बीकानेर, 7 दिसम्बर। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणि प्रभ सूरिश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती साध्वीश्री शशि प्रभाश्रीजी.म.सा. के सान्निध्य पांच दिवसीय पंच परमेष्ठी प्रीति परिणयोत्सव के तहत को शनिवार को साध्वीश्री सज्जनश्रीजी म.सा. की 30 वीं पुण्यतिथि पर नाहटा चैक के कुशल भवन में नाटक ’’सद्गुणों के सुमेरू पर एक महान साधिका की संयम संवेदना’’ नाटक का मंचन किया गया। करीब तीन घंटें के इस नाटक का निर्देशन साध्वीश्री शशि प्रभा व सौम्यगुणा की शिष्या संवेग प्रज्ञा व श्रमणी प्रज्ञा ने किया। अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास व नीवीं की तपस्या की। रविवार को कुशल भवन में ही साढे दस बजे गच्छ गौरव की संवेदना चारों गुरुदेव की भाव यात्रा का आयोजन होगा।

जयपुर की मुमुक्षु की ओर से लिखे इस नाटक में बताया गया कि सांसारिक सुख वैभव को छोड़कर किस तरह साध्वीश्री सज्जनश्री ने संयम मार्ग अंगीकार करते हुए आजीवन पांच महाव्रतों को धारण करने का संकल्प लिया। आशु कवयित्री साध्वीश्री सज्जनश्री के अनेक गीतों, काव्यों तथा उपदेशक रचनाओं को भी प्रस्तुति में शामिल किया गया। सज्जन जीवन गाथा में उनके दीक्षा से लेकर अरिहंत शरण होने तक के प्रसंगों को प्रभु व गुरुदेव स्तवनों व गुरु गुण गीतिका कथा और उपदेशिक भजनों के माध्यम से पेश किया गया। ज्ञान वाटिका के बच्चों ने नाटक में भावपूर्ण अभिनय किया। वहीं भजनों व गीतों की प्रस्तुतियां वरिष्ठ गायक सुनील पारख व नेहा पारख ने प्रस्तुत किए ।

नाटक के दौरान उनकी शिष्या साध्वीश्री शशि प्रभा भाव विभोर हो गई। प्रवर्तिनी, स्वनाम धन्य अप्रितम प्रतिभा संपन्न आशु कवयित्री के साथ बिताएं क्षणों की मंच पर प्रस्तुति से उनके आंखों में अश्रुधारा छलक पड़ी। यही आलम श्रावक-श्राविकाओं का था । ज्ञान वाटिका के बच्चों की वेशभूषा और संवादों की अदायगी प्रस्तृुति को प्रभावी बना रही थी। इस अवसर पर साध्वीश्री शशि प्रभा ने प्रवचन में कहा कि मृृत्यु के समय परमात्मा नाम का स्मरण करना चाहिए, विलाप व शोर शराबा करने से मृृतक को आत्मिक कष्ट होता है । मृृृत्यु के समय आत्मा जब शरीर को छोड़ती है जब असहनीय पीड़ा होती है। मनुष्य को हमेशा अपनी निश्चित होने वाली मृृत्यु का स्मरण रखते हुए पाप कर्मों से बचना चाहिए तथा पुण्यकर्मों का संचय करना चाहिए। मृत्यु का कोई भरोसा नहीं होता। जीवन में रहते हुए हर पल प्रभु नाम स्मरण करते हुए प्रभु भक्ति व सदकार्य करने चाहिए। इच्छाओं के रहते हुए प्राण चले जांए तो समझिएगा मृृत्यु हुई है और प्राण के रहते हुए, इच्छाएं चली जांए तो समझिएगा मृृत्यु हुई है।
इस अवसर पर सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा तथा वरिष्ठ श्रावक राजेन्द्र लूणियां ने ’’प्रवचन प्रसादी’’ और कल्पसूत्र के मूल पाठ व प्रतिक्रमण विधि की आॅडियों पेनड्राइव का विमोचन किया गया। नाटक मंें सज्जनश्री म.सा. तथा शशि प्रभाजी म.सा. के किरदार को टिंविंकल नाहटा व आयुषी सावनसुखा ने निभाया ।

वहीं अन्य पात्रों मंें भिनव नाहटा, चित्रा पारख, भूमि मुसरफ, शर्मिला, खुशबू जैन, आयुषी सावनसुखा, कुशाल, सिद्धार्थ, राजश्री, निखिल, विदित, युवराज, पूर्वा, रौनक, रीतिका, हर्षिता व संभव आदि करीब 36 बालक-बालिकाओं व श्राविकाओं ने भूमिका निभाई। नीवीं की तपस्या करीब 125 श्रावक-श्राविकाओं ने की । नींवी की तपस्या की सेवा का लाभ कन्हैयालाल, महावीर व नमन कुमार नाहटा ने लिया। उन्होंने सभी तपस्वियांें को गुरुदेव के पगलिए प्रदान कर सम्मानित किया।