उम्मेद ग्रंथावली का लोकार्पण समारोह आयोजित
(ओम एक्सप्रेस ब्यूरो)
बीकानेर , 15 मार्च। उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा कि राजस्थानी भाषा के पुरातन साहित्य को पुनः प्रकाश में लाने का काम करने वाले साहित्यकार बधाई के पात्र है, इससे हमारी मातृभाषा और समृद्ध हो सकेगी।
भाटी ने रविवार को रानी बाजार इंडस्ट्रियल एरिया स्थित सीता कुंज में डॉ मंजुला बारैठ द्वारा संपादित पुस्तक उम्मेद ग्रंथावली के लोकार्पण समारोह में यह बात कही। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए राज्य सरकार कृत संकल्पित है और इसी क्रम में राज्य सरकार ने विधानसभा में संकल्प पारित करवाकर आगे की प्रक्रिया पूरी करने के लिए केंद्र सरकार के पास भिजवाया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष विश्व मातृभाषा दिवस को राज्य में राजस्थानी भाषा दिवस के रूप में मनाए जाने का नवाचार किया गया, जिससे युवा पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से नजदीकी से परिचित होने का अवसर भी मिल सका है।

भाटी ने कहा कि डॉ मंजुला बारैठ द्वारा उम्मेद ग्रंथावली के रूप में उम्मेद राम जी की रचनाओं का संकलन राजस्थानी भाषा में शोध के लिए भी उपयोगी साबित होगा। उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार उच्च शिक्षा क्षेत्र में संसाधन विकसित करने की दिशा में प्रयासरत है और इसी क्रम में देशनोक में राजकीय महाविद्यालय इसी सत्र से प्रारंभ हो जाएगा। साथ ही इस बजट में 35 नए राजकीय विद्यालय स्वीकृत किए गए हैं।
कार्यक्रम में पूर्व गृह राज्यमंत्री वीरेंद्र बेनीवाल ने कहा कि प्रेरक व्यक्ति का जीवन यदि सही शब्दों में पिरोया हो तो आने वाली पीढ़ियों के लिए वह एक मार्गदर्शन के रूप में काम कर सकता है। उन्होंने उम्मेद ग्रंथावली के संकलन के लिए डॉ मंजुला बारेठ को बधाई देते हुए कहा कि यह प्रयास एक ऐसा नवाचार है जिसमें एक पीढ़ी के कृतित्व से दूसरी पीढ़ी को प्रेरित होने का अवसर मिलेगा। विवादास्पद रहने वाली पुस्तकों को वर्तमान में जल्द पहचान मिलती है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में ऐतिहासिक साहित्य को प्रकाश में लाने का काम अत्यधिक जिम्मेदारी से भरा है। बेनीवाल ने कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि डॉ मंजुला का प्रयास नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध साहित्यिक परंपरा से रूबरू करवाएगा।

इस अवसर पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. अर्जुन देव चारण ने कहा कि ज्ञान परंपरा भारत की समृद्ध विरासत रही है और नई पीढ़ी को अपनी इस ज्ञान परंपरा को सहेजने और संभालने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि परंपरा में हर युग में अपने हिसाब से परिवर्तन होता है और हमें उन परिवर्तनों को स्वीकार करते हुए अपनी परंपरा का पोषण करना चाहिए। अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए नये लेखक पुरातन ग्रंथों का अध्ययन करें ताकि ज्ञान की समृद्ध परंपरा को समझा जा सके और समाज के कल्याण के लिए इसे उपयोग में लाया जा सके। चारण ने कहा कि उम्मेद राम जी की रचनाओं का संकलन कर वर्तमान पीढ़ी के समक्ष लाने से इस पीढ़ी को ज्ञान का नया दृष्टिकोण मिलेगा, उन्हें ऐसी उम्मीद है। उच्च शिक्षा सहायक निदेशक राकेश हर्ष ने कहा कि लुप्तप्राय साहित्य को समाज के सामने लाना एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए लेखक बधाई की पात्र हैं।

साहित्यकार मधु आचार्य ने कहा कि चारण साहित्य का राजस्थानी साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है। डॉ मंजुला बारेठ ने इस पुस्तक के जरिए उस परंपरा को सामने लाने का काम किया है जो आज भी जीवंत है । इससे नए साहित्यकारों को सीख मिलेगी और राजस्थानी शोध के लिए एक मानक ग्रंथ उपलब्ध हो सकेगा। इस अवसर पर गोविंद स्वरूप महाराज ने आशीर्वचन दिए। समारोह में राजस्थानी भाषा और साहित्य अकादमी के पूर्व उपसचिव पृथ्वीराज रतनू, भगवान सिंह खेड़िया, मोहन सिंह रतनूं, विजय आचार्य, डॉ आनंद सिंह बीठू, डॉ कुलदीप बीठू, राजेंद्र जोशी, कमल रंगा, बुलाकी शर्मा, कैलाश दान लालस, हरीश बी शर्मा ,मनोहर सिंह लूणा, शुक्ला बाला पुरोहित सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजेंद्र बारैठ ने किया।