आसाम में NRC के मुद्दे पर लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ चुके मृणाल तालुकदार ने एनआरसी पर चर्चा करते हुए NRC लागु करने की पूरी कहानी साझा की। उन्होने बताया कि एनआरसी की लड़ाई शुरु हुई तब आसाम की जनसंख्या 90 लाख थी, लेकिन जब यह लागु हुआ तब तक आसाम की जनसंख्या 3 करोड़ 30 लाख हो गई थी। उन्होंने पूर्व आईपीएस अधिकारी और वरिष्ठ साहित्यकार विभुति नारायण राय से बातचीत करते हुए बताया कि कैसे देश से दशकीय जनसंख्या वृद्धिदर से लगभग 14 फ़ीसदी अधिक वृद्धिदर होने के चलते NRC का मुद्दा सामने आया और 1971 में प्रदेश के सभी राजनीतिक औऱ सामाजिक संगठनों ने एक स्वर में एनआऱसी करने की मांग की। उन्होंने बताया कि आसाम में एक तिहाई जनसंख्या मुसलमानों की थी और वो सभी भी एनआरसी के पक्ष में थे। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। 2005 से लेकर 2013 तक यह तय करने में समय लगा कि एनआरसी कैसे होगी। वहीं 2009 में सुप्रीम कोर्ट में मामला आने के बाद 2012 से इस मामले की लगातार सुनवाई की गई।


जिसके चलते 2013 से इस मुहिम पर कार्य किया गया तालुकदार ने बताया कि प्रदेश सरकार के लगभग 55 हज़ार कार्मिकों ने इस काम को अंजाम दिया और केवल एक राज्य में एनआरसी के लिए लगभग 1500 करोड़ रूपये खर्च हुए लेकिन हमें इसके बाद अंदाज़ा हो गया कि यह पूरी प्रक्रिया सफल नहीं होगी। क्योंकि जिन लोगों को एनआरसी के ज़रिए बाहर निकाला जाएगा उन्हें आख़िर कहां भेजेंगे ? क्योंकि ना तो पाकिस्तान और ना ही बांग्लादेश के साथ हमारा ऐसा कोई समझौता नहीं है। ऐसे में एनआऱसी का आख़िरी लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। तालुकदार ने इस बात पर जोर दिया कि पूरे देश में NRC लागु करना असंभव सा प्रतीत होता है।