– प्रतिदिन। -राकेश दुबे

जल्दी ही कोरोना वैक्सीन का बाज़ार गर्म होने वाला है ।इसलिए ये जानना जरूरी है इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? जल्द ही दुनिया के ७५० करोड़ लोगों को वैक्सीन दिए जाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू हो सकता है।इन तमाम वैक्सीन की सफलता की दर को लेकर जो दावे सामने आये हैं, अत्यधिक भ्रमित करने वाले हैं ।फाइजर का दावा है कि उसकी वैक्सीन ९५ प्रतिशत तक प्रभावशाली है।मॉडर्ना ९४.५ प्रतिशत रूस की स्पूतनिक ९५ प्रतिशत, ऑक्सफोर्ड और आस्त्रजेनेका की वैक्सीन ९० प्रतिशत और भारत में बन रही कोवाक्सीन के ६० प्रतिशत तक सफल होने का दावा किया जा रहा है।
दुनिया भर के वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस को जड़ से समाप्त कर दिया जाए।लेकिन ये कैसे और कब होगा इस बारे में अभी पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि, आम तौर पर एक वैक्सीन को तैयार करने में ५ से १० वर्ष लग जाते हैं।पोलियो की वैक्सीन तैयार होने में ४७ वर्ष ,चिकन पॉक्स के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने में ४२ वर्ष और इबोला की वैक्सीन तैयार करने में ४३ वर्ष लग गए थे।एड्स जिसके संक्रमण का पहला मामला वर्ष १९५९ में आया था आज६१ वर्ष बीत जाने के बाद भी इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका है|लेकिन ये अकेली ऐसी वैक्सीन है जिसे १० महीने में तैयार करने का दावा किया जा रहा है।

वैक्सीन कैसे तैयार होती है और उसका परिक्षण कैसे होता है| यह जानना जरूरी है ।परिक्षण के दौरान लोगों को दो समूहों में बांटा जाता है और इनमें से आधों को वैक्सीन दी जाती है और आधे लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी जाती।दावा किया गया है कि फाइजर के परिक्षण में जो लोग शामिल थे, इनमें से १७० लोगों को कोराना का संक्रमण हुआ।लेकिन इनमें से भी १६२ लोगों को कोई वैक्सीन नहीं दी गई थी, जबकि 8 लोगों को वैक्सीन लगी थी.।इस आधार पर इस वैक्सीन के ९५ प्रतिशत तक सफल होने की बात कही गई है।ठीक इसी प्रकार अन्य दावे किये गये हैं।
आम तौर पर ट्रायल में जो लोग शामिल होते हैं वो स्वस्थ होते हैं यानी उन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं होती।लेकिन जब ये वैक्सीन दुनिया के करोड़ों लोगों को दी जाएगी, तो इसके असली असर के बारे में पता चलेगा। द लैंसेट मेडिकल जर्नल के अनुसार दुनिया के ९५ प्रतिशत लोगों को पहले से कोई न कोई बीमारी है, इसलिए जब दुनियाभर के लोगों को ये वैक्सीन दी जाएगी तब जाकर ये पता चल पाएगा कि ये वैक्सीन अलग-अलग लोगों पर और अलग-अलग परिस्थितियों में कितने प्रतिशत कारगर हैं।


अब बात कीमत की।फाइजर की वैक्सीन की एक डोज करीब १४०० रुपये में उपलब्ध होगा ।. मॉडर्ना की वैक्सीन सबसे ज्यादा महंगी होगी जिसकी कीमत ४ हजार रुपये प्रति डोज आंकी जा रही है ।जबकि भारत में बन रही कोवैक्सीन के लिए ये क़ीमत सिर्फ़ 100 रुपये तक मानी जा रही है. रूस की स्पूतनिक -५ की एक एक खुराक रुपये में मिलेगी ।दुनियाभर के देशों ने खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।अमेरिका ने सबसे ज्यादा संख्या में ऑर्डर दिए हैं| दूसरे नंबर पर यूरोप के देश हैं और तीसरे नंबर पर भारत है.।इसके बावजूद सभी देश अगले एक वर्ष में सिर्फ २५ प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन दे पाएंगे।पहले चरण में ये वेक्सीन स्वास्थ्य कर्मियों को मिलेगी, दूसरे चरण में सोशल वर्कर्स को, तीसरे चरण में ६५ वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों और चौथे चरण में आम जनता को ये वैक्सीन देने की बात जोरों पर है।वैसे भारत पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा वैक्सीन्स निर्माता है इसलिए हो सकता है कि भारत के लोगों को ये वैक्सीन मिलने में इतनी समस्या न आए।वैक्सीन बाज़ार में भारत में हर साल करीब ३०० करोड़ की विभिन्न वैक्सीन बनता है।इनमें से १०० करोड़ वैक्सीन्स का निर्यात किया जाता है।

आम तौर पर किसी को किसी भी रोग की वैक्सीन तब नहीं लगाई जाती जब उसे संक्रमण हो जाता है। वैक्सीन इसलिए लगाई जाती है, ताकि स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमण न हो।इसलिए ये वेक्सिन लगने के बाद लोगों में कोविड-१९ जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। जैसे तेज़ बुखार आना, मांसपेशियों में दर्द, ध्यान में कमी, और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है।ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इस वायरस को पहचानकर उससे लड़ने लगती है और यहीं से वायरस के खिलाफ इम्युनिटी तैयार होती है। इसके बाद वैक्सीन्स की दूसरी डोज लोगों को दी जाएगी लेकिन इसके दुष्प्रभाव पहले से कम होंगे।
वैसे अभी दुनिया में इस समय ११२ से ज्यादा ऐसी संक्रामक बीमारियां मौजूद हैं जो वायरस, बैक्टीरिया या पैरासाइट की वजह से फैलती है और हर साल इनसे करीब १ करोड़ ७० लाख लोगों की मौत होती है. लेकिन पिछले २०० वर्षों में इनमें से सिर्फ एक ही बीमारी को पूरी तरह से जड़ से मिटाया जा सका है और वो है चेचक [स्मॉल पॉक्स]| ये सफलता वर्ष १९८० में मिली थी। इसके अलावा इंसानों को होने वाली ऐसी कोई संक्रामक बीमारी नहीं है जिसे जड़ से खत्म करने का दावा किया गया हो।