जयपुर: 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से हनुमान बेनीवाल (हनुमान बेनीवाल) का सम्मान में तेजी से ग्राफ बढ़ा है। वज्र कई हो सकता है, लेकिन पीएम मोदी (पीएम नरेंद्र मोदी) के साथ बेनीवाल की तस्वीरों ने खूब सुर्खियां बटाई थी। पहली बार जब मोदी ने सभी सांसदों से मुलाकात की। तो उसमें बेनीवाल से मुलाकात के दौरान बेनीवाल की पीठ थपथपाते पीएम के चित्र को बेनीवाल समर्थकों ने भी बहुत सराहा था। सिर्फ समर्थक ही नहीं, पीएम के साथ हर छोटी मुलाकात को बेनीवाल बढ़ा चढ़कर दिखाते थे। यहां तक कि उनके समर्थक शासन (राजस्थान) में हनुमान बेनीवाल को पीएम मोदी के ‘हनुमान’ की संज्ञा देते हैं।

लेकिन अब कृषि कानूनों (कृषि अधिनियम 2020) के बारे में बेनीवाल केंद्र सरकार से मुखर नजर आ रहे हैं। तो वास्तव में बेनीवाल का बीजेपी से मोहभंग हो गया है। या राजनीतिक मतभेद के लिए बेनीवाल केवल कृषि कानूनों पर बयानबाजी कर रहे हैं। इसलिए उनका मूल शेटर किसान नाराज न हो जाओगे

ऐसे में ये समझना बेहद जरूरी है कि जो बेनीवाल कुछ दिन पहले तक पीएम की तारीफें करते नहीं थक रहे थे

जो बेनीवाल शहरी निकायों में हुए चुनाव में बीजेपी के खिलाफ नहीं बोले. जो बेनीवाल राष्ट्रवाद के मुद्दे पर समेत तमाम राष्ट्रीय मुद्दों पर BJP के सुर से सुर मिला रहे थे और यहां तक कि राजस्थान में आए सियासी संकट के वक्त भी बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे थे. सबसे बड़ा तथ्य ये कि जिस बेनीवाल ने लोकसभा में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का कोई विरोध नहीं किया. उन हनुमान बेनीवाल के सुर कैसे बदल गए. क्या वाकई हनुमान बेनीवाल कृषि कानूनों से नाराज है. या बदले हुए सुर उनकी बदली हुई रणनीति का हिस्सा है।

– क्या कांग्रेस के दबाव में दिया बयान ?

बेनीवाल इस वक्त पंचायती राज चुनाव में व्यस्त है. और उनको नागौर से ज्यादा संभावनाएं दूसरे जिलों में नजर आ रही है. बाड़मेर और बीकानेर जैसे जिलों में लगातार सक्रीय है. लेकिन कांग्रेस ने इन चुनावों में कृषि कानूनों को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है. 2023 विधानसभा चुनाव से पहले पंचायती राज चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है. बेनीवाल भी 2023 के लिए जमीन तैयार करना चाहते है. यही वजह है कि वो बीजेपी से अलग अकेले पंचायती राज चुनाव में उतरे है.

हाल ही में कांग्रेस नेता हरीश चौधरी ने बायतू के बाटाडू में एक जनसभा को संबोधित करते हुए हनुमान बेनीवाल पर निशाना साधा था।

हरीश चौधरी ने कहा था कि अगर बेनीवाल अपने आप को किसान हितैषी कह रहे है तो केंद्र सरकार के कृषि कानूनों पर क्यों नहीं बोल रहे. किसानों के आंदोलन के पक्ष में कोई बयान क्यों नहीं दे रहे. हरीश चौधरी ने आगे ये भी कहा था कि बेनीवाल अगर कृषि कानून से सहमत नहीं है तो वो गठबंधन से अलग क्यों नहीं होते. इस तरह बेनीवाल लगातार कांग्रेस के निशाने पर थे. ऐसे में अब सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस के दबाव में हनुमान बेनीवाल को कृषि कानूनों के खिलाफ बयान देना पड़ा. क्या गठबंधन से अलग होने का संकेत सिर्फ डेमेज कंट्रोल की कोशिश मात्र है या वाकई वो गठबंधन से अलग होना चाहते है।

– पंचायती राज चुनाव में नुकसान से बचने की रणनीति ?

