दिपावली नजदीक फिर भी बाजारों से रौनक गायब, मंदी के इस दौर में महंगाई व अतिवृष्टि से प्रभावित हुई ग्राहकी, दुकानदार बैठे हैं ठाले !

✍🏼तिलक माथुर
दिपावली नज़दीक है लेकिन बावजूद इसके बाज़ारों की रौनक नहीं है। ग्राहकी के अभाव में अपनी दुकानदार अपनी सजी हुई दुकानों को निहारने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हर साल अब तक तो बाजार में दिपावली की खरीददारी शुरू हो जाया करती थी लेकिन इस बार मंदी के इस दौर की मार सभी को झेलनी पड़ रही है। वहीं महंगाई का आलम ये है कि आमजन चाहकर भी खरीददारी की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। दिपावली के 10 दिन शेष बचे हैं लेकिन बाजारों से रौनक गायब है, छोटे-मोटे सभी दुकानदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, अगर यही हाल रहा तो दिपावली की खरीददारी पिछले वर्षों से घट कर 50-60 प्रतिशत रह जाएगी ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। व्यापारियों का कहना है कि इस साल धंधा मंदा है और दिवाली तक भी बाजार के सुधरने के आसार नहीं दिखते, पिछले साल के मुक़ाबले बिजनेस 40-50% कम है और मूल वजह आर्थिक मंदी है। रेडीमेड कपड़े हो या सोने चांदी के आभूषण हर चीज के भाव आसमान छू रहे हैं।

इस बार चारों ओर अतिवृष्टि ने भी महंगाई के ग्राफ को और बढ़ा दिया है। मध्यम वर्ग व गरीब तबके के लोग इस बार दिपावली की खरीददारी में बिल्कुल रुचि नहीं दिखा रहे। व्यापारी अपनी दुकानों को सजाए बैठे हैं, लेकिन ग्राहकों अता-पता ही नहीं। एक ओर जहां बाजारों में दशहरे से इलेक्ट्रॉनिक, दुपहिया वाहनों, कपड़े की दुकानों पर ग्राहकी शुरू हो जाया करती थी लेकिन इस बार दशहरे को बीते भी दस दिन होने आये मगर इन दुकानों पर ग्राहकों की कोई रौनक नजर नहीं आ रही। वाहन बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि इस बार दशहरे पर 20 प्रतिशत भी ग्राहकी नहीं हुई वहीं सोने-चांदी के आभूषण विक्रेताओं का कहना है कि इस बार गहनों की डिज़ाइन बदलनी पड़ी है, क्योंकि सोने चांदी के भावों में महंगाई के चलते लोगों को हल्के गहने चाहिए।

और तो ओर बाजारों से दिवाली के उत्सव और रंग भी गायब हैं। जो बाजार दिवाली नजदीक आते ही गुलजार हो जाते थे, वे सुनसान दिख रहे हैं। व्यापारियों का मानना है कि कमजोर लिक्विडिटी (कमजोर तरलता/नकदी की कमी) के चलते बाजार सूने पड़े हैं। कमजोर लिक्विडिटी के चलते ग्राहक बाजार से दूर हैं। अगर आपकी जेब में पैसे नहीं हैं तो आप खरीदारी कैसे करेंगे ? मंदी ने बाजार के हर हिस्से को बुरी तरह प्रभावित किया है। कुछ व्यापारियों का कहना है कि लिक्विडिटी के अलावा दूसरा सबसे बड़ा कारण है बढ़ता ऑनलाइन बाजार है। ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल न सिर्फ पारंपरिक दुकानों के मुनाफे खा रहे हैं, बल्कि बेरोजगारी भी बढ़ा रहे हैं। दुकानदार बिक्री के लिए स्टॉफ़ रखते हैं वहीं दिपावली पर अधिक बिक्री की वजह से स्टॉक रखने के लिए लोन उठाते हैं, लेकिन ऑनलाइन स्टोर कम स्टॉफ से काम चला लेते हैं, इससे बेरोजगारी भी बढ़ती है। लोग जरूरत के मुताबिक खरीदारी करते हैं, वह भी ऑनलाइन स्टोर से हो जाती है। इसके चलते छोटे-बड़े दुकानदारों पर मार पड़ रही है। कुल मिलाकर इस मंदी के दौर में महंगाई व अतिवृष्टि की वजह से बाजारों की रौनक गायब है। लगता नहीं इस बार दिपावली की रौनक हर घर परिवार को वो खुशियां दे पाएगी जो परम्परागत रूप से हर वर्ष देती आईं है !