हर्षित सैनी
रोहतक। मूवमेंट फॉर सोशियो-इकॉनोमिक चेंज (एम-सेक) और लोकहित संस्था की ओर से रविवार आठ मार्च को महिला दिवस पर प्रदेश स्तरीय किसान सह कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें कृषि क्षेत्र की दशा पर चर्चा के साथ काव्य पाठ भी हुआ।
कार्यक्रम में कृषि, सिंचाई व मार्केटिंग की चुनौतियां, क्या कृषि को लाभकारी और जैविक खेती को टिकाऊ बनाना संभव है और आधुनिक कृषि में महिलाओं की भूमिका और कृषि क्षेत्र में रोजगार की स्थिति पर खुली चर्चा हुई।

दिनभर चले इस कार्यक्रम में प्रदेश भर से 100 से अधिक प्रगतिशील किसान, कवि और कृषि वैज्ञानिक व विशेषज्ञ शामिल हुए। वक्ताओं ने कहा कि कृषि क्षेत्र की चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन उसे दूर करना संभव है। अलग-अलग सरकारी योजनाएं चलाने के बजाय उसे एकीकृत करके एक-दो योजनाओं से कृषि क्षेत्र का विकास किया जा सकता है। कृषि व संबंद्ध क्षेत्र को उद्योग का दर्जा दिया जाना चाहिए, किसानों को केवल वोट बैंक नहीं बनना चाहिए।
विशेषज्ञों ने कहा कि रासायनिक की तरह ही जैविक खेती से भी अधिक फसल उत्पादन संभव है। दो से तीन साल में ही जैविक खेती लाभकारी खेती बन जाती है और यही सुरक्षित भविष्य की खेती है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में अर्थशास्त्री प्रो. राजिंद्र चौधरी ने कहा कि जैविक खेती को लेकर गलतफहमी दूर होनी चाहिए कि यह समूची आबादी का पेट नहीं भर सकती। उन्होंने यूएन के एफएओ के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा कि जैविक खेती में रासायनिक जहरीली खेती से अधिक पैदावार संभव है व यह पर्यावरण व स्वास्थ्य की रक्षा भी करती है।
कृषि विज्ञान केंद्र रोहतक के कृषि वैज्ञानिक डा. नरेश सांगवान ने कहा कि भारतीय एग्री साइंटिस्टों ने अन्य देशों के मुकाबले अच्छा काम किया है। किसानों को इन शोधों व सरकारी मदद का लाभ लेना चाहिए और उन्हें खुद भी लागत कम करने की दिशा में काम करना चाहिए। डा. स्वदेश कबीर ने कहा कि किसानों को खुद अपनी फसल के विपणन की जिम्मेदारी संभालनी होगा। उन्हें उचित दाम पाने के लिए आगे आना होगा।

लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप हुड्डा ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के हालात में सुधार नहीं लाना चाहती। देश की राजनीति किसानों को वोटबैंक बनाकर रखना चाहती है। कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए बड़े स्तर पर आंदोलन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन की अपार क्षमता है, बस सही नीयत व नीति से इस क्षेत्र के विकास के लिए काम किया जाए।
लोकहित संस्था के प्रमुख एडवोकेट चंचल नांदल ने कहा कि किसानों-कमेरों पर राजनीति बंद होनी चाहिए और इस क्षेत्र की दशा सुधारने के लिए केवल सरकारी योजनाएं बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि धरातल पर काम करना होगा।
राजनीतिक अर्थशास्त्री व पत्रकार शंभू भद्रा ने कहा कि सरकार कृषि व संबंद्ध क्षेत्र के लिए 27 से अधिक योजनाएं चला रही हैं, फिर भी कृषि क्षेत्र की विकास दर लुढक़ कर दो फीसदी पर पहुंच चुकी है। देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान आजादी के समय जहां 55 फीसदी था आज 2020 आते-आते 15.87 फीसदी के करीब रह गया है जबकि कृषि व संबद्ध क्षेत्र आज भी 53 फीसदी लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
इससे साफ है कि सरकारी योजनाओं से कृषि क्षेत्र की दशा नहीं सुधर रही है। आज कृषि को उद्योग का दर्जा देने, खेती व विपणन में कॉपरेटिव मॉडल अपनाने, किसानों को आत्मसम्मान देने व कृषि क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शिकंजे से मुक्त कराने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के दौरान पानीपत से प्रगतिशील किसान बिजेंदर, दादरी से ओमपाल, करनाल से सुखबीर, गुरुग्राम से सुमित व अरुण गुलिया, रोहतक से किसान व कृषि अर्थशास्त्री महिंदर मलिक, हिसार से जैविक किसान सुदर्शन कंवारी, पूर्व प्रिंसिपल डा. वेद प्रकाश श्योराण, डा. संतोष मुदगिल व डा. कृष्णा चौधरी, कृषि वैज्ञानिक महावीर नरवाल आदि ने सारगर्भित विचार रखे।
कवियों में आगरा से रामस्वरूप दिनकर, रोहतक से विजय विभोर, राजपाल रंगा, अर्चना कोचर, सुनीता बहल, जींद से शकुंतला ने कविता पाठ किया और अपनी कविताओं के माध्यम से किसानों के दुखदर्द बयां किए। कार्यक्रम का संचालन चंचल नांदल व धन्यवाद ज्ञापन प्रदीप हुड्डा ने दिया।

