“कमलनाथ की सरकार गई”, “भाजपा की सरकार आई” ऐसे जुमलों का क्या कोई अर्थ है ? शायद नहीं | इस तरह से परिभाषित सरकारें आएँगी और चली जाएँगी | “मध्यप्रदेश” कई सालों से “अपनी सरकार” की बाट जोह रहा है, जो मध्यप्रदेश की सरकार हो और मध्यप्रदेश के लिए काम करे | अभी तो जो भी सरकार आती है वो पिछली सरकार को कोसती नजर आती है | आज ३० मिनट अपनी उपलब्धि बखान कर एक सरकार चली गई| एक- दो दिन में नई सरकार आ जाएगी | आज राज्य की सामाजिक आर्थिक विकास की समीक्षा करने पर स्थिति स्पष्ट है कि प्रदेश मानव विकास के मानकों पर देश एवं समान परिस्थितियों वाले राज्यों की तुलना में पिछड़ रहा है। गरीबी उन्मूलन आकड़े और स्वास्थ्य सूचकांकों को राष्ट्रीय स्तर के समकक्ष लाना एक प्रमुख चुनौती है। सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षा और पोषण के क्षेत्र मे भी राज्य की स्थिति बेहतर नहीं है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय देश एवं समान परिस्थिति वाले राज्यों की तुलना में कम है। मध्यप्रदेश को कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है।

बीते वित्त वर्ष २०१८-१९ के प्रचलित मूल्य पर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय ९० हजार नौ सौ ९८ रूपए थी, जो देश की प्रति व्यक्ति आय एक लाख २६ हजार छह सौ ९९ रूपयों का मात्र ७१.८ प्रतिशत है। देश के प्रमुख राज्यों में बिहार, झारखंड, ओड़िसा और उत्तरप्रदेश को छोड़कर शेष राज्यों की प्रति व्यक्ति आय मध्यप्रदेश से अधिक है।कोई भी सरकार इस दिशा में काम नहीं करती | उसका अधिकांश समय अपने प्रतिद्वन्दी की आलोचना में जाता है |
एक अन्यसर्वेक्षण के मुताबिक देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात २१.९२ प्रतिशत है और मध्यप्रदेश में यह ३१.६५ प्रतिशत है। देश में उत्तरप्रदेश और बिहार राज्यों को छोड़कर मध्यप्रदेश में सर्वाधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे है, जिनकी संख्या दो करोड़ ३४ लाख से अधिक है।

मध्यप्रदेश में केवल ३० प्रतिशत लोग खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करते हैं।राज्य में सिर्फ २३ प्रतिशत घरों में नल द्वारा पानी आता है।कृषि मजदूरी की दर २१० रूपए देश के अन्य राज्यों की तुलना में न्यूनतम है।मध्यप्रदेश में.मनरेगा में ८.२५ लाख परिवार दर्ज हैं, जो व्यापक गरीबी का सूचक है।
मध्यप्रदेश में प्रति हजार जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर ४७ है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर ३३ प्रति हजार है।मध्यप्रदेश में मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख प्रसव पर१७३ है, जो राष्ट्रीय दर १३० और अधिकतर राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर ७७ (वर्ष२०११ का आंकड़ा ) है, जो कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में असम को छोड़कर सर्वाधिक है।मध्यप्रदेश में ५२.४ प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं।
मध्यप्रदेश में गरीबी और स्वास्थ्य सेवाओं को राष्ट्रीय सूचकांक के बराबर लाना अब भी बड़ी चुनौती है। गरीबी के मामले में मप्र अभी भी देश २९ राज्यों में २७ वें स्थान पर है। शिक्षा सूचकांक में देश के २९ राज्यों में प्रदेश का स्थान २३ वां है। २०१८ में भारत सरकार द्वारा जारी कृषि गणना में मध्यप्रदेश में २०११ से २०१५ के बीच किसानों की संख्या में ११.३१ लाख की वृद्धि हुई है, जबकि खेती का रकबा १.६६ लाख हैक्टेयर कम हुआ है। यहां सीमांत किसानों की औसत जोत ०.४९ हैक्टेयर है।पोषण में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण २०१५-१६ के अनुसार प्रदेश में ५ वर्ष से कम आयु के४२ प्रतिशत बच्चे अविकसित, २५.८ प्रतिशत कमजोर एवं ४७ प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं।

ये आंकड़े नहीं आईने हैं | अपने को सरकार कहकर बिदा लेने वालों और सत्ता की मसनद पर फिर से काबिज होने वालों को यह सब क्यों नहीं दिखता क्योंकि वे किसी दल या व्यक्ति की सरकार होती हैं| “मध्यप्रदेश” की नहीं, यहाँ शासक आते हैं उनकी रूचि अपनी कालर सफेद बताने में और दूसरे की कालर गंदी बताने में होती है | आधे से ज्यादा समय इसी में बीतता है, बाकी चुनाव चिन्तन और अर्थ संग्रह में | इसकी-उसकी सरकार कहलाने से बचिए, , “मध्यप्रदेश की सरकार” बनिए |