राजनीति अर्थात राज को पाने की नीति !

(गोविन्द गोयल )
श्रीगंगानगर। बीजेपी ने आखिर रात को टिकटें बांट दी। बची खुची भी दे ही देंगे। जो कुछ सामने आया है उससे ये तो नहीं लगता कि बीजेपी कुछ नया करने वाली है। वही चेहरे, वही परिवार और उन्हीं पर दारोमदार। सामान्य वार्डों मेँ महिलाओं को टिकट दी गई। जो तैयारी कर चुके थे, उन्हें पीछे हटना पड़ा। बाजार का वार्ड सामान्य है, किन्तु बीजेपी ने महिला को मैदान मेँ उतार दिया। ऐसा ही एक डिग्गी वाले वार्ड मेँ हुआ। जहां डाक्टरनी को टिकट दी गई है। जबकि उनके पति दो बार इसी वार्ड से जीत चुके हैं। वे ओबीसी की श्रेणी मेँ है। जिन पर विशेष कृपा की है वे सब सभापति के दावेदारों मेँ हैं। ऐसा ही कुछ कांग्रेस कर सकती है।

लोकतन्त्र को डंडे से हाँकते अधिकारी-पार्षद पद के उम्मीदवार को नामांकन पत्र के साथ शपथ पत्र देना होता है… इस शपथ पत्र पर नीचे टिप्पणी है कि यह शपथ पत्र नाम निर्देशन पत्र दाखिल करने के अंतिम दिन अपराह्न 3 बजे तक प्रस्तुत किया जाना चाहिये….लेकिन चुनाव अधिकारी का हुकम है कि नामांकन पत्र के साथ दिया जाये….कोई कुछ नहीं कर सकता। उनको बताया तो उनका कहना कहना था, आपने बता दिया। अब मेरी सुनो, किसी को संशोधन करना हो तब ये लागू होगा। अधिकारी तो मालिक हैं जनाब। वैसे भी ये गंगानगर है, जहां अधिकारी ही माई बाप होते हैं। जनता के भी और जन प्रतिनिधियों के भी।
पार्टी का विरोध करने वाले-विधानसभा चुनाव मेँ अपनी अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का विरोध करने वाले अब अपनी अपनी पार्टियों से टिकट मांग रहे हैं। गज़ब का जज्बा है ऐसे व्यक्तियों मेँ जो पार्टी का खुल्लम खुल्ला विरोध करने के बाद भी पार्टी की चौखट पर जा पहुंचे। वह भी कुछ मांगने। जब देने का वक्त था तब तो इन्होने पार्टी को कुछ दिया नहीं, अब जब पार्टी देने की स्थिति मेँ है तब ये लेने आ गये।

जनता और आम कार्यकर्ता तो ऐसे नेताओं, चेहरों का विरोध करती है। परंतु पार्टी क्षमाशील होती है। उसे सत्ता तक पहुंचाना होता है। इसलिए वह खून के घूंट पी जाती है। पार्टी से गद्दारी करने वालों के साथ जनता क्या करती है, ये चुनाव परिणाम ही बतायेंगे।
शाम तक सब साफ हो जायेगा-घणा गया, थोड़ा रह गया! ये शब्द निकाय चुनाव के संदर्भ मेँ। गली गली से लेकर सोशल मीडिया तक मेँ यही चर्चा है कि अशोक चान्डक परिवार की कोई महिला सभापति के लिए चुनावी मैदान मेँ आयेगी या नहीं! अशोक चान्डक परिवार की भूमिका क्या रहेगी! आज इस सवाल का जवाब मिल जायेगा। राजनीति मेँ रुचि रखने वालों की जिज्ञासा शांत हो जायेगी। आज नामांकन भरने का अंतिम दिन है। शाम तक ये साफ हो जायेगा कि अशोक चान्डक परिवार की किसी महिला ने नामांकन दाखिल किया है या नहीं। नामांकन भरने या ना भरने पर सभी सवालों का जवाब खुद ब खुद मिल जायेगा। और ये भी साफ हो जायेगा कि निकाय चुनाव का ऊंट किसकी ओर करवट लेगा।

जीत के बाद टिकटों का कोई अर्थ नहीं- जैसे ही पार्टी की टिकट पर कोई व्यक्ति पार्षद बन जाता है, वह अपनी मर्जी का मालिक हो जाता है। सभापति चुनाव मेँ अपनी मर्जी से वोट देता है। अविश्वास प्रस्ताव की राजनीति मेँ आगे बढ़ता है। निकाय संस्थानों मेँ भी दल बदल विरोधी कानून लागू होना चाहिये, ताकि पार्षद थाली के लड्डू की तरह इधर उधर ना लुढ़क सकें।