संपादकीय राकेश दुबे
भोपाल की स्थानीय सरकार यानि नगर निगम को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है कि उसका नाम कम गुणवत्ता का जल प्रदाय न करने वाली संस्थाओं में शामिल नहीं है | भोपाल के नागरिकों को भी अपने मुगालते इस बाबत दूर कर लेना चाहिए | वस्तुत: भोपाल की पेयजल व्यवस्था को इस मूल्यांकन में इसलिए जगह नही दी गई क्योंकि यहाँ की पेयजल व्यवस्था बंटी हुई है | पेयजल पर भोपाल नगर निगम की छिन्न-भिन्न रिपोर्ट को शामिल करना उचित नहीं माना गया है | वैसे पूरे देश के हालात भी कोई बहुत बेहतर नहीं है | देश का कितना बड़ा दुर्भाग्य है, देश के एक बड़े भाग के नागरिकों को गुणवत्तायुक्त पेयजल उपलब्ध नहीं है |

मुंबई के अलावा तीन महानगरों और १७ राजधानियों में नलों से मुहैया होनेवाले पेयजल की गुणवत्ता ठीक नहीं है|
भारतीय मानक ब्यूरो के अध्ययन में दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई का पानी ११ में से करीब १० कसौटियों पर खरा नहीं उतरा है| रांची, हैदराबाद, भुवनेश्वर, रायपुर, अमरावती और शिमला के नमूने एक या अधिक मानकों पर ठीक नहीं पाये गये हैं, जबकि चंडीगढ़, गुवाहाटी, बेंगलुरु, गांधीनगर, लखनऊ, शामिल हैं |जब पीने के पानी की यह स्थिति जब इन शहरों में है, तो देश के बाकी हिस्से की हालत का आप सहज अंदाज़ लगा सकते हैं |
वाटर एड रिपोर्ट की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक लगभग ७.६ करोड़ लोगों को तो नल का पानी ही नहीं मिलता| ६ साल पहले यानि २०१३ तक ३० प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में ही पानी पहुंचाया जा सका था| उपलब्धता के संकट का अनुमान एशियन डेवलपमेंट बैंक के इस आकलन से लगाया जा सकता है कि २०३० तक जरूरत का ५० प्रतिशत पानी ही हमारे पास होगा|

भू-जल के दोहन, निकास व शोधन की कमी और लापरवाह संरक्षण जैसी समस्याओं के साथ साफ पानी का अभाव भारत के लिए बेहद गंभीर चुनौती है|
अभी ४५ हजार से अधिक गांवों में नल के या हैंडपंप से पानी मिलता है, लेकिन करीब १९ हजार गांव ऐसे भी हैं, जहां ऐसी उपलब्धता नहीं है| पिछले साल संसदीय रिपोर्टों में रेखांकित किया गया था कि ग्रामीण भारत में पेयजल पहुंचाने की सरकारी कोशिश भू-जल पर बहुत अधिक निर्भर है, लेकिन देश के २० से अधिक राज्यों में भू-जल में खतरनाक रसायन हैं| बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, मणिपुर और कर्नाटक के ६८ जिलों के भू-जल में आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा है| पूर्वी भारत के गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र इस समस्या से बेहद प्रभावित हैं| गैस त्रासदी का भोपाल के भू जल पर क्या असर हुआ ? और अब क्या हाल है, इस पर कोई बात करने को राजी नहीं है |
यह सर्व ज्ञात तथ्य है कि रसायनों के मिश्रण का एक बड़ा कारण पेयजल के लिए गहरी खुदाई करना भी है| कहने को तो गांवों में पानी मुहैया कराने के लिए सरकार ने जल जीवन मिशन के नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की है|

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित इस कार्यक्रम के तहत २०२४ तक हर ग्रामीण परिवार तक साफ पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है| यह घोषणा तो हो गई पर अभी प्रगति गणना करने की स्थिति में नहीं है | साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये की लागत के इस प्रयास की सफलता से करीब १५ करोड़ परिवारों को पेयजल मिलने की उम्मीद की जा रही है| साफ पानी की कमी का सीधा संबंध बीमारियों से है| इस कमी की भरपाई सिर्फ नदियों के पानी या भू-जल से कर पाना बढती आबादी क्र मान से मुमकिन भी नहीं है|
इस मिशन की सफलता के लिए स्वच्छता, पानी बचाने, वर्षा जल के संरक्षण और नदियों की सफाई से जोड़ कर ही पूरा किया जा सकता है | भारत में बमुश्किल बारिश के पानी का महज छह प्रतिशत ही बचा पाता है| समुचित व्यतिगत, गैर सरकारी और सरकारी पहलों और सक्रियता से पानी की उपलब्धता बढ़ाना संभव है| ऐसा होने पर ही गुणवत्ता को भी बेहतर किया जा सकेगा तथा बीमारियों पर अंकुश लगाकर लाखों जानें बचायी जा सकेंगी| ध्यान रखिये, आज के प्रयास पर भविष्य की संभावनाएं निर्भर हैं, अगली पीढ़ी के लिए साफ सुरक्षित पानी तो छोड़कर जाईये |