राकेश दूबे..
देश बड़े भ्रम से गुजर रहा है | साफ़ बात न तो प्रतिपक्षकर रहा है और न सरकार | सरकार जिसे निरापद कहती है,प्रतिपक्ष उसे घातक करार दे रहा है | नागरिकता संशोधन कानून पर विवाद जारी है, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बातें आपस में मेल नहीं खा रही है | सरकार और उसके समर्थक नागरिकता कानून के पक्ष में रैली कर रहे हैं, तो प्रतिपक्ष विरोध में | अब कैबिनेट ने उससे आगे एक कदम और बड़ा दिया है | राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का निर्माण | पिछले दिनों आन्दोलन के दौरान हुई हिंसा को लेकर राज्य सरकारें खेमो में बंट गई है | भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को मेरठ जाने से रोक दिया गया तो इंदौर में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में निकलने वाली रैली को रोक दिया गया | ममता बनर्जी अपना अलग राग अलाप रही हैं, वे भाजपा के खिलाफ सारे प्रतिपक्ष को एकजुट होने का आव्हान कर रही है |
सबसे पहले राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर [एनपीआर]| कहते हैं यह देश के सामान्य नागरिकों की सूची है| २०१० से सरकार ने देश के नागरिकों के पहचान का डेटाबेस जमा करने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की शुरुआत की है |गृह मंत्रालय के अनुसार सामान्य नागरिक वो है जो देश के किसी भी हिस्से में कम से कम ६ महीने से स्थायी निवासी हो या किसी जगह पर उसका अगले ६ महीने रहने की योजना हो|गृह मंत्रालय के मुताबिक एनपीआर को सभी के लिए अनिवार्य किया जाएगा| इसमें पंचायत, ज़िला, राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर गणना की जा रही है|
इसमें एकत्र होने वाले डेमोग्राफिक डेटा में १५ श्रेणियां हैं जिनमें नाम से लेकर जन्म स्थान, शैक्षिक योग्यता और व्यवसाय आदि शामिल हैं|इसके लिए डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक दोनों तरह का डेटा एकत्र किए जाएंगे|बायोमेट्रिक डेटा में आधार को शामिल किया गया है जिससे जुड़ी हर जानकारी सरकार के पास पहुंचेगी|अभी विवाद भी इसी बात पर है कि इससे आधार का डेटा सुरक्षित नहीं रह जाएगा|
अब राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एन आर सी | इससे पता चलेगा कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं|इसका थोडा इतिहास- पूर्वोत्तर राज्य असम में बांग्लादेश से आने वाले अवैध लोगों के मुद्दे पर वहां कई हिंसक आंदोलन हुए हैं|१९८५ में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया जिसके तहत तय हुआ था कि २५ मार्च १९७१ के पहले जो बांग्लादेशी असम में आए हैं केवल उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी| लेकिन लंबे वक्त तक इसे ठंडे बस्ते में रखा गया| फिर २००५ में तत्कालीन सरकार ने इस पर काम शुरू किया|२०१५ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस काम में तेज़ी आई और एनआरसी को तैयार किया गया |स्पष्ट बात है मूल रूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया है|
इसे लेकर सड़क से संसद तक हड़कंप मचा हुआ है | सारे कागज सरकार और प्रतिपक्ष दोनों के पास है पर दोनों उसकी व्याख्या अपनी तरह कर रहे हैं | नागरिक भ्रमित है | इस भ्रम का राजनीतिक उपयोग चुनाव को दृष्टिगत रखकर करने में कोई नहीं चूक रहा है | देश को बख्शिए, देश सिर्फ नेताओं का नहीं है और न ही उन्हें हमे भ्रमित करने का अधिकार | पक्ष –प्रतिपक्ष दोनों से अपील अपनी राजनीति के लिए कम से कम देश को भ्रम में मत डालिए |