बीकानेर /महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर के इतिहास विभाग द्वारा आज एक दिवसीय International Symposium हुई। जिसका विषय “Rediscovering India’s Rich Cultural Heritage” था। बूडापेस्ट, हंगरी के भक्ति वेदान्त कॉलेज, की एसोसिएट प्रो. और विभागाध्यक्ष डॉ. रीटा जैनी ने दिया । डॉ. रीटा जैनी का भारत की संस्कृति से गहरा लगाव है तथा राजस्थान में उत्खनित स्थल यथा गिलूण्ड व बालाथल में भी आपकी सक्रिय भूमिका रही है। डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा (कार्यक्रम अध्यक्ष), प्रो. एस.के. अग्रवाल एवं डॉ. चन्द्रशेखर कच्छावा (विशिष्ट अतिथि) रहे। कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती पूजन एवं दीप प्रज्वलन से की गई। अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ से किया गया। स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. अम्बिका ढाका ने मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया तथा कार्यक्रम के मुख्य विषय पर प्रकाश डालते हुए भारतीय संस्कृति और सभ्यता की विविधता में एकता को रेखांकित किया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. रीटा जैनी ने इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए अपने व्याख्यान में हंगरी के विभिन्न पुरातत्वविदों व विद्वानों से परिचित करवाया।

जिन्होंने न सिर्फ भारत के विविध क्षेत्रों में अपितु अनेक पुरातात्विक स्थलों की खुदाई की अपितु भारतीय संस्कृति एवं विरासत को हंगरी से जोड़ने का प्रयत्न भी किया। इन हंगरी के विद्वानों में मुख्यतः सर ऑरेल स्टीन का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने भारत के न सिर्फ अन्य क्षेत्रों का गहन पुरातात्विक अध्ययन किया अपितु भारतीय संस्कृति पर कई पुस्तके भी लिखी। उन्होंने सरस्वती नदी पर गहन शोध किया। इस कार्य हेतु इन्होंने बीकानेर को अपनी कार्यस्थली बतलाया। विशिष्ट अतिथि प्रो. एस.के. अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में अतिथि एवं विशिष्ट वक्ता का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इतिहास को नये सिरे से शोध करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में सांस्कृतिक कपट संधि का एक दौर चल पड़ा है जिससे सावधान व सचेत रहने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि डॉ. कच्छावा ने संस्कृति एवं सभ्यता पर विचार व्यक्त करते हुए वाकणकर जी के सरस्वती उद्गम खोज की चर्चा की तथा भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए प्रमुख चार शक्तियों का उल्लेख किया।

डॉ. कच्छावा ने भारतीय संस्कृति का उल्लेख करते हुए आध्यात्मिकता, शक्तिशाली बौद्धिकता, संस्कृति में समन्वय व निरन्तरता का पुट आदि पर बल दिया। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने हंगरी से अनेक विद्वान भारत आये एवं उनकी पुरातात्विक अध्ययन को उल्लेखित किया। डॉ. गिरिजा शंकर ने इस प्रकार के आयोजन को सार्थक बताते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. ढाका को साधुवाद दिया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. जैनी, डॉ. शर्मा, डॉ. कच्छावा का स्मृति चिह्न प्रदान कर अभिनन्दन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. उमा दुबे ने किया। कार्यक्रम में अन्य विभागों से प्रो. अनिल कुमार छंगाणी, प्रो. राजाराम चोयल, डॉ. अनिल दुलार, डॉ. फौजा सिंह, डॉ. उमेश शर्मा, डॉ. गौतम कुमार मेघवंशी, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. प्रगति सोबती, डॉ. लीला कौर एवं सिस्टर निवेदिता कन्या महाविद्यालय से डॉ. राकेश किराडू़, विधि विभाग से डॉ. कप्तान चन्द, डॉ. दुर्गा तथा व्याख्याता सुश्री नेहा पुरोहित तथा इतिहास विभाग के अतिथि व्याख्याता डॉ. राजेन्द्र कुमार, डॉ. मुकेश हर्ष, श्रीमती सुनिता स्वामी, श्री सुधीर छिंपा, श्री पवन रांकावत सभी छात्रों ने जिज्ञासा एवं उत्साह से कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. बलदेव व्यास ने किया। कार्यक्रम की संयोजक तथा विभागाध्यक्ष डॉ. अम्बिका ढाका रही।