अशोक भाटिया…
हाल ही में हिंदी के एक प्रमुख समाचार पत्र में समाचार छपा है कि ‘किसानों से ज्यादा खुदकशी करते है बेरोजगार ‘ यह सही है | पर इसके साथ यदि हम यह भी ध्यान करें कि बेरोजगारी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कई विकसित देशों की भी समस्या है। फ्रांस में बेरोजगारी दर 8.8 प्रतिशहालांकि यह दर चीन में 3.6 प्रतिशत और जापान में 2.6 प्रतिशत है। इसकी एक वजह यह है कि जापान और चीन में युवाओं का प्रतिशत भारत की तुलना में कम है। वैसे तो बेरोजगारी के कई कारण हैं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बेरोजगारी की समस्या की जड़ हमारी शिक्षा प्रणाली है, चाहे वह औपचारिक शिक्षा हो या अनौपचारिक। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत हर साल सबसे अधिक संख्या में इंजीनियर तैयार करने के लिए जाना जाता है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि 82 प्रतिशत भारतीय इंजीनियरों के पास वह मूलभूत कौशल नहीं है जिसकी आज के तकनीकी युग में आवश्यकता है।

हमारा आर्थिक विकास मॉडल कुछ महानगरों पर केंद्रित है। देश के चुनिंदा 8-10 महानगरों के अलावा अन्य इलाकों में नौकरियों के बहुत कम अवसर पैदा हो रहे हैं। इसकी वजह से छोटे शहरों से निकलने वाले युवाओं को भी अपनी पहली नौकरी महंगे महानगरों में ढूंढनी पड़ती है। बढ़ती बेरोजगारी का एक बड़ा कारण हमारे गांवों की स्थिति भी है। हमारा कृषि क्षेत्र मंदी के लंबे दौर से गुजर रहा है। 1993 से 2019 तक किसानों की आय में दो प्रतिशत से भी कम की सालाना बढ़ोतरी हुई है। हालांकि कृषि रोजगार का एक बड़ा जरिया है, लेकिन कृषि क्षेत्र में चल रही निरंतर मंदी के कारण वहां हो रही आत्महत्याए पहले ही चर्चा का विषय है |
जाहिर है कि निराश युवा किसान भी बेरोजगारी के आंकड़ों में दिखेंगे। बेरोजगारी का एक अन्य कारण तकनीकी बदलाव भी है। पिछले तीन-चार दशकों में तकनीक के क्षेत्र में काफी तेज विकास हुआ है। आज अधिकतर कंपनियां अपने कॉल सेंटरों पर इंसान नहीं, कंप्यूटर का प्रयोग कर रही हैं। टैक्सी बुक करने से लेकर खाना और सामान मंगाने का कार्य एप से हो रहा है। औद्योगिक क्षेत्र में ऑटोमेशन या एक रोबोट छह इंसानों का काम अकेले कर सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि 2030 तक विश्व भर में 80 करोड़ लोगों की नौकरियां रोबोट द्वारा ले ली जाएंगी।

बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों जैसे कि जर्मनी और अमेरिका में एक तिहाई कर्मचारियों की नौकरी रोबोट के हाथों में चले जाने का अनुमान है। यही प्रवृत्ति भारत और अन्य विकासशील देशों में भी दिखेगी।आज इस सवाल से दो-चार होने की जरूरत है कि क्या हम बदलती तकनीक के साथ कदम से कदम मिलकर चल पा रहे हैं? ध्यान रहे कि भारत में इलेक्ट्रिक कारों का आगमन हो चुका है। अनुमान है कि 2030 तक भारत में पेट्रोल या डीजल की कारें नहीं बिकेंगी। आने वाले वक्त में स्वचालित कारें आएंगी जिसमें स्टीयरिंग भी नहीं होगा। इसका असर यह होगा कि टैक्सी ड्राइवर का कार्य करने वाले लोगों की नौकरियां समाप्त हो जाएंगी। इसके साथ ही कम शिक्षा स्तर वाले लाखों मोटर मैकेनिकों के रोजगार पर भी संकट आ सकता है।

जाहिर है कि हमें वक्त के साथ हो रहे बदलाव के ढांचे में खुद को ढालना पड़ेगा। हमें युवाओं के कौशल पर ध्यान देना होगा और रोजगार के नए अवसर भी तलाशने होंगे। सबसे पहले हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को कौशल विकास पर केंद्रित करना होगा। इसके साथ ही नए प्रयोग करने पर भी ध्यान देना होगा। देश में लाखों शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन सरकार केवल कुछ अच्छे संस्थानों पर ध्यान केंद्रित किए हुए है, जिसकी वजह से कौशल विकास का केंद्रीकरण हो गया है। यह आवश्यक है कि आइआइटी का स्थान विश्व में अच्छा हो, मगर यह अति आवश्यक है कि हमारे छोटे शहरों में स्थित आइटीआइ भी विश्व स्तरीय हों।