कोलकाता – सच्चिदानंद पारीक

समय तेज़ी से दौड़ रहा है । इस बात का पता तब चलता है जब जीवन के ख़ास मायने दर्ज कराने वाले किसी ख़ास शख़्सियत का साथ समयानुसार छूट जाता है ।पत्रकारिता क्षेत्र में मुझे लेकर आने वाले और हमेशा ही बेहतरीन कुछ करते रहने के लिए प्रेरित करने वाले काकाजी शंकरलालजी हरलालका नहीं रहें । जीवन का यह कठोर सत्य है जो आता है उसे जाना पड़ता है मगर यह भी सच है कि कुछ व्यक्तियों का स्थान हमारे जीवन में ऐसा होता जो वाह्य तौर से हमें छोड़कर जरुर चले जाते है मगर उनसे जुड़ी हमारी यादें जीवन से कभी नहीं जा पाती।मेरे जीवन के एक मोड़ पर यदि काकाजी नहीं आते तो शायद मैं पत्रकार भी नहीं बन पाता । उन दिनों लिखने – पढ़ने का शौक़ जरुर था मगर इसी क्षेत्र में कुछ खास करना है इसे लेकर बहुत गंभीर न था । काकाजी ने पत्रकारिता से जोड़ा , मुझे इस क्षेत्र में कार्य करते रहने के लिए प्रेरित किया . समय समय पर कई महत्वपूर्ण दायित्व देते हुए मेरी लेखन क्षमता को निखारने का बराबर ही प्रयास किया . जब कभी भी मैंने अपने आप को इस क्षेत्र से कुछ समय के लिए भी पृथक किया तो वे मुझे ढूँढ ले आते थे और फिर से पत्रकारिता काम से जोड़ देते थे ।मैं हर पल कुछ नया सीखूँ यह उनकी हमेशा कोशिश हुआ करती थी ।

उन्हीं के संपादन में राजस्थानी भाषा के समाचार पत्र “ मरुदूत “ में भी उन्होंने लिखने के लिए उत्साहित किया । इसके पहले कभी मैंने सोचा भी न था कि कभी राजस्थानी भाषा में कुछ लिख पाऊँगा . वे राजस्थानी भाषा में मेरे द्वारा लिखे गये लेख की भाषा वर्तनी सुधार कर उसे और निखार देते थे ।उनकी कड़ी मेहनत और लगन को मैंने नज़दीक से देखा था । काम को लेकर उनमें ग़ज़ब की लगन थी । बहुत जल्दी ऑफिस आ जाना और पूरी तल्लीनता के साथ काम में जुट जाना उनके काम के प्रति निष्ठा को सदैव उजागर किया करती थी . कंप्यूटर का युग प्रारम्भ नहीं हुआ था. इसलिये लोहे के साँचे में ढ़ले एक – एक अक्षरों सजाकर जूट की रस्सी से बांधते हुए छपाई करनी पड़ती थी . मशीन में काम करके लिए आने वाले आदमी के देर से आने पर वे ये सब खुद अपने हाथों से करने के लिए जुट जाते थे . उन दिनों बिजली बहुत ज़ाया करती थी . पाथुरिया घाट स्ट्रीट स्थित सेवा संसार के कार्यालय के एक कोने के कमरे में वे पसीने से तर बतर गंजी पहने काम में जुटे नज़र आते थे . खबरों के पहले काग़ज़ पर लिखना , उसके ब्लॉक को सजाना , फ़ोटो के लिए प्लेट बनाने के लिए देना ये उनके दिनचर्या से जुड़े काम हुआ करता थे । लेकिन इन सब कामों को करते हुए भी कभी भी मैंने उनके चेहरे पर तनाव के भाव नहीं देखें . अपने सिद्धांतों को लेकर समझौता करना उनकी आदत में न था । न ही वे चाहते थे कि उनसे जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपने सिद्धांतों को लेकर किसी तरह का समझौता पैसे के कारण अथवा किसी प्रकार से दबाव में आकर करें । उन्होंने अपने अधीनस्थ काम करने वाले व्यक्ति हमेशा स्वतंत्र भाव से लिखने की प्रेरणा दी । मुझे याद है वे सभी बातें – जब चुनाव के समय मेरे लिखे आलेख में मनपसंद संशोधन कराने के लिए उनके पास फ़ोन आते थे तो वे कहा करते थे- भई , मुझे इस विषय में कुछ मालूम नहीं , मैं किसी तरह का सुधार नहीं कर सकता . जिसने लिखा है । उसी से बात करके कुछ ठीक करा सको तो करा लो । अपने पुत्र श्री संजय हरलालका द्वारा सेवा संसार के संपादन का संपूर्ण दायित्व सँभाल लेने के बाद जब वे दफ़्तर आते और मैं किसी न्यूज़ को लेकर उनसे कुछ कहता तो वे कहते – संजय जाणै… उनके यह कहने का मतलब ये था कि वे किसी को सौंप दिये गये काम में फिर हस्तक्षेप करना पसंद नहीं करते थे . एक अर्से पहले बीमार हो जाने के बाद भी सक्रिय रहना , काकाजी के स्वभाव की जीवटता ही थीं। डरना काकाजी के स्वभाव में बिलकुल न था. उन दिनों , किसी पॉवरफुल किसी व्यक्ति के बारे में जब उन्होंने कुछ लिख दिया था तो उस व्यक्ति ने संख्याबल के साथ सेवा संसार का घेराव करने की बात कही . काकाजी उनसे बात करते समय ज़रा भी विचलित नहीं हुए बल्कि उन्हें खुद घेराव करने के लिए आमंत्रित किया । उस व्यक्ति के संख्याबल के साथ आने तक काकाजी सहज और संयमित रहकर ऑफिस का सारा कामकाज करते रहे । सिर्फ यही नहीं अपने आदमियों के साथ ऑफिस पहुँचने पर उस व्यक्ति को भी काकाजी से बात करके संतुष्ट होकर वापिस लौट जाना पड़ा . ऐसे कई उदाहरण उन दिनों के है जब काकाजी ने कई मुद्दों पर अपनी लड़ाई कई महीनों तक बिना डरे , बिना झुके जारी रखी . सेवा संसार के सभी काम काजों के बीच सेवा संसार शिविर के माध्यम से उनके द्वारा सामाजिक कार्यों के साथ जगद् गुरु शंकराचार्य स्वरुपानंदजी सरस्वती महाराज के कार्य के लिए प्रस्तुत रहना समाज के प्रति उनकी निष्ठा और सेवा भाव को भी दर्शाता है . 37 वर्ष पहले शायद अपने सांध्य दैनिक अख़बार का नाम सेवा संसार भी उन्होंने अपनी इसी सेवा भावना से प्रेरित होकर दिया था .काकाजी आज दैहिक रुप में आज हम सभी के बीच नहीं है पर उनके द्वारा स्थापित किये गये आदर्श – सिद्धांत कभी भुलाये न जा सकेंगे ।
विनम्र श्रद्धांजलि 💐कलम के प्रति समर्पित महान व्यक्तित्व को