पंचायती राज चुनाव में राजस्थान के कई जिलों से हनुमान बेनीवाल को काफी उम्मीदें है. कई जगहों पर RLP की मदद के बिना प्रधान बनाना बीजेपी कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा. ये तर्क 2018 विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर RLP को मिले वोट के आधार पर दिया जा सकता है. हरिश चौधरी और कैलाश चौधरी जैसे दिग्गज नेताओं के इलाके बायतू में RLP को 2018 में 40 हजार के लगभग वोट मिले थे. बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर की कई विधानसभा सीटों पर इससे भी ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में पंचायती राज चुनाव में बेनीवाल को इन इलाकों में काफी फायदा मिल सकता है. लेकिन कृषि कानून पर कांग्रेस के सवालों का जवाब देना बेनीवाल के लिए मुश्किल हो रहा था. ऐसे में बेनीवाल ने एक झटके से इन सवालों को किनारे लगा दिया. मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होने के बाद अब कांग्रेस कृषि कानून के मुद्दे पर बेनीवाल को नहीं घेर पाएगी।

– क्या 2023 की रणनीति का हिस्सा ?

बेनीवाल 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन करके राष्ट्रीय राजनीति में आने में भले ही कामयाब हो गए थे. लेकिन गठबंधन में रहते हुए वे अपना विस्तार नहीं कर पा रहे थे. उनकी राजनीति केवल नागौर लोकसभा और खींवसर विधानसभा तक सिमटती जा रही थी. नगर निकाय चुनाव में भी बीजेपी ने RLP को सीटें नहीं दी थी. ऐसे में अगर 2023 तक बेनीवाल गठबंधन में शांत रहते तो उनकी जमीन कमजोर पड़ जाती. उसी जमीन को मजबूत करने के लिए बेनीवाल ने पंचायती राज चुनाव में पूरी ताकत लगाई है. पार्टी के जितने सक्रीय कार्यकर्ता पंचायत समिति और जिला परिषद में सदस्यों का चुनाव जीतेंगे. उससे 2023 के लिए पार्टी की लड़ाई उतनी ही मजबूत होगी. RLP के कार्यकर्ता इन चुनावों में जीतनी ज्यादा जगह जीतने में कामयाब होगें. 2023 में किसी पार्टी के साथ गठबंधन में ज्यादा सीटों पर दावा भी मजबूत रहेगा।

– बेनीवाल को उनके समर्थक सीएम पद का दावेदार मानते है

लेकिन बीजेपी के साथ गठबंधन में रहते ये दावा कमजोर हो रहा है. ऐसे में जिस तरह से बेनीवाल बीजेपी के खिलाफ धीरे धीरे मुखर हो रहे है. उससे ये भी अनुमान लगाया जा रहा है कि वो पार्टी कार्यकर्ताओं में 2023 की लड़ाई अपने दम पर लड़ने का संदेश भी दे रहे है. ताकि कार्यकर्ताओं में जोश बना रहे।

– कृषि कानून का विरोध स्पष्ट क्यों नहीं ?

बेनीवाल दबी आवाज में इससे पहले भी कई बार कह चुके है कि किसान हितों में कोई खिलवाड़ नहीं होने देंगे. लेकिन कृषि कानूनों के खिलाफ खुलकर नहीं बोले. लोकसभा में भी इसका विरोध नहीं किया था. और अब जब वो इसके विरोध में उतरे है. तब भी ये स्पष्ट नहीं कर रहे है. कि इन तीन कृषि कानूनों के किस प्रावधान का विरोध कर रहे है. किस प्रावधान को वो गलत मानते है. मतलब बेनीवाल कृषि कानून पर सवाल तो उठा रहे है. लेकिन उसका छोर खुला छोड़ रहे है ताकि आने वाले वक्त में सुविधा अनुसार सुर बदले भी जा सके. तो क्या बेनीवाल सिर्फ सियासी नफे-नुकसान को ध्यान में रखते हुए बयान दे रहे है. कृषि कानून पर स्पष्ट विरोध या समर्थन क्यों नहीं ?

– कृषि कानून का विरोध कब तक ?

बेनीवाल ने लोकसभा में कृषि कानूनों का विरोध नहीं किया. जब कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर विरोध किया. तब भी बेनीवाल खिलाफ नहीं बोले. बेनीवाल तब भी कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं बोले जब किसानों ने आंदोलन शुरू किया. लेकिन जैसे ही पंचायती राज चुनाव में मुश्किलों का सामना किया. तो खुद को कृषि कानूनों से अलग करने के लिए बयान दे दिया. ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या ये विरोध सिर्फ पंचायती राज चुनाव तक ही है. या इन चुनावों के बाद भी बेनीवाल इस मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ रहेंगे.