जांभाणी संतकवियों की साहित्य श्रृंखला मध्ययुगीन हिंदी संत साहित्य की अनुपम थाति
मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का हुआ शुभारंभ
दस देशों सहित भारत के साढ़े चार हजार प्राध्यापक एवं शोधार्थियों ने लिया भाग
हिसार/मुम्बई से – ओम एक्सप्रेस (पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई द्वारा)
हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई और जांभाणी साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का शुभारंभ सोमवार सांय चार बजे हुआ। वेबिनार का शुभारंभ स्वामी सच्चिदानंद आचार्य ने जांभाणी साखी से किया। वेबिनार की भूमिका एवं आशीर्वचन जांभाणी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष स्वामी कृष्णानंद आचार्य ने व्यक्त करते हुए मध्यकालीन साहित्य परिवेश और जांभाणी साहित्य के उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो नंदकिशोर पांडेय ने गुरु जाम्भोजी एवं उनके विचारों पर अनेक नए आयामों पर विचार रखे। प्रो पांडेय ने गुरु जाम्भोजी द्वारा प्रणीत 29 धर्म-नियमो की विस्तार से व्याख्या की तथा मध्यकाल ही नहीं वर्तमान में भी उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया तथा इन्होंने जांभाणी साहित्य के राम भक्ति काव्य धारा और कृष्ण भक्ति काव्य धारा के संतकवियो की साहित्य साधना पर प्रकाश डालते हुए गुरु जांभोजी के पर्यावरणीय चिंतन को विशेष रूप से मध्ययुगीन साहित्य की अमूल्य निधि भी बताया।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि एवं उद्घाटक प्रो केसरीमल वर्मा कुलपति , रायपुर विश्वविद्यालय ने गुरु जाम्भोजी के सिद्धांतों में जीवन की विधि को बताते हुए किस प्रकार जिया ने जुगति अर मुवा ने मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। जंभवाणी में निहित मानवीय मूल्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो बनवारीलाल सहू ने मध्यकालीन साहित्य के महत्व और जाम्भाणी साहित्य को हिंदी साहित्य इतिहास की पांचवीं सगुणोन्मुखी निर्गुण भक्ति काव्य धारा को मुख्य धारा में शामिल करने का आह्वान किया। सत्र का संचालन डॉ सुरेंद्र बिश्नोई हिसार ने किया, वहीं तकनीकी संयोजन डॉ लालचंद बिश्नोई, बीकानेर ने किया। उद्घाटन सत्र के अतिथियों की गरिमामई उपस्थिति में इस अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की ई- स्मारिका का विमोचन किया गया, जिसका संपादन डॉ करुणाशंकर उपाध्याय, डॉ पुष्पा विश्नोई एवं डॉ रामस्वरूप ने किया।
चौ. बंशीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी से प्रो. बाबूराम ने पाठालोचन समस्या एवं प्रविधियां – ‘मध्यकालीन साहित्य के विशेष संदर्भ में’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। पाठालोचन परंपरा और सिद्धांत को बारीकी से समझाते हुए जांभाणी साहित्य के पाठालोचन की आवश्यकता को भी जरूरी माना। इस सत्र का संयोजन डॉ बिनीता सहाय, सहायक आचार्य, हिंदी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई ने किया। औपचारिक धन्यवाद डॉ रामस्वरूप जंवर जोधपुर ने ज्ञापित किया।
इस वेब संगोष्ठी में विश्व के दस राष्ट्रों सहित संपूर्ण भारत के सौ के लगभग विश्वविद्यालय के साढ़े चार हजार प्राध्यापक एवं शोधार्थियों ने ज़ूम एप एवं फेसबुक के माध्यम से वेबिनार में सहभागिता की।