दैनिक भास्कर समाचारपत्र के प्रमुख संवाददाता और हेल्थ बीट कवर करते रहे 37 वर्षीय तरूण सिसौदिया ने दिल्ली एम्स के ट्रॉमा सेंटर की चौथी मंजिल से कूदकर जान दे दी. पिछले दिनों उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजेटिव आयी थी, उसके बाद से वो अस्पताल में भर्ती थे।

रिपोर्ट के मुताबिक वो पिछले कई दिनों से तनावग्रस्त थे और मीडिया में लगातार जा रही नौकरियों की ख़बर को लेकर परेशान भी. अपनी इस परेशानी को उन्होंने अपने दोस्तों से भी साझा किया लेकिन सच ये है कि वो अब इस दुनिया में नहीं हैं।

कोरोना संक्रमण से जुड़ी तरूण की रिपोर्ट से गुज़रें तो वो बहुत साफ-साफ शब्दों में लिखते हैं- कोरोना हो जाने पर घबराना नहीं चाहिए, हिम्मत से काम लेना चाहिए. लेकिन वो ख़ुद इस वाक्य के अनुसार जी नहीं पाए. अपनी पत्नी, एक दो साल और दूसरी कुछ महीने की बेटी और भरा-पूरा परिवार छोड़कर चले गए।

दोस्तों ! तरूण अकेले ऐसे पत्रकार नहीं रहे हैं जो अवसाद और तनाव के शिकार होकर ऐसा फैसला लिया. मीडिया संस्थानों में सैकड़ों ऐसे मीडियाकर्मी हैं जो नौकरी जाने की आशंका, पारिवारिक जिम्मेदारी और दबाव, निजी जीवन ज़िंदगी की उलझनों के बीच जीते हुए आपके बीच देश और दुनिया की ख़बरों के साथ नज़र आते हैं. स्क्रीन और अख़बार की चमक और चंद चहकते चेहरों के भीतर हताशा और अवसाद की एक अंधेरी दुनिया है. इस दुनिया में किसी को न तो कोई सुन रहा होता है और न ही समझने की कोशिश कर रहा होता है. सब अपने-अपने मोर्चे पर अकेला है।

कॉर्पोरेट मीडिया अपनी चमक बरक़रार रखने के लिए मीडियाकर्मियों की आंखों की चमक कैसे लील जा रहा है, इस मैं रोज़ देख रहा हूं. एक हवा-हवाई जीवन शैली और झूठी शान के बीच मीडियाकर्मियों की जिंदगी एकदम से जकड़ जा रही है।

मैं आपसे बस इतना कहूंगा- अपने पत्रकार दोस्तों से ज़रूरी नहीं कि सुबह-शाम बात करते रहें, उन्हें बस ये महसूस कराएं कि कोई तुम्हारे साथ है, हमेशा. हर उस मौके पर जहां तुम्हें लगे कि कोई होना चाहिए. इसके लिए बोल-बोलकर औपचारिकता नहीं निभानी होती है, बस उसका भरोसा हासिल करना होता है

तस्वीर साभार:समाचार4मीडिया डॉट कॉम
(विनीत कुमार)