बीकानेर। यूं तो होली की तरंग बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है, लेकिन बीकानेर की असली होली का रंग खेलन सप्तमी की रात से शुरू होता है। इस बार खेलनी सप्तमी आज मनाई जाएगी ।
बीकानेर रियासत के शासक राठौड़ों की कुलदेवी नागणेचीजी के मंदिर से आदेश लेकर जब शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज शहर में लोकगीत गाते हुए प्रवेश करते हैं तब विधिवित रूप से होलाष्टक लग जाते हैं। रियासत काल से ही परंपरा रही है कि शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज के लोग बीकानेर में होली का आगाज करते हैं।

इससे पहले देवी का फागोत्सव होता है। देवी की स्तुतियां गाईं जाती हैं। आपस में लोग फाग खेलते हैं और फिर देर रात चंग बजाते हुए शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज की जाति मूंघाड़ा सेवक जाति के पुजारी मंदिर से रवाना होते हैं। गोगागेट पर इनके साथ हंसावत सेवक भी जुड़ जाते हैं। यहां से सकल शाकद्वीपीय समाज मिलकर शहर में प्रवेश करता है। दो समूह में लोकगीत गाते हुए समाज के लोग चलते हैं। एक में युवा और दूसरे में वरिष्ठजन सम्मितलित रहते हैं। गोगागेट से बागड़ी चौक, न्यू सर्कुलर मार्केट, बड़ा बाजार, सब्जी मंडी, मरुनायक चौक, चौधरियों की गली से होते हुए यह गेवर सेवगों के चौक पहुंचती है।

यह रियासतकालीन परंपरा का हिस्सा है, जिसमें शाकद्वीपीय समाज का यह अधिकार मिला हुआ है कि वे शहर में होली का आगाज करे। क्योंकि शाकद्वीपीय समाज के लोग देवी के पुजारी हैं। उन्हें यह जानकारी होती थी कि राज में इन दिनों किस तरह का माहौल है। उसी के अनुरूप जो राज का आदेश होता, उसी तरह से होली का आगाज करते, जिससे प्रजा को यह पता चल जाता कि होली किस तरह से मनाई जानी है।
आजादी के बाद हालांकि राजशाही चली गई, लेकिन परंपरा अभी तक कायम है। खेलनी सप्तमी का लोग इंतजार करते हैं। जैसे-जैसे रात चढऩे लगती है। लोग बड़ाबाजार में आकर सेवगों की गेवर का इंतजार करते हैं। जैसे ही गेवर सामने से आती दिखाई देती है, लोग भी सुर में सुर मिलाने लग जाते हैं। शाकद्वीपीय ब्राह्मणों द्वारा होली के आगाज के साथ ही शहर में रम्मतों के आयोजन शुरू हो जाते हैं।

बीकानेर में होली खेलने से पहले लेते है नागणेची माता से स्वीकृति*
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होली से पहले खेल सप्तमी के दिन शहर के लोग एकत्रित होकर फाल्गुन शुक्ला सप्तमी (खेल सप्तमी) को माँ भगवती नागणेची के दरबार पहुचते है और सबसे पहले भगवती को होली खेलाकर उन्हें रिझाते है और प्रार्थना करते है कि आज 8 दिन लगातार उन्हें होली खेलने की इजाजत दे और इस दौरान शहर में शांति सद्भाव बना रहे और आनन्द की बयार बहती रहे। यह परम्परा वर्षो से चली आ रही है सात शाकद्वीपीय समाज के लोग एवम् भक्त अपने भाव से माता द्वारा शहर में होली खेलने की स्वीकृति लेकर शहर में गुलाल उछालते हुवे भजन गीत गाते हुवे शहर परकोटे में जब प्रवेश करते है तो यह समझा जाता है कि अब शहर में होली खेलने की स्वीकृति माता से मिल गई है, खेल सप्तमी के दूसरे दिन से लगातार दिन-रात किसी न किसी चौक या गुवाड़ में होली का कार्यक्रम होता रहता है। आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति के बीच बीकानेर शहर ने आज भी अपने शहर की मौलिक परम्परा संस्कृति को कायम रखा है।
– रमक झमक
प्रहलाद ओझा ‘ भैरू ‘