हर्षित सैनी
रोहतक, 7 जनवरी। पैतृक संपत्ति में बेटी का कानूनी अधिकार के विषय पर राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कलानौर के प्रांगण में आयोजित एनएसएस शिविर के दौरान जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण रोहतक के परम उद्देश्य न्याय सबके लिए के प्रचार प्रसार के लिए सीजेएम खत्री सौरभ के कुशल मार्गदर्शन में उपरोक्त विषय पर जिला विधिक सेवाएँ प्राधिकरण रोहतक के पैनल के वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप द्वारा विस्तार से जानकारी दी गई।
कश्यप ने बताया कि भारतीय समाज के परिवारों में आज भी कुल का चिराग बेटे को ही माना जाता है लेकिन आज न्याय के सबसे बड़े मंदिर सर्वोच्च न्यायालय में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पैतृक संपत्ति के मामले में अब बेटी का भी जन्म से अधिकार बन चुका है। न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की बैंच ने कहा है कि संशोधित कानून यह गारंटी देता है कि बेटी भी पैतृक संपत्ति में जन्म से ही साझीदार होगी और उसके भी उसी तरह के अधिकार और उतरदायित्व होंगे जैसे बेटे के होते हैं।

उन्होंने बताया कि बेंच ने कहा कि पैतृक संपत्ति में बेटी के हिस्से को इस आधार पर देने से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उसका जन्म वर्ष 2005 में कानून बनने से पहले हुआ था। प्रकाश एवं अन्य बनाम फूलवती के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि बेटी को संपत्ति में बराबर का हिस्सेदार तभी माना जाएगा, जब पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित हो। बेटी और बेटों को पिता की संपत्ति में बराबर का उत्तराधिकारी बनाने का प्रावधान 1956 के उत्तराधिकार अधिनियम नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय का सामाजिक न्याय के संबध में यह एक ऐतिहासिक निर्णय है।

इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप, प्रिंसिपल देवेन्द्र कटारिया, मैडम सरिता, सुनीता, नीलम कटारिया, श्रुति व विद्यार्थी उपस्थित रहे।