हारता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कोई भी पक्ष नहीं हारा, दोनों ही पक्ष जीते हैं। मेरी दृष्टि में कोई नहीं हारा, क्योंकि दोनों ही पक्षों ने कुछ न कुछ पाया ही है, खोया किसी ने कुछ भी नहीं है। हिन्दूओं को राम लला का मंदिर बनाने की इजाजत मिल गई है तो मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में इससे दुगुनी जमीन मिल गयी है जिसपर वो मस्जिद का निर्माण कर सकते हैं।

मुझे विश्वास था अदालत कोई न कोई ऐसा ही फैसला सुनाएगी जिस पर दोनों ही पक्ष खुशी से स्वीकार कर ले।
जो बीत गया उसे याद रखने की आवश्यकता नहीं है। आगे बढ़ने का समय है। राष्ट्र के निर्माण और विकास का समय है। दोनों ही पक्ष एक दूसरे की सहायता से आगे बढ़े।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा करेंगे तो पाएंगे कि चीन ओर पाकिस्तान जैसे देशों को छोड़कर बाकी सभी देश, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत ही करेंगे।
पाकिस्तान और चीन दोनों ही देश भारत के हितेषी कभी नहीं थे और न ही होंगे। इसलिए हमें सम्भल कर आगे बढ़ना चाहिए। धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन अशांति को आमंत्रित कर सकता है और पाकिस्तान जैसे देश भरपूर कोशिश करेंगे कि सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से देश में अशांति का वातावरण बने और दंगे फसाद हो। भारत के अंदरूनी मामलों में पाकिस्तान ने हमेशा ही टांग अड़ाने की कोशिश की है, चाहे धारा 370 हो या अन्य कोई मसला। पाक की हमेशा से यही नियत रही है कि भारत में कभी भी अमन चैन नहीं रहे। ऐसी परिस्थितियां पैदा नहीं हो, इसके लिए हमें मिलजुलकर शांति से आगे बढ़ना होगा। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम एक दूसरे का सम्मान उसी तरह करें जिस तरह दीपावली में छिपे अली का और रमजान में छिपे राम शब्द का करते हैं।
में रहूं या ना रहूं यह देश रहना चाहिए…।।