— प्रतिदिन। -राकेश दुबे

प्रदूषण की एक नई किस्म जिसे सब जानते हैं पर यह मानने को तैयार नहीं है उससे के कारण कीट-पतंगों कई जातियां विलुप्त हो रही है। प्रकृति की प्रत्येक कृति एक संतुलन का हिस्सा है किसी एक छोटे से कीट का लुप्त होना एक पूरी शृखला को अस्तव्यस्त करती है और परिणाम सपूर्ण रचना को भोगना होता है।कृत्रिम प्रकाश से होने वाला प्रदूषण भी इतना ही घातक है।वैज्ञानिक बता रहे हैं कि अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश भी एक भयावह प्रदूषण है।इससे रात में आसमान में तारे दिखने बंद हो जाते हैं, उपग्रहों से रात में पृथ्वी का चित्र लेने में बाधा पड़ रही है और साथ ही बिजली की बर्बादी भी हो रही है।एक शोधपत्र के अनुसार इस प्रकाश प्रदूषण का मानव के साथ ही जीव-जन्तुओं पर भी व्यापक असर पड़ रहा हैI वैज्ञानिकों के अनुसार यह असर इतना व्यापक है कि अब प्रकाश प्रदूषण को भी जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि और प्रजातियों के विनाश जैसी समस्याओं के समकक्ष रखने की जरूरत है।
हम पहले बिजली का उपयोग केवल घरों को रोशन करने करते थे, बाद में सड़कें, सार्वजनिक स्थल, बड़े कार्यालय और भवन, स्टेडियम, उद्योग, ऐतिहासिक स्थल, नदी का किनारा, समुद्र का किनारा और बाजार में भी रात भर चकाचौंध करने वाला प्रकाश रहने लगा अब तो शहरों को रात में भी दिन जैसा प्रकाश में डुबोने की होड़ लग गई हैI प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ती जा रही हैI इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जब हम सडकों, रेल या विमान से यात्रा करते हैं, तब आसमान में फैली रोशनी से यह अनुमान लगा लेते हैं कि अब कोई शहर आने वाला है।

कहीं भी प्रकाश आसमान में फैलाने से यह सम्पूर्ण वायुमंडल में फैलता है, यही फैलाव प्रकाश प्रदूषण हैI कीट-पतंगे प्रकाश के चारों तरफ उड़ते हैं और सुबह तक जलते प्रकाश उपकरणों की गर्मी से मर जाते हैं।इस प्रकाश प्रदूषण के कारण कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्तीकरण के कगार पर हैं।
मानव निर्मित कृत्रिम प्रकाश का दायरा और तीव्रता प्रतिवर्ष २ प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैI यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन का जैसा व्यापक असर इस प्रकाश प्रदूषण का भी हो रहा है। इससे जन्तुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों में हॉर्मोन के स्तर पर परिवर्तन आ रहे हैं, प्रजनन चक्र अनियमित होता जा रहा है, व्यवहार बदल रहा है जिस तरह प्रकाश में मनुष्यों को सोने में दिक्कत आती है, उसी तरह पूरे जीव जगत पर इसके प्रभाव होते है। पृथ्वी पर जीवन में दिन और रात के अंधेरे का व्यापक प्रभाव है और पूरे जीव जगत का विकास इसी आधार पर हुआ है।
जर्नल ऑफ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित 126 शोधपत्रों के अनुसार प्रकाश प्रदूषण का सबसे गहरा प्रभाव कीट जगत पर पड़ रहा है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि दुनिया भर में जीव जगत में विलुप्तीकरण का सबसे अधिक खतरा कीट-पतंगों को ही है।बहुत सारे कीट केवल रात में उड़ते हैं और अपनी गतिविधियों के दौरान अनेक फूलों का परागण करते हैंI जब ये कीट परागण नहीं करते तो फिर फसलों का उत्पादन या फिर वनस्पतियों का विस्तार प्रभावित होता हैI दूसरी तरफ, अनेक कीट सडकों के किनारे की रोशनी के चारों-तरफ रात भर उड़ते हुए बल्ब की गर्मी में झुलस कर मर जाते हैंI रात भर तेज प्रकाश झेलने वाले वनस्पतियों में फूल खिलने का, फल लगने का समय बदल जाता हैIलम्बी दूरी तय करने वाले प्रवासी पक्षियों पर भी प्रकाश प्रदूषण का व्यापक असर होता है।रात में ये पक्षी शहरों की रोशनी से चकमा खाकर अपना रास्ता भटक जाते हैं, या फिर शहरों की इमारतों से टकराकर मर जाते हैंI समुद्री कछुवे भी सागर तट के रिसोर्ट के प्रकाश से आकर्षित होकर उसकी तरफ जाते हैं और फिर भूख-प्यास से मर जाते हैं या वन्यजीवों के तस्करों की गिरफ्त में आ जाते हैं।

प्रकाश प्रदूषण के तीन मुख्य कारक हैं- बिना ढके प्रकाश के स्त्रोत, प्रकाश का अवांछित अतिक्रमण और शहरी सडकों और भवनों का प्रकाशI वायु प्रदूषण, विशेष तौर पर पार्टिकुलेट मैटर की वायु में अधिक सांद्रता भी प्रकाश प्रदूषण में सहायक हैI कोहरे या धूम कोहरा की स्थिति में प्रकाश दूर तक फैलता नजर आता है और इस कारण प्रकाश प्रदूषण बढ़ता हैI जर्नल ऑफ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार प्रकाश प्रदूषण का असर पूरे जीव जगत पर पड़ रहा है, इसमें सूक्ष्मजीव, अरीढ़धारी जंतु, रीढ़धारी, मनुष्य और वनस्पति सभी शामिल हैंI कुछ प्रजातियों में इनका लाभदायक असर भी स्पष्ट हो रहा हैI कुछ वनस्पतियों में प्रकाश प्रदूषण के असर से वृद्धि दर में तेजी देखी जा रही है और चमगादड़ों की कुछ प्रजातियों का दायरा बढ़ रहा है।
मानव को अपनी जरूरत पूर्ति के लिए प्रकश पैदा करने का अधिकार है।चकाचौंध करके किसी भी जीव की नस्ल बर्बाद करने का नहीं।