युवा आंदोलनों और प्रदर्शनों की आग अब सिर्फ भारत के कोने-कोने में ही नहीं, विदेशों में भी फैल रही है। पिछले पांच साल में नरेंद्र मोदी ने विदेशों में भारत की छवि को जो चमकाया था, वह धूमिल पड़ रही है। दबी जुबान से ही हमारे मित्र राष्ट्र भी हमारी आलोचना कर रहे हैं। इसका कारण क्या है ? यदि गृहमंत्री अमित शाह की माने तो इन सारे आंदोलनों और तोड़-फोड़ के पीछे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों का उकसावा है। आंशिक रुप से यह सत्य है। उनका उकसावा क्यों न हो ? वे आखिरकार विपक्षी दल हैं। वे भाजपा की खाट खड़ी करने के किसी भी बहाने को हाथ से क्यों फिसलने देंगे ? लेकिन इस बगावत की आग के फैलते होने का ठीकरा सिर्फ विपक्षी दलों के माथे फोड़ देना शतुर्मुर्ग-नीति ही कहलाएगा। इसकी बहुत ज्यादा जिम्मेदारी भाजपा की अपनी है। उसने तीन तलाक, बालाकोट और कश्मीर का पूर्ण विलय- ये तीनों काम ऐसे किए कि उसे जनता का व्यापक समर्थन मिला लेकिन शरणार्थियों को नागरिकता देने का ऐसा विचित्र कानून उसने बनाया कि देश के न्यायाप्रिय लोगों और खासकर मुसलमानों को उसका जबर्दस्त विरोध करने का मौका मिल गया। नागरिकता रजिस्टर जैसी उत्तम और सर्वस्वीकार्य जैसी चीज़ भी उक्त कानून का शिकार बन गई। जो तीन अच्छे काम किए गए थे, उनसे भी नाराज लोगों को अब अपना गुस्सा प्रकट करने का मौका मिल गया।

इसी में जनेवि की फीस-वृद्धि का मुद्दा भी जुड़ गया। पांच साल का अंदर दबा हुआ सही या गलत गुस्सा अब एकदम बाहर फूट रहा है। नौजवान इसकी अगुआई कर रहे हैं। उनमें हिंदू-मुसलमान सभी शामिल हैं। ज.ने.वि. में हुई गुंडागर्दी ने देश के सभी नौजवानों पर उल्टा असर डाला है। मुझे शंका है कि कहीं यह किसी आंधी का रुप धारण न कर ले। बेहतर तो यह होगा कि ज.ने.वि. में गुंडागर्दी करनेवाले अपने लोगों को सरकार पकड़े और दंडित करे। उनसे माफी मंगवाए। और दूसरा काम वह यह करे कि नागरिकता संशोधन विधेयक फिर से संशोधित करे। उसमें से या तो मजहब की शर्त हटा दे या फिर उसमें सभी मजहबों को जोड़ ले।