संवाददाता सुनिल ज्ञानदेव भोसले

बहुमुखी प्रतिभा के धनी संजय ”अमान ” का जन्म १ अप्रैल सन १९७८ को चौरी चौरा जिला गोरखपुर में श्री रमाशंकर विश्वकर्मा के घर हुआ । शिक्षा बलरामपुर शहर में हुई है। बहुत ही कम उम्र से ही लेखनी और काव्य विद्या से जुड़े संजय ”अमान ” जी ने मात्र १६ वर्ष उम्र में ही अपना खुद का साप्ताहिक अखबार ”किंग टाइम्स ”शुरू किया था। महानगर मुम्बई में रह कर साहित्य , कला , सिनेमा , पत्रकारिता , में अपनी शक्रिय भूमिका निभाते हुए कलम के माध्यम से देश और समाज की सेवा कर रहे है। उनकी लिखी काव्य पुस्तक ” पैबंद ” का तीसरा संस्करण का प्रकाशन मुम्बई हिंदी साहित्य अकादमी के द्वारा किया जा रहा है

” पैबंद ” काव्य पुस्तक अपने प्रकाशन के दिन से ही हिंदी साहित्य जगत में काफी चर्चा का विषय बना रहा है। बड़े बड़े साहित्यकारों ने अपनी अपनी विभिन्न प्रतिक्रियाएं इस काव्य पुस्तक को ले कर व्यक्त किया और लिखा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और साहित्यकार प्रेमचंद पर साहित्यजगत में बड़ा काम करने वाले डॉ. कमल किशोर गोयनका पैबंद पर लिखते है कि -” यह जीवन का ” पैबंद ” नहीं , जीवन की कहानी है। इन कविताओं में गति है ,प्रवाह है क्योकि वे जीवन की गामद अनुभूतियों से जन्मी है। कवि एक प्यारा जहाँ चाहता है , पर वह है कहाँ ? उसे मिले कैसे ? इसीलिए वह रोज़ जीवन का मरना जीना लिखता है , परन्तु वह हारता नहीं -‘ बस लड़ना है अँधेरे से उजाले के लिए यह अन्धकार से प्रकाश की कड़ाई ही जीवन की सच्ची लड़ाई है जो आदिकाल से चल रही है और कभी खत्म होने वाली नहीं है।

वही नागपुर के जाने माने साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र पटोरिया , लिखते है कि -” काव्य संग्रह पैबंद शुरू से अंत तक पूरे मनोयोग से पढ़ा ।
मेरा मकान , शांतिवन, मैं थक गया, प्रश्न चिन्ह , हिन्दुस्तान हूँ , मेरा सपना , शहर , सुकून ,खिलौने , दिल्ली का प्लेटफॉर्म , नंगी तस्वीरे , अज्ञात शव , मरीन ड्राइव आदि कविताएँ मन को छू गई । आज कल बहुत अच्छा लिखा जा रहा है ।

दैनिक नवभारत में प्रकाशित कुमार वीरेंद्र की समीक्षा में संजय अमान की कविताओं की तुलना गोरख पांडेय की की गई है कुमार वीरेंद्र लिखते है कि – ” संजय अमान की कविताएं हमारे ” स्वप्नों का भारत ” की कविताएं नहीं है , बल्कि उस यथार्थ की कविताएं है , जिसे देखकर गोरख पांडेय ने कभी कहा था कि -‘ जितनी जल्दी हो सके इस दुनिया को बदल देना चाहिए।

वही हिंदी सामना के स्तम्भकार राजेश विक्रांत लिखते है कि – ” मीडियाकर्मी संजय अमान के पैबंद काव्य संग्रह के पहली शीर्षक कविता को पढ़ कर ही अमान की कविताओं का तेवर मालूम हो जाता है। वे मूल रूप से संवेदनाओं के कवि है। उनके मन में सामाजिक विसंगतियों के प्रति गहरा आक्रोश है जो कि उनकी कविताओं में भलीभांति दिखती भी है। तक़रीबन सभी कविताओं में अमान की आवाज़ अच्छी तरह से मुखर होती है। वे जब -जब विसंगतियों के रूबरू होते है तब – तब उनकी लेखनी से एक नई कविता फूट पड़ती है।

यैसी बहुत सारी प्रतिक्रियांए संजय अमान की आने वाली पुस्तक के तीसरे संस्करण ” पैबंद ” के बारे में हिंदुस्तान के बड़े बड़े साहित्यकारों ने लिखा और व्यक्त किया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मोहम्मद वाजिहुद्दीन उन्हें एक – ” विद्रोही कवि के तौर पर लिखते हुए कहता है संजय अमान ने पैबंद के ज़रिये इस बिगड़ैल समाज की जम कर खबर ली है।

सच भी यही है संजय अमान एक संवेदनाओ के कवि लेखक और पत्रकार है पिछले ३० वर्षो की अपनी लेखन यात्रा में उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से देश की सेवा करते हुए समाज के हर वर्ग के लिए बड़ी मुखरता के साथ आवाज़ उठाई है।

मीडिया में रह कर इन्होने बहुत सी विज्ञापन फिल्मों और वृत्तचित्र का निर्माण कार्य के साथ -साथ बहुत सी बड़ी और छोटी बजट की फिल्मो का प्रचार प्रसार का काम भी किया हैं। संजय अमान का परिचय बहुत लंबा है जितना लिखा जाए कम है।

उन्हें बहुत से सरकारी और गैर सरकारी सम्मान मिल चुके है जैसे – महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का संत नाम देव सम्मान (२०१८ -२०१९ ) , मराठा मंदिर साहित्य शाखा द्वारा ” अटल श्री साहित्य सेवा सम्मान २०१९ , छत्रपति शिवा जी सम्मान , युगप्रवर्तक साहित्य संस्थान द्वारा ” डॉ. गिरिजा शंकर द्रिवेदी पत्रकारिता सम्मान ”,पराज स्पर्श द्वारा उत्कृष्ट काव्य लेखन के लिए ”पराज सर्वोत्तम सम्मान ”, राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा ” काव्य भूषण सम्मान ” , श्री विश्वकर्मा विकास समीति द्वारा ” काव्य रत्न सम्मान ” ,ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक द्वारा ,” ज्ञानोदय साहित्य भूषण सम्मान ” ,कृष्णा क्रिएशन द्वारा ”गौरव सम्मान ” , श्री विश्वकर्मा समीति कलीना द्वारा ”समाज गौरव सम्मान ” , शिव साई मित्र मंडल द्वारा ” समाज भूषण सम्मान ” इत्यादि विभिन्न सामाजिक , साहित्यिक संस्थानों द्वारा संजय ”अमान ” को सम्मानित किया गया है।