नई दिल्ली,(दिनेश शर्मा”अधिकारी”)। गृह मंत्रालय से प्राप्त सूचना के अनुसार असम में उग्रवादी हिंसा के पूरी तरह खत्म होने और शांति का माहौल बनने की उम्मीद जग गई है। राज्य में कोविड-19 (कोरोना वायरस) महामारी के बिगड़ते हालातों के चलते प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असोम (स्वतंत्र) ने शनिवार को तीन महीने के लिए एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा करने से असम में शांति की उम्मीद जगी है। उल्फा (आई) की इस घोषणा के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि इससे राज्य में शांति के लिए अनुकूल माहौल बनेगा।

उग्रवादी समूह के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ ने मीडिया संगठनों को भेजे ईमेल में कहा कि वह तत्काल प्रभाव से संघर्ष विराम लागू कर रहे हैं और उनका संगठन इन तीन महीनों के दौरान किसी घटना को अंजाम नहीं देंगे। बरुआ ने कहा, हमने अगले तीन महीने के लिए अपने सभी अभियानों को बंद रखने का निर्णय लिया है, क्योंकि लोग महामारी के चलते बेहद कठिनाई और दुख का सामना कर रहे हैं। साथ ही बरुआ ने शुक्रवार को तिनग्राई में हुए बम ग्रेनेड धमाके में अपने संगठन का हाथ नहीं होने की भी बात कही। इस घटना में एक आदमी की मौत हो गई थी, जबकि दो अन्य जख्मी हुए थे। उसने इसे सुरक्षा बलों की तरफ से संगठन की छवि खराब करने का प्रयास बताया।

बरुआ की इस घोषणा के बारे में मीडिया ने तिनसुकिया में मौजूद मुख्यमंत्री सरमा को बताया तो उन्होंने कहा, शांति के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और विद्रोही समूह, दोनों की ही है। सरकार इस दिशा में सक्रिय कदम उठाएगी। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जब राज्य कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में व्यस्त है, तो वह राज्य में शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए हर एक से सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं।

उल्फा (आई) के कमांडर परेश बरुआ ने अपनी ईमेल में ओएनजीसी के उस कर्मचारी के बारे में कोई जिक्र नहीं किया, जिसका उनके संगठन ने दो अन्य कर्मचारियों के साथ 21 अप्रैल को अपहरण किया था। असम के शिवसागर जिले में लकवा ऑयलफील्ड से अपहरण किए गए इन तीन कर्मचारियों में से दो को बाद में उल्फा (आई) ने छोड़ दिया था, लेकिन एक अन्य की कोई खबर अब तक नहीं मिली है।