परिवारवाद से नहीं ,आम कार्यकर्ता है जेपी नड्डा
आखिकार जेपी नड्डा भाजपा के आगामी अध्यक्ष बन ही गए | वे भाजपा के 11 वें अध्यक्ष है जो अपने बलबूते व बिना किसी राजनैतिक परिवार की विरासत बन अध्यक्ष बने है | यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही है कि जहां भाजपा यह प्रदर्शित कर रही है कि पार्टी का एक आम कार्यकर्ता भी अध्यक्ष पद पर आसीन हो सकता है वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी परिवारवाद से इस कदर चिपकी हुई है कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद बेटे राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभाली और उनके पद छोड़ने के बाद फिर से मां ने अंतरिम अध्यक्ष बनना जरूरी समझा। आखिर इसे लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के अनुरूप कैसे कहा जा सकता है? मुश्किल यह है कि परिवारवाद से अन्य अनेक दल भी जकड़े हुए है। क्षेत्रीय दल तो एक तरह से परिवारवाद का पर्याय ही बन गए है। जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने से यह आरोप लगाने वालों को कुछ नया सोचना होगा कि इस सरकार और पार्टी में सब कुछ नरेंद्र मोदी और अमित शाह की इच्छा के अनुरूप ही होता है। इसी के साथ उन्हें इस पर भी गौर करना होगा कि बीते दो दशक में जहां भाजपा ने करीब दस अध्यक्ष देखे वहीं कांग्रेस सोनिया गांधी और राहुल गांधी के अलावा अन्य किसी को इस लायक नहीं समझ सकी कि उसे पार्टी की कमान सौंपी जा सके। हैरानी यह है कि कांग्रेस गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को अंतरिम अध्यक्ष बनाने पर भी विचार नहीं कर सकी।

इस पर आश्चर्य नहीं कि जेपी नड्डा को पार्टी की कमान सौंपते समय गृह मंत्री अमित शाह ने यह रेखांकित किया कि हम वंशवाद के आधार पर चलने वाले दल नहीं है। इसी के साथ उन्होंने यह अपेक्षा व्यक्त की कि नड्डा जी पार्टी को नए मुकाम पर ले जाएंगे।वास्तव में जेपी नड्डा के सामने वैसी राजनीतिक सफलता हासिल करना एक बड़ी चुनौती है जैसी अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष के रूप में हासिल की और पार्टी का व्यापक विस्तार कर उसे एक मजबूत दल के रूप में स्थापित किया। जेपी नड्डा को विस्तार के इस सिलसिले को कायम रखना होगा और यह तभी कायम हो सकता है कि जब आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा उल्लेखनीय सफलता हासिल करेगी।

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