रिपोर्ट – अनमोल कुमार
मैहर। जन मानस में युवा वर्ग बहुतायत में होता है।सामाजिक सभ्यता संस्कृति एवं पवित्र वातावरण के निर्माण तथा सनातन परम्पराओं को जीवंत बनाए रखने के लिए युवा वर्ग को धर्म का ज्ञान आरंभ काल से ही कराया जाना आवश्यक है,क्योंकि धर्म का अर्थ है धारण करना,और धर्म ही वह धुरी है जिस पर सभी कुछ आश्रित है। काश!धर्म कीयह कमान युवाओं के हांथ आ जाए तो विश्व के सफलतम संचालन और पवित्र वातावरण का सपना साकार हो जाए ,क्योंकि धर्मानुकूल आचरण करने की कोई आयु सीमा नहीं है।प्रायः देखा जाता है कि केवल प्रौढ़ावस्था को धर्मानुकूल मान कर युवावस्था को धनोपार्जन और संपत्ति के संचय में लगा दिया जाता है जो यथार्थ नहीं बल्कि सोचनीय और चिंतन का विषय है।
उक्त आशय के विचार व्यक्त करते हुए समाजसेवी डॉ. राजकुमार गौतम ने कहा है कि युवा ही युग परिवर्तन का मुख्य आधार है । इसे नजर अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए बल्कि देर किए बिना युवावस्था के आरंभकाल से ही धर्म का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। धर्म व्यक्ति को अनुशासन सिखाता है और सुसंस्कार,आत्मविश्वास तथा दूरदर्शी गुणों से परिपक्व बनाता है।
आपने आगे कहा कि प्राचीन काल में ऋषि मुनियों के आश्रम में युवावस्था से ही धार्मिक संस्कार दिए जाते थे जो कालांतर में अनुसंधान और शोधकर्ता बनकर विश्व कल्याण के कर्ता धर्ता हुआ करते थे।आज युवा पीढ़ी को केवल धनोपार्जन और संपत्ति संग्रह की ओर उन्मुख कर दिया गया है जिससे युवा अपने प्रमुख कर्तव्य से भटककर अनिर्णीत परिस्थितियों का दास बनता जा रहा है।