महेश झालानी

भाजपा नेतृत्व ने सचिन पायलट और उनके साथी विधायकों को पार्टी में शामिल करने से दो टूक शब्दों में इनकार कर दिया है । भाजपा नेताओं ने अपनी पहली शर्त दोहराते हुए पहले 30 विधायको का बंदोबस्त करने को कहा है । जबकि पायलट खेमे में 18 विधायक ही है । इनमे से तीन विधायक वापिस गहलोत खेमे में आने के लिए लालायित है ।

मैंने पहले ही स्पस्ट शब्दो मे कहा था कि पायलट भाजपा में इसलिये नही जाएंगे क्योकि भाजपा ने न्यूनतम 30 विधायको की संख्या की शर्त लगाई थी । जबकि पायलट बमुश्किल 18 विधायको का ही बंदोबस्त कर पाए थे । आज सुबह जब भाजपा नेताओं की पायलट गुट से बात हुई तो उन्होंने कोई खास दिलचस्पी नही दिखाई ।

सूत्रों ने बताया कि भाजपा फिलहाल कोई जोखिम नही उठाना चाहती है । वह वेट और वाच की नीति के आधार पर चल रही है । जैसे ही परिस्थियां भाजपा के अनुकूल होगी, वह सचिन के कंधे पर बंदूक रखकर गहलोत का शिकार करना चाहेगी । अभी राजनीतिक स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल नही है ।

यह भी ज्ञात हुआ है कि ब्रजेन्द्र ओला तथा गजेंद्र सिंह शेखावत वापिस गहलोत खेमे में आने को उत्सुक है । इसके अलावा एक अन्य विधायक सचिन गुट से अपना पिंड छुड़ाने की इच्छा जाहिर कर चुके है । दरअसल सचिन पायलट सहित उनके समर्थक विधायको को यह उम्मीद नही थी कि कांग्रेस पार्टी इतना कठोर कदम भी उठा सकती है ।

परसो सोमवार तक सचिन पायलट आक्रामक मुद्रा में थे । वे यह मानकर चल रहे थे कि गहलोत को हटाने में वे कामयाब होंगे । आलाकमान के अड़ियल रवैये के बाद उन्होंने गहलोत को हटाने के बजाय अपने समर्थक चार विधायको को मंन्त्री पद तथा एक को विधानसभा अध्यक्ष की मांग रखी । इसके अलावा खुद के लिए गृह, वित्त और स्वायत्त शासन विभाग का प्रस्ताव रखा जिसे आलाकमान ने मानने से इनकार कर दिया ।

पायलट और उनके समर्थक दो मंत्रियों विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा की बर्खास्तगी के बाद अंसतुष्ट विधायको के एकाएक सुर बदल गए । जो परसो तक आक्रामक मुद्रा में थे, वे आगये बचाव की मुद्रा में । पायलट समर्थक विधायक यह राग अलापने लगे कि हम पार्टी के प्रति ईमानदार थे और हमने कभी अनुशासन नही तोड़ा ।

इसके बाद पायलट के दोस्त जतिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा आदि एकाएक सक्रिय होकर पायलट के समर्थन में ट्वीट करने लगे । परसो जब पायलट पार्टी आलाकमान को ब्लैकमेल कर रहे थे, तब इनकी जुबान पर ताले लगे हुए थे । जैसे ही पायलट की बर्खास्तगी हुई तो ये लोग स्यापा मनाने लगे । प्रियंका और सोनिया से पुनर्विचार का आग्रह करने के लिए उनके दरवाजे पर ढोक देने लगे ।

बहरहाल ! पायलट गुट के पास समझौते के अलावा कोई मजबूत विकल्प नही है । या फिर वे नई पार्टी की घोषणा भी कर सकते है । सवाल यह पैदा होता है कि वे गहलोत को परेशान तो कर सकते है, लेकिन हाथ मे उनके भी कुछ नही आने वाला है । एक मिनट के लिए मान लेते है कि पायलट का भाजपा में प्रवेश हो जाता है तो उनको और इनके साथियों को वो इज्जत कभी नही मिलेगी जो इन्हें कांग्रेस में हासिल थी । असली स्थिति पायलट द्वारा पत्ते खोंलने के बाद ही स्पस्ट होगी ।