कोलकाता, 10 नवंबर 2020। ‘ कविता मानवीय संवेदना की सुंदरतम अभिव्यक्ति होती है। जीवन की विसंगतियों के बीच सुसंगति का मार्ग तलाशता है कवि। श्रोताओं का प्रेम प्राप्त करना ही काव्य का प्रयोजन होता है। श्रोताओं पाठकों से सीधे जुड़कर ही रचना सार्थकता पाती है।’ ये विचार हैं साहित्यकार डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी के, जो बनेचंद मालू की काव्य-कृति ‘चिंतन प्रवाह-२’ का लोकार्पण करने के उपरांत एक आत्मीय अनुष्ठान में बोल रहे थे। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि मालू की कविताएं अनुभव की आंच में तप कर निकली हैं, इसलिए युवा-पीढ़ी तथा समाज के लिए उनमें सार्थक संदेश निहित है। सरलता एवं साफगोई उनका सबसे बड़ा गुण है। आभासी माध्यम (जूम एप तथा फेसबुक पटल) से इस लोकार्पण समारोह में देश-विदेश के काव्य प्रेमियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

बनेचंद मालू ने अपने वक्तव्य में काव्य-सृजन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए अपने आसपास के जीवन एवं समाज में बिखरे संदर्भों को रचनाओं का हेतु बताया। उन्होंने कहा कि नियमित लेखन के साथ पाठकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उन्हें ऊर्जा प्राप्त होती है। मालू ने कहा कि उन्हें सर्वप्रथम प्रोफेसर कल्याण मल लोढ़ा से शुभाशीर्वाद मिला था। उन्होंने रचनाओं के प्रकाशन हेतु लेखिका डॉ. तारा दूगड़ की सतत प्रेरणा का भावपूर्ण स्मरण किया। सुशील बाफना ने कहा कि मालूजी की रचनाओं में जन-भावना अभिव्यक्ति पाती है। समस्याओं की जटिलता के साथ समाधान का सहज मार्ग उनकी रचनाओं की विशेषता है।