जैविक खेती में रासायनिक से अधिक पैदावार : राजिंदर चौधरी
हर्षित सैनी
रोहतक। मूवमेंट फॉर सोशियो-इकॉनोमिक चेंज (एम-सेक) और लोकहित संस्था की ओर से रविवार आठ मार्च को महिला दिवस पर प्रदेश स्तरीय किसान सह कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें कृषि क्षेत्र की दशा पर चर्चा के साथ काव्य पाठ भी हुआ।
कार्यक्रम में कृषि, सिंचाई व मार्केटिंग की चुनौतियां, क्या कृषि को लाभकारी और जैविक खेती को टिकाऊ बनाना संभव है और आधुनिक कृषि में महिलाओं की भूमिका और कृषि क्षेत्र में रोजगार की स्थिति पर खुली चर्चा हुई।
दिनभर चले इस कार्यक्रम में प्रदेश भर से 100 से अधिक प्रगतिशील किसान, कवि और कृषि वैज्ञानिक व विशेषज्ञ शामिल हुए। वक्ताओं ने कहा कि कृषि क्षेत्र की चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन उसे दूर करना संभव है। अलग-अलग सरकारी योजनाएं चलाने के बजाय उसे एकीकृत करके एक-दो योजनाओं से कृषि क्षेत्र का विकास किया जा सकता है। कृषि व संबंद्ध क्षेत्र को उद्योग का दर्जा दिया जाना चाहिए, किसानों को केवल वोट बैंक नहीं बनना चाहिए।
विशेषज्ञों ने कहा कि रासायनिक की तरह ही जैविक खेती से भी अधिक फसल उत्पादन संभव है। दो से तीन साल में ही जैविक खेती लाभकारी खेती बन जाती है और यही सुरक्षित भविष्य की खेती है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में अर्थशास्त्री प्रो. राजिंद्र चौधरी ने कहा कि जैविक खेती को लेकर गलतफहमी दूर होनी चाहिए कि यह समूची आबादी का पेट नहीं भर सकती। उन्होंने यूएन के एफएओ के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा कि जैविक खेती में रासायनिक जहरीली खेती से अधिक पैदावार संभव है व यह पर्यावरण व स्वास्थ्य की रक्षा भी करती है।
कृषि विज्ञान केंद्र रोहतक के कृषि वैज्ञानिक डा. नरेश सांगवान ने कहा कि भारतीय एग्री साइंटिस्टों ने अन्य देशों के मुकाबले अच्छा काम किया है। किसानों को इन शोधों व सरकारी मदद का लाभ लेना चाहिए और उन्हें खुद भी लागत कम करने की दिशा में काम करना चाहिए। डा. स्वदेश कबीर ने कहा कि किसानों को खुद अपनी फसल के विपणन की जिम्मेदारी संभालनी होगा। उन्हें उचित दाम पाने के लिए आगे आना होगा।
लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप हुड्डा ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के हालात में सुधार नहीं लाना चाहती। देश की राजनीति किसानों को वोटबैंक बनाकर रखना चाहती है। कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए बड़े स्तर पर आंदोलन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन की अपार क्षमता है, बस सही नीयत व नीति से इस क्षेत्र के विकास के लिए काम किया जाए।
लोकहित संस्था के प्रमुख एडवोकेट चंचल नांदल ने कहा कि किसानों-कमेरों पर राजनीति बंद होनी चाहिए और इस क्षेत्र की दशा सुधारने के लिए केवल सरकारी योजनाएं बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि धरातल पर काम करना होगा।
राजनीतिक अर्थशास्त्री व पत्रकार शंभू भद्रा ने कहा कि सरकार कृषि व संबंद्ध क्षेत्र के लिए 27 से अधिक योजनाएं चला रही हैं, फिर भी कृषि क्षेत्र की विकास दर लुढक़ कर दो फीसदी पर पहुंच चुकी है। देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान आजादी के समय जहां 55 फीसदी था आज 2020 आते-आते 15.87 फीसदी के करीब रह गया है जबकि कृषि व संबद्ध क्षेत्र आज भी 53 फीसदी लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
इससे साफ है कि सरकारी योजनाओं से कृषि क्षेत्र की दशा नहीं सुधर रही है। आज कृषि को उद्योग का दर्जा देने, खेती व विपणन में कॉपरेटिव मॉडल अपनाने, किसानों को आत्मसम्मान देने व कृषि क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शिकंजे से मुक्त कराने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के दौरान पानीपत से प्रगतिशील किसान बिजेंदर, दादरी से ओमपाल, करनाल से सुखबीर, गुरुग्राम से सुमित व अरुण गुलिया, रोहतक से किसान व कृषि अर्थशास्त्री महिंदर मलिक, हिसार से जैविक किसान सुदर्शन कंवारी, पूर्व प्रिंसिपल डा. वेद प्रकाश श्योराण, डा. संतोष मुदगिल व डा. कृष्णा चौधरी, कृषि वैज्ञानिक महावीर नरवाल आदि ने सारगर्भित विचार रखे।
कवियों में आगरा से रामस्वरूप दिनकर, रोहतक से विजय विभोर, राजपाल रंगा, अर्चना कोचर, सुनीता बहल, जींद से शकुंतला ने कविता पाठ किया और अपनी कविताओं के माध्यम से किसानों के दुखदर्द बयां किए। कार्यक्रम का संचालन चंचल नांदल व धन्यवाद ज्ञापन प्रदीप हुड्डा ने दिया।