राजू चारण

बाड़मेर 7 अक्टूबर भारत भूमि ऋषि मुनियो और देवी देवताओ की पावन भूमि है. जहां प्राचीन काल से ऋषि मुनियो ने परमार्थ और मानव मात्र की सेवार्थ कठोर तपस्या और साधना से जन जन को अभिभूत किया. वहीं यहां ऐसे देवी देवताओ के मन्दिर और स्थान है जो आज भी अपने चमत्कारो से आज के इस वैज्ञानिक युग में भी श्रदालुओं की आस्था के केंद्र बने हुए है।

दिखावा या खोटी नियत से चढ़ाया प्रसाद नहीं लेती माता रानी:

यह मंदिर लगभग 11वीं सदी में निर्मित माना जाता है. जहां माता जी ढाई प्याला शराब प्रसाद के रूप में ग्रहण करती है. सुनने में भले ही यह अजीब लगता है लेकिन यह सच है की माता रानी को सच्चे मन से प्रसाद चढ़ाया जाता है तो वो उसे ग्रहण करती है लेकिन दिखावा या खोटी नियत से चढ़ाया प्रसाद वो नहीं लेती. कई बार ऐसा भी होता है की एक ही परिवार के कुछ सदस्यों से माता रानी ने प्रशाद स्वीकार किया तो कुछ सदस्यों से प्रशाद को नकार दिया।

मंदिर का जीणोदार अजमेर के चौहान वंशीय राजाओ ने करवाया:

इतिहास की दृष्टि से स्थानीय निवसियों के अनुसार मंदिर का जीणोदार अजमेर के चौहान वंशीय राजाओ ने रुद्राणी और ब्रह्माणी माता की दो प्रतिमाये स्थापित की इनकी रक्षार्थ काले और गौरे भेरू की दो प्रतिमाये भी स्थापित की जहां रुद्राणी माता की प्रतिमा भक्तों से चांदी के बने प्याले से ढाई प्याले मदिरा ग्रहण करती है. आधा शेष प्याला समीप स्तिथ भैरव को चढ़ाया जाता है. ब्राह्मणी माता को भक्त जन नारियल और चूरमा बाटी चढ़ाते है और मनोकामना पूरी होने पर रात्रि जागरण और दाल बाटी चूरमे का भोग लगते है।

शारदीय और चैत्र नवरात्र में श्रदालुओं की भारी भीड़:
यूं तो मन्दिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र में श्रदालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लगभग पूरे उत्तर भारत से भक्त यहां आते है. इसी वजह इन दिनों में आश्विन के नवरात्रा में घट स्थापना के साथ मन्दिर में विधिवत धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा के साथ 9 दिवसीय उत्सव चल रहा है।

नवरात्र के मौके पर यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है:
इस पावन पर्व पर भक्तजन मां के दर्शन के लिए मंदिर में जाते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं. यहां प्रसाद के रूप में लड्डू, फल या फिर पेड़े नहीं बल्कि ढाई प्याला शराब चढ़ाई जाती है. नवरात्र के मौके पर यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है. लोग दूर-दराज से इस चमत्कारिक मंदिर के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की मान्यता है कि यहां माता ढाई प्याला शराब ग्रहण करती हैं. साथ ही बचे हुए प्याले की शराब को भैरव पर चढ़ाया जाता है।

इस मंदिर का निर्माण डाकूओं ने करवाया था:
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण डाकूओं ने करवाया था. किसी जमाने में इस मंदिर की पहाड़ी से घी बहता था. शिलालेख से पता चलता है कि मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1380 को हुआ था. मंदिर के चारों ओर देवी-देवताओं की सुंदर प्रतिमाएं व कारीगरी की गई है. मंदिर के ऊपरी भाग में गुप्त कक्ष बनाया गया था, जिसे गुफा भी कहा जाता है. संसद जैसा दिखने वाला यह मंदिर तांत्रिक यूनिवर्सिटी कहलाता था. यहां माता काली व ब्राह्मणी दो स्वरूप में पूजी जाती हैं. मंदिर में आने वाले भक्तजन ब्रह्माणी देवी को मिठाई और काली को शराब का भोग चढ़ाते हैं।

स्‍थानीय लोग बताते हैं कि यह मंदिर काफी चमत्कारिक भी है, यहां से कोई भी भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता. विशेष तौर पर नवरात्र के अवसर पर हजारों लोग मनोकामना के लिए दूर-दूर से आते हैं, माता के चमत्कार से मनवांछित फल पाते हैं।

मुगलों ने इस मंदिर में दर्शन बंद कर दिए थे:
बताया गया है कि मुगलों ने इस मंदिर में दर्शन बंद कर दिए थे, बाद में कई वर्षों बाद माता के दर्शन बहाल हुए. कहा जाता है कि भुवाल माता एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई थीं. इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था. मृत्यु को निकट देखकर उन्होंने मां को याद किया. मां ने अपनी शक्ति से डाकूओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया. इस प्रकार डाकूओं के प्राण बच गए और उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया।

माता को मदिरा का भोग लगते देख हैरान रह जाते कई लोग:
कोई भक्त मंदिर में मदिरा लेकर आता है तो पुजारी उससे चांदी का ढाई प्याला भरता है. इसके बाद वह देवी के होठों तक प्याला लेकर जाता है. इस समय देवी के मुख की ओर देखना वर्जित होता है. माता अपने भक्त से प्रसन्न होकर तुरंत ही वह मदिरा स्वीकार कर लेती हैं. प्याले में एक बूंद भी बाकी नहीं रहती. माता को मदिरा चढ़ाने का एक नियम भी है।
श्रद्धालु ने जितना प्रसाद चढ़ाने की मन्नत मांगी है, मां को उतने ही मूल्य का प्रसाद चढ़ाना होता है न उससे कम और न उससे अधिक. नवरात्र में इस दौरान यहां देश-विदेश से कई लोग आते हैं और माता को मदिरा का भोग लगते देख हैरान रह जाते हैं. माता के इस दरबार के कई चमत्कारिक किस्से इस क्षेत्र के लोग सुनाते हैं. कहा जाता है कि जो भी भक्त मन से इस मंदिर में अपनी मुराद लेकर आया कभी खाली हाथ नहीं लौटा. यूं तो और कई चमत्कारिक मंदिर हैं मगर इस मंदिर की कुछ अलग ही विशेषता है।