निर्माण क्षेत्र पहले ही संकट में है और लगातार दो तिमाहियों में इसमें गिरावट आई है। आंकड़ों की नई शृंखला आने के बाद पहली बार उपयोगिता क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है। विनिर्माण क्षेत्र में कोई वृद्धि देखने को नहीं मिली। लगातार दूसरी तिमाही में निर्यात गिरा है। पूंजी निवेश भी दूसरी तिमाही में गिरा । यह तीसरी तिमाही में सालाना आधार पर ५.२ प्रतिशत रही जो बेहद कम है । वायरस के खतरे और वैश्विक बाजार में गिरावट के बीच ताजा आर्थिक आंकड़े डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। कोरोनावायरस ने बाहरी झटकों के प्रति भारतीय बाजार की कमजोर प्रतिरक्षा को उजागर कर दिया है। इस कमजोर प्रतिरक्षा के लिए बीते छह वर्ष के दौरान उच्चतम स्तर पर कमजोर नीति निर्माण उत्तरदायी है। प्रधानमंत्री कार्यालय से नीचे, नेताओं और बाबुओं तक ने अतीत में तो गलतियां की ही थी , हाल में भी कई बड़ी गलतियां दोहराई गई हैं। इन बातों ने अर्थव्यवस्था को कमजोर किया है।
दुर्भाग्य है मोदी सरकार व्यापक तौर पर अनुत्पादक सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कोई हल नहीं तलाश कर पाई है। न तो कोई सार्थक विनिवेश हुआ है और न ही कोई अहम सामरिक विनिवेश सामने आया। विनिवेश के नाम पर केवल एक सरकारी कंपनी के शेयर दूसरी कंपनी को बेचने जैसी घटनाएं घटी हैं। इस बीच लाभांश के रूप में सरकारी कंपनियों से अरबों रुपये निकाले गए। कई कंपनियों के पास तो अब वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं। सरकारी बैंकों की हालत भी जस की तस है। बस कुछ बैंकों का आपस में विलय किया गया है। उनका स्वामित्व, भ्रष्टाचार और प्रबंधन की जवाबदेही की कमी जस की तस है। इन बैंकों को चालू रखने के लिए करदाताओं की अरबों रुपये की राशि इनमें निवेश की गई।