-साहित्यकारों से लेकर कलाकारों और पंजाबी भाषा के पहरेदारों का पूरा समर्थन मिला!_
-जम्मू-कश्मीर के सिख, अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित हैं!_
-इतिहास में पहली बार पंजाबी गायकी के सिरमौर आए किसानों के साथ

चंडीगढ़। खेतीबाड़ी से जुड़े तीन विधेयक पास होने से पूरे पंजाब में बवाल मचा हुआ है। शुक्रवार को पंजाब भर में किसान सड़कों पर उतर आए। इन किसानों को पंजाबी साहित्यकारों से लेकर कलाकारों और पंजाबी भाषा के पहरेदारों का पूरा समर्थन मिला है। यह पहली बार है जब किसानों के साथ पूरा पंजाब एकजुट खड़ा दिख रहा है। इस एकजुटता की मुख्य वजह तो किसान ही हैं, लेकिन साथ ही जम्मू-कश्मीर में पंजाबी भाषा को खत्म करना, पानी पर हरियाणा के साथ विवाद और सिखों के धार्मिक मामलों में दखलंदाजी भी है। इसी कारण कई धार्मिक और पंथक जत्थेबंदियों ने भी खुलकर किसानों का समर्थन किया है। पंजाबी भाषा के चिंतक सतनाम सिंह माणक व दीपक बाली का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में पंजाबी भाषा को पहले ही मान्यता मिली हुई थी। केंद्र के वर्तमान भाषा बिल में पंजाबी को नजरअंदाज कर उर्दू, कश्मीरी, डोगरी, हिंदी और अंग्रेजी भाषा को आगे लाया गया है। जम्मू-कश्मीर में बसे लाखों लोग पंजाबी बोलते हैं। नए भाषा बिल से पंजाबी बोलने वाले लाखों लोगों को ठेस पहुंची है। जम्मू-कश्मीर में पहले ही सिखों को अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित किया हुआ है। बिल को लागू कर सिखों के साथ एक और धक्का किया गया है। इसी कारण पंजाबी भाषा से जो प्यार करता है और अपनी मां बोली का पहरेदार है वह किसानों के साथ खड़ा है।

– इतिहास में पहली बार पंजाबी गायकी के सिरमौर आए साथ
_सतनाम माणक व दीपक बाली का कहना है कि इतिहास में पहली बार है कि पंजाबी गायकी के सिरमौर कलाकार, बुद्धिजीवी, साहित्यकार पहली बार खुलकर मैदान में हैं। यह जंग अकेले किसानों की नहीं है, पंजाब को बचाने की भी है। सिख तालमेल कमेटी के प्रधान तजिंदर सिंह परदेसी, हरपाल चड्डा व हरपनीत सिंह नीटू का कहना है कि हम शहरी वर्ग के सिख हैं लेकिन हम किसानों के साथ खड़े हैं। यह जंग किसानों की नहीं है, हमारी सिखी की भी है। हमारे धर्म में केंद्र सरकार कैसे दखलंदाजी कर रहा है, किस तरह से अल्पसंख्यकों को दबाया जा रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। सिख समुदाय को आपस में बांटा जा रहा है। सिख बहादुरों की कौम है। इसलिए हमारी धार्मिक जत्थेबंदी किसानों के साथ साथ पंजाब व सिखों के साथ हो रही बेइंसाफी को खत्म करने के लिए खड़ी है।

– पंजाब के साथ केंद्र हमेशा सौतेला व्यवहार करता आया
कनाडा में बसे पंजाबी व पंजाबियत के चिंतक गुरप्रीत सिंह सहोता का कहना है कि पंजाब के साथ केंद्र हमेशा सौतेला व्यवहार करता आया है। वैंकुवर में रहने वाले गुरप्रीत सिंह सहोता का कहना है कि पंजाब में इंडस्ट्री को खत्म किया गया, सारा पैकेज पहाड़ी राज्यों को देकर इंडस्ट्री को हिमाचल उत्तराखंड शिफ्ट करवाया गया। अब एक योजना के तहत किसानी को खत्म किया जा रहा है। कनाडा में बसे सारे पंजाबी एनआरआई किसानों के साथ खड़े हैं। पंजाब बंद में किसानों को खुलकर समर्थन दे रहे हैं। पंजाबी में किसी समय पानी 40 फुट नीचे था, आज 400 फुट नीचे हो गया। पंजाब के 70 साल देश की जनता को अपना पानी खत्म कर अनाज खिलाया है और आज पंजाब व किसानी को एक योजना के तहत खत्म किया जा रहा है। यही वजह है कि पंजाब को आज तक पानी का इंसाफ नहीं मिला। पंजाब सीमावर्ती इलाका है, लेकिन पंजाब को क्या मिला है।केंद्र सरकार प्रादेशिक भाषा और प्रादेशिक पार्टी को खत्म करना चाहती है और किसानों को खत्म करना इसका एक हिस्सा है लेकिन एनआरआई पंजाब के साथ हैं। विदेशों में जितने भी बुद्धिजीवी, कलाकार या लेखक हैं, वह किसानों के साथ हैं। यह पहली बार है जब एनआरआई, किसान, साहित्यकार, कलाकार, किसान और व्यापारी एकजुट हैं ।