नम आंखों से श्रद्धालुओं ने दी गुरूजनो को बाड़मेर नगर से विदाई।

बाड़मेर, 17 नवम्बर। खरतरगच्छ जैन संघ की राजधानी बाड़मेरनगर में परम पूज्य गणाधीश पन्यास प्रवर श्री विनयकुशलमुनि जी म.सा. आदि ठाणा 4 व परम पूज्या साध्वी श्री विरतियशाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा -2 का आराधना भवन में भव्य चातुर्मास की पूर्णाहुति पर रविवार को विदाई व कृतज्ञता ज्ञापन समारोह का आयोजन किया।
खरतरगच्छ संघ चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाशचंद संखलेचा व मीडिया प्रभारी चंद्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि जैन न्याति नोहरा में आयोजित विदाई समारोह में उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए विनयकुशलमुनिजी ने कहा कि जिनवाणी आत्मा को स्पर्श हो जाती है तो वो आत्मा उध्र्वगामी बन जाती है और जिस आत्मा को जिनवाणी स्पर्श नही कर पाई वो आत्मा बाइपास हो जाती है। आराधना उसे ही कहते है जो जीवन को परिवर्तन करती है। हमारे चातुर्मास की सार्थकता तब है जब आपके जीवन में जिनवाणी के माध्यम से परिवर्तन आया हो। उन्होने कहा कि बाड़मेर की धर्मप्रेमी जनता का प्रेम, सहकार, वैयावच्च हमें सदैव याद रहेगा। हम कहीं पर भी जाये, कहीं पर भी रहे लेकिन बाड़मेर हमेशा हमारे ह्दय पटल पर रहेगा। सद्गुरु शरीर, मन व आत्मा को संभालते है। आपके जीवन में परिवर्तन बना रहे यही शुभकामनाएं।

विरागमुनिजी महाराज ने उपस्थित श्रद्वालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि अनंत पुण्य से हमें ये जिनशासन मिला। आराधना करने का अवसर हमारे को मिला फिर भी विदाई के समय एक ही बात कहना चाहुंगा कि आराधना कर सको इस जिनशासन की बहुत अच्छी बात है, जितना अन्दर सत्व है आराधना करने में लगाना, आराधना नही कर सको तो कोई बात नही किन्तु इस शासन को हमारे द्वारा किसी प्रकार का नुक्शान नही हो। इस शासन की हमारे द्वारा कोई क्षति नही हो। ऐसा कोई कार्य हम नही करेें जिसके कारण जिनशासन के अन्दर ओर छेद हो जावे। पहले से ही यह परमात्मा का शासन छेद-छेद हो गया है, तार-तार हो गया है। ऐसी छलनी बन गई है जिसमें कुछ नही ठहर सकता लेकिन हम उसमें एक ओर छेद करने वाले नही बन जावे। इस शासन के खिलाफ अगर शरीर में खून भी बह रहा है, श्वांसोश्वास चल रही है, ह्दय धड़क रहा है तो सभी में उपकार एकमात्र इस जिनशासन का है। यह जिनशासन हमारे पास ऐसे ही नही पहुंचा है।

अनके आत्माओं ने, अनेक भूतकाल के महापुरूषों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है, खून का पानी किया है तब कही जाकर यह जिनशासन इस रूप में हमारे पास पहुंचा है। इसको आगे बढ़ाने की जवाबदारी आज आपकी ओर हमारी, हम सबकी है। इस शासन की ज्योत में तेल डालने का काम करना किंतु पानी या प्रतिकुल हवा करने का काम कभी मत करना नही तो भवान्तर में रोगीष्ठ काया, दुर्भिक्ष के स्थान पर जन्म, दरिद्री का यह जीवन ओर पापमय आचारण वाले जीवन से कोई नही बचा पायेगा। इस शासन का दुरूपयोग किसी हालत में नही करना। यह जिनशासन चिंतामणि रत्न से भी दुर्लभ है, कल्पवृक्ष से भी ज्यादा देने वाला है। चिंतामणि रत्न ओर कल्पवृक्ष तो मात्र भौतिक इच्छाएं पूरी करेगें, अल्पकालीन इच्छाएं पूरी करेगें ओर मृत्यु के साथ सब समाप्त किंतु ये जिनशासन ऐसा दुर्लभ चिंतामणि रत्न ओर अद्भुत कल्पवृक्ष है कि अनंत भवों की इच्छाओं समाप्त करने का सामथ्र्य इस जिनशासन में है। जिनशासन में व्यक्ति राग कही नही है, यहां तो गुणराग है। व्यक्ति राग हमेशा डूबोने वाला बनेगा और वेशराग व गुण राग तिराने वाला बनेगा।

छाजेड़ ने बताया कि विदाई समारोह में संघ के आदिनाथ महिला मंडल, खरतरगच्छ महिला परिषद, डा. बंशीधर तातेड़, एडवोकेट जेठमल जैन, रिखबदास मालू, डाॅ. रणजीतमल जैन, ध्रुव जैन, हर्षा कोटड़िया, ऊषा संखलेचा, चंद्रप्रकाश बी. छाजेड़, सुमित मेहता, सोनल डूंगरवाल, सीमा दफ्तरी सहित अनेक श्रावक श्राविकाओं ने अपने भाव प्रकट कर अश्रुपूरित आंखों से भावभीनी विदाई दी और कृतज्ञता ज्ञापित की। डा. बंशीधर तातेड़ संबोधित करते हुए कहा कि भौतिक गुरू रोजी-रोटी कमाने की कला सिखाते है और आध्यात्मिक गुरू आत्मा से परमात्मा बनने की कला सिखाते है। खरतरगच्छ संघ द्वारा गणाधीश प्रवर को काम्बली अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन सोहनलाल संखलेचा ‘अरटी’ ने किया। दोपहर को गुरूजनों का जैन आराधना भवन से नाकोड़ा तीर्थ की ओर विहार हुआ। प्रथम पड़ाव वेस्टराज ग्वारगम फैक्ट्री में रहा।