कश्मीर के कुछ नेताओं को उनके अपने बंगलों में रखा जा रहा है, इंटरनेट की सुविधा कुछ अन्य जिलों में बढ़ाई जा रही है और सबसे बड़ी बात यह कि 36 केंद्रीय मंत्रियों को जम्मू-कश्मीर के लगभग 60 स्थानों पर भेजा जा रहा है ताकि वे वहां जाकर आम लोगों को समझाएं। उनसे संवाद कायम करें। यह अच्छी बात है। मैंने दो-तीन दिन पहले लिखा था कि अब कश्मीर पर से सभी तरह के प्रतिबंध हटाने का सही वक्त है और सबसे जरुरी यह है कि कश्मीरी नेताओं से संवाद कायम किया जाए। मेरी बात को सरकार ने समझा तो सही लेकिन जैसा कि वह अक्सर करती है, वह सही काम को गलत ढंग से करने लगती है। नेताओं की बजाय आम जनता से ये मंत्री लोग संवाद कैसे कायम करेंगे ? इनकी सभाओं और गोष्ठियों में कितने आम लोग आएंगे ? इन मंत्रियों में कितने ऐसे हैं, जिनके पास तर्क करने, तथ्य पेश करने, भाषण करने और समझाने-बुझाने की क्षमता है ? मान लें कि किसी तरह थोड़े-बहुत लोग जुटा भी लिये गए तो जब कश्मीरी नेता उनसे मुखाबित होंगे तो वे एक ही झटके में पोंछा लगा देंगे। मैंने कहा था कि गैर-भाजपाई और गैर-सरकारी लोगों का कश्मीरी नेताओं से संपर्क और संवाद करवाया जाए।

अफसोस है कि मोदी और भाजपा के पास ऐसे लोगों का टोटा है। मेरी राय तो यह है कि देश के विपक्षी नेताओं को भी कश्मीर भेजा जाए। उनकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह करना और उन्हें पाकिस्तानी एजेंट कहना बिल्कुल अनुचित है। हमारे मंत्रियों के मुकाबले उनकी बात कश्मीरी जनता ज्यादा ध्यान देकर सुनेगी। यही बात विदेश नीति पर भी लागू होती है। हमारे विदेश मंत्री जयशंकर विदेशी नेताओं को भारत सरकार का दृष्टिकोण काफी अच्छी तरह से बताते हैं लेकिन यही काम विदेश नीति के कुछ विशेषज्ञों से करवाया जाए तो उनकी स्वीकृति कहीं बेहतर होगी। ऐसे ही लोगों को चीन और मलेशिया- जैसे देशों में भेजा जा सकता है। पाकिस्तान से भी इसी शैली में सपंर्क जोड़ा जाए तो गलत नहीं होगा।