राकेश दुबे.
साल नहीं पूरा दशक बदल रहा है,यह एक नए युग के आरंभ का समय है।आगत का स्वागत, विगत को नमस्कार ! एक दशक पीछे छूट रहा है, अगला दशक चुनौतियाँ दे रहा है | छूटते दशक में यह दुनिया खंडित हुई है, नाकाम हुई है, हमारे नेताओं का पतन हुआ है, अर्थव्यवस्थाएं मुश्किलों में घिरी हैं और हमारे चारों तरफ संघर्ष एवं विवाद नजर पैदा हुए हैं । हमें इस बात का स्पष्ट अहसास हुआ है कि “पर्यावरण विध्वंस ”अब कोई दूर का विषय नहीं रह गया है। उससे रोज सामना हो रहा है, इसके कुप्रभाव बढ़ते ही जाएंगे। कभी अधिकतम तापमान तो कभी सबसे प्रतिकूल मौसम , लेकिन मामला सिर्फ मौसम का ही नहीं है। मुद्दा हमे अपने वर्तमान के आईने में भविष्य साफ़ दिखेगा और उसे समझना और सुधारना होगा |
आज तरुणाई बेचैन हैं, पिछले किसी भी दशक की तुलना में इस बार ज्यादा बेचैनी है। उसे तेजी से गर्म होती दुनिया में अपना वजूद बचाए रख पाने का तरीका नहीं मालूम है क्योंकि हमने उसे सिखाया नहीं है, यह सपन्न युवाओं की दुनिया का संकट है । इसके विपरीत विपन्न दुनिया के युवाओं को अवसर की चाहत है। इन्हें अपने आसपास भविष्य की संभावनाएं क्षीण दिखाई देती हैं। वे गांव से शहर और वहां से दूसरे देश गये हैं और लगातार जा रहे हैं । इन्हें अपने माता-पिता की दुर्दशा से कोई सरोकार नहीं हैं। ये मोबाइल फोन के जरिये मौजूदा दौर से तालमेल बिठाए हुए हैं। वे दूर चमकती रोशनी की दुनिया में जाना चाहते हैं | भले ही आसपास की दुनिया को टुकड़े-टुकड़े हो जाये ।
सरकार के प्रश्रय के कारण बड़े उद्ध्योग घराने समता एवं न्याय की बुनियादी धारणा को ही खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं ।
साझेदारी राष्ट्रहित जैसी भावनाएं तिरोहित हो रही हैं । इन्ही परम्पराओं का अनुसरण भविष्य में गरीब करेंगे ,इसमें कोई दो मत नहीं है । हमारा एक साझा भविष्य है, ऐसी भावना बिलकुल समाप्त हो रही है | यह देश के लिए शुभ नहीं है | फिर भी शुभकामनाओं के साथ अनुरोध है कि अगले दशक में हम वास्तविकता के करीब रहें। अगर अपने लिए न सही तो अगली पीढ़ी के लिए ऐसा करें। अब जीवन के साथ खेल न खेलें और भविष्य के साथ टालमटोल न करें। आगामी दशक कुछ अर्थों में अंतिम मौका भी हो सकता है, इसे खुश मिजाज बनाएं | खुद के लिए, परिवार के लिए, देश के लिए और विश्व के लिए |