प्रदेश में सत्ता का संघर्ष जटिल होता जा रहा है,बागी विधायकों के इस्तीफेनुमा पत्र को किसी नतीजे पर पहुंचाने के विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति आज भी विधानसभा सचिवालय द्वारा बुलाये गये विधायकों का इंतजार करते है,रात को उन्होंने ६ बर्खास्त मंत्रियों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए | अब विधानसभा अध्यक्ष रुष्ट हैं| उनकी रुष्टता की दो वजह साफ़ है १. विधायकों का बुलाने पर न आना २. उनके नाम का फर्जी ट्विटर अकाउंट बनाना |विधानसभा अध्यक्ष ने कुछ बागी विधायकों पर कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

विधानसभा के अधिकारिक सूत्र फर्जी ट्विटर अकाउंट बनाने की शिकायत पुलिस में किया जाने की पुष्टि कर रहा है | भाजपा ने भी राज्यपाल से मुलाकात कर फ्लोर टेस्ट की मांग की। मुख्यमंत्री कमलनाथ भी शुक्रवार को राज्यपाल से मिले थे। इसके बाद उन्होंने भी कहा था-“ फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हूं, लेकिन पहले विधायकों को मुक्त कराएं।“ इस बाबत उन्होंने एक पत्र देश के गृह मन्त्री अमित शाह को भी लिखा है |
इस्तीफा नुमा पत्र लिखने वाले सभी २२ विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष ने तीन अलग-अलग तारीखों में बुलाया था। अब ये विधायक १५ मार्च को शाम ५ बजे तक पेश हो सकते हैं। चर्चा इस बात को लेकर भी है कि अगर सभी विधायक विधानसभा अध्यक्ष के सामने उपस्थित नहीं हुए तो सरकार फ्लोर टेस्ट टाल सकती है या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती है। ६ पूर्व मंत्रियों के विधायक के रूप में इस्तीफे स्वीकार होने का प्रभाव सदस्य संख्या और राज्यसभा चुनाव पर भी होगा |

विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने कहा कि वे नियम प्रकियाओं से बंधे हुए हैं। वे इस्तीफा देने वाले विधायकों से मुलाकात का इन्तजार कर रहे हैं। शनिवार को छुट्टी के बाद भी वे अधिकारियों के साथ विधानसभा में मौजूद थे और रविवार को भी संबंधित विधायकों का इन्तजार करेंगे। उन्होंने दो-तीन विधायकों पर कार्रवाई किये जाने के संकेत भी दिए। इशारों-इशारों में उन्होंने कहा- कुछ विधायकों के मामले गंभीर हैं। इन्हें रखूं या निकालूं, इस पर अलग तरीके से निर्णय लूंगा। ट्विटर और सोशल मीडिया के कारनामों से मध्यप्रदेश सरकार के साथ केंद्र भी दुखी है |

भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार कुछ कड़े फैसले ले सकती है| डिजिटल दुनिया भौगोलिक सीमाओं से परे है, जिस पर नियंत्रण आसान नहीं है| इस आभासी दुनिया की समस्याएं वास्तविक जीवन पर भी असर डालती हैं| यूट्यूब, गूगल, व्हॉट्सएप, फेसबुक और टि्वटर सार्वजनिक प्लेटफार्म हैं, जहां पोर्न, फेक न्यूज, हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली खबरें साजिशन भी साझा की जारही हैं| इसे चिह्नित करने और उस पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की है| हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा ६९ ए सरकार को ऑनलाइन कंटेंट पर निगरानी रखने और उसे हटाने का अधिकार देती है|

फर्जी खबरों से संबंधित शिकायतों के निस्तारण में ट्विटर समेत विभिन्न कंपनियों का रवैया संतोषजनक नहीं रहा है| फेसबुक, गूगल ने मामूली सुधार किया है. आइटी अधिनियम के संशोधनों के लागू होने के बाद इन कंपनियों पर कड़े प्रावधान लगाये जा सकते हैं| ज्यादातर सोशल मीडिया कंपनियां अपनी कंटेंट पॉलिसी घोषित करती हैं, जिसमें धमकी भरे संदेशों, हिंसा बढ़ानेवाले बयानों को प्रतिबंधित करने का दावा तो करती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं| नेताओं के नफरती भाषण, आपत्तिजनक वीडियो व संदेश इन माध्यमों पर तैरते रहते हैं| उसी का शिकार मध्यप्रदेश विधानसभा भी हुई |
आज कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। इसमें सभी विधायकों को शामिल होने के निर्देश दिए गए हैं। इस बैठक में सरकार बचाने की रणनीति पर चर्चा होगी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह और रामपाल सिंह ने कल शाम को राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की। राजभवन से बाहर आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा- “हमने राज्यपाल को बताया कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है। उनके पास सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है, इसलिए १६ मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण और बजट सत्र का कोई मतलब नहीं है। हमने राज्यपाल से अनुच्छेद १७५ के तहत सरकार को विश्वासमत प्राप्त करने का निर्देश देने की मांग की।“