– प्रवासी राजस्थानी मंडल, अहमदाबाद द्वारा माणक पत्रिका के सहयोग से प्रकाशित अनूठा नव वर्ष कैलेंडर

जयपुर। चैत्र सुदी एकम और विक्रम संवत 2078 के पहले दिन राजस्थानी भाषा की पत्रिका ‘माणक’ के प्रधान संपादक पदम मेहता ने भारतीय कालगणना पर आधारित राजस्थानी भाषा में बने विक्रम संवत 2078 के कैलेंडर की प्रति महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र को राजभवन में भेंट की। यह कैलेंडर अहमदाबाद के राजस्थानी भाषा अर संस्कृति प्रचार मंडल और माणक पत्रिका के सहयोग से बनाया गया हैं। दोनों संस्थाएं गत तीन वर्ष से ऐसे कैलेंडर निकाल रही है। मेहता ने राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिये राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया।

कैलेंडर में यह है खास
माना जाता है कि संसार की सर्वश्रेष्ठ काल गणना भारतीय काल-गणना है । भारतीय कालगणना अचूक है, निर्दोष है, सनातन, पुरातन और नित्य नूतन भी है । साथ ही प्राकृतिक और वैज्ञानिक भी है । क्यों कि भारतीय तिथि पत्र/कलेंडर प्रकृति के परिवर्तन पर आधारित है, इसलिए यह प्राकृतिक है । कब दिन होगा, कब रात होगी, कब चाँद बढ़ेगा, कब घटेगा, कब पूरा चाँद रहेगा, कब अमावस्या होगी, समुद्र में ज्वार कब आयेगा, इन सामान्य प्रश्नों के उत्तर ग्रेगेरियन कैलेंडर से नहीं दे सकते हैं।
भारतीय मास (महिनों)के नाम पूर्णतः वैज्ञानिक है । चैत्र आदि नाम उस मास की पूर्णिमा के चन्द्र-नक्षत्र के आधार पर हैं । भारतीयों द्वारा खोजी गयी कालगणना किसी व्यक्ति अथवा किसी समूह विशेष की घटना विशेष पर आधारित नहीं है । इसलिए यह साम्प्रदायिक अथवा किसी राष्ट्र विशेष की धरोहर नहीं है । यह सार्वभौम है । अपना अपना अभिनिवेश यदि बाधक न हो तो सारे संसार के लिए एकमात्र उपयुक्त यह काल गणना है।

इन धार्मिक स्थलों की झलक दिखेगी कैलेंडर में
कैलेंडर के सभी पन्नों पर प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की तस्वीरों सहित वार और तारीख राजस्थानी भाषा में लिखे गये हैं। इसके अलावा कैलेंडर में इन धार्मिक स्थलों के बारे में विस्तृत जानकारी भी दी गई है। कैलेंडर में हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आने वाले पर्व और व्रतों की सम्पूर्ण जानकारी भी दी गई है। कैलेंडर में इन मंदिर के ट्रस्ट की ओर से प्रवासी राजस्थानी मंडल, अहमदाबाद को शुभकामना संदेश भी दिये गये हैं।

जिन धार्मिक स्थलों की तस्वीरें राजस्थानी भाषी कैलेंडर में छापी गई हैं उनमें महेंदीपुर बालाजी (दौसा), पांडुपोल हनुमान (अलवर), केलादेवी (करौली), गणेश मंदिर (रणथम्भौर), मथुराधीश (कोटा), श्रीनाथजी रो मंदिर (नाथ द्वारा), गोविंद देवजी (जयपुर), ब्रह्माजी -पुष्कर (अजमेर), बाबा रामदेवजी-रूणीचा (पोकरण, जैसलमेर), रानी सतीजी (झुुंझुनू), चामुंडाजी (जोधपुर), खाटूश्यामजी (सीकर), देलवाड़ा जैन मंदिर (माउंट आबू) हैं।

भारतीय काल गणना, पूरी तरह वैज्ञानिक और अत्यन्त उपयोगी
इस कैलेंडर के बारे में इसरों के पूर्व वैज्ञानिक और भारत के चंद्रयान मिशन के प्रणेता और राजस्थानी भाषा अर संस्कृति प्रचार मंडल के वरिष्ठ सदस्य प्रोफेसर नरेन्द्र भंडारी के अनुसार भारतीय कालगणना, पूरे रूप से वैज्ञानिक है और विश्व के लिए अत्यन्त उपयोगी है । यह एक प्राकृतिक और संतुलित जीवन प्रणाली का आधार स्तम्भ है।

राजस्थानी है समृद्ध भाषा, इतनी समृद्व भाषा होने के बावजूद मान्यता नहीं मिलना आश्चर्य की बात
इसरों के ही पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्र सिंह पोखरणा, जो राजस्थानी भाषा अर संस्कृति प्रचार मंडल, अध्यक्ष रहे है, के अनुसार राजस्थानी भाषा शब्दकोश में लगभग ढाई लाख शब्द है और लगभग चार लाख पुस्तकें उपलब्ध है, वह बहुत ही समृद्ध भाषा है और ज्ञान का भंडार है। राजस्थानी लगभग 10 करोड़ लोगों की मातृभाषा है। इस भाषा में राजस्थान के महान सपूतों और शूरवीरों की कहानियां है। राजस्थानी भाषा में कई सांस्कृतिक और शुभ प्रसंगो पर गाए जाने वाले लाखों गीतों, भजनों और कहावतों का भंडार हैं। इस ज्ञान भंडार में कई ऐसे विषय है जो वर्तमान विश्व की समस्याओं का अचूक समाधान दे सकते है। डा. पोखरणा के अनुसार इस वर्ष कोविड होने के बावजूद इस कैलेंडर के निर्माण में भारत और भारत के बाहर रहने वाले लगभग तीस राजस्थानी उद्योगपतियों, वैज्ञानिक संगठनों, राजस्थान फाउंडेशन (राजस्थान सरकार) और दूसरे संस्थानों से जो सहयोग मिला है वह अभूतपूर्व है। उन्होंने इन सब को, अपने परिवारजनों और अपने सभी कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त किया जो कई वर्षों से इस कार्य को कर रहे है और नये नये विचारों पर शोध का कार्य किया है।

राजस्थानी भाषा को मान्यता बेहद जरूरी
यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि इतनी समृद्व भाषा होने के बावजूद भी गत 40 वर्षों से केंद्र की भारत सरकार ने इसको मान्यता नहीं दी हैं। आशा की जानी चाहिए कि जब भारत स्वतंत्रता की 75 वी जयंती मनाने जा रहा है और नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है तो, भारत सरकार 70 वर्षों से जो गलती हुई है उसे सुधारेगी और राजस्थानी भाषा को सविंधान की आठवी सूची में शामिल करेगी।