– राजनीतिक घटनाक्रम के चलते अब भी संशय बना हुआ है कि आगे क्या होगा ? देश की निगाह राजस्थान पर

– राजनीति के तिराहे पर खड़े पायलट का अगला कदम क्या होगा, किस फार्मूले से बचेगी गहलोत सरकार !
● तिलक माथुर केकड़ी-राजस्थान

राजस्थान में पिछले दिनों से चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के चलते अब भी संशय बना हुआ है कि आगे क्या होगा ? राज्य सहित पूरे देश की निगाह राजस्थान की राजनीति पर टिकी है, परिणाम जानने के लिए लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है। कांग्रेस द्वारा सचिन पायलट को पीसीसी चीफ व उप मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिए जाने के बाद यह संशय बना हुआ है कि राजनीति के तिराहे पर खड़े सचिन पायलट का अगला कदम क्या होगा। राज्य की गहलोत सरकार किस फार्मूले से बचेगी। इन दोनों मुद्दों पर विकल्प तलाशे जा रहे हैं। उधर कांग्रेस की अंदरूनी कलह से उपजे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच भाजपा भी अपनी गणित बैठाने में जुट गई है लेकिन भाजपा नेता भी एकजुट नहीं है, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस पूरे घटनाक्रम पर खामोश हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सचिन पायलट ने बगावत का झंडा उठाकर अपना सियासी नुकसान किया है। उनके इस कदम से वे आलाकमान के समक्ष अपना विश्वास खो चुके हैं। उन्होंने कांग्रेस में वापसी की राह खुद बंद कर दी है, अगर वे अब कांग्रेस में बने रहते हैं तो उनका वह सम्मान नहीं रहेगा जो अब तक था। अगर वे भाजपा में जाते हैं तो वहां भी उनको वो तवज्जो नहीं मिलने वाली जो कांग्रेस में रहते हुए थी क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके समीकरण में बड़ा अंतर है, मध्यप्रदेश व राजस्थान की राजनीति में बड़ा अंतर है। हालांकि पायलट इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी तोड़ते हुए आज एक मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में साफ तौर पर कह चुके हैं कि वे भाजपा में नहीं जा रहे। ऐसी स्थिति में एक अन्य विकल्प है कि वे तीसरे मोर्चे का गठन करें, लेकिन अपनी अलग से पार्टी बनाने के लिए उन्हें कांग्रेस के एक तिहाई विधायक चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस और विधायकी से इस्तीफा देना होगा। हालांकि पायलट इस विकल्प पर ही फोकस कर रहे हैं, वैसे यह बड़ा मुश्किल व जोखिम भरा कदम होगा क्योंकि उनके समर्थक विधायकों के राजनीतिक भविष्य का सवाल है। और वैसे भी हम राजस्थान में अलग पार्टी बनाने वाले किरोड़ीलाल मीणा, दिग्विजय सिंह, घनश्याम तिवाड़ी व हनुमान बेनीवाल का हश्र देख चुके हैं उन्हें कितनी सीटें मिली वो सबको मालूम है। ऐसे में नई पार्टी का फैसला काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

इधर गहलोत सरकार पर भी संशय बना हुआ है कि सरकार कैसे बचेगी क्योंकि पायलट 30 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं। हालांकि गहलोत कह रहे हैं कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं, उनके पास पूर्ण बहुमत है। दावा किया जा रहा है कि गहलोत नाराज विधायकों को अपने पाले में कर सकते हैं। शायद यही वजह है कि वे मंत्रिमंडल विस्तार का तानाबाना बुन रहे हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत बाड़ाबंदी में मौजूद पायलट करीबी विधायकों को साधने के लिए मंत्रिमंडल में या फिर राजनीतिक नियुक्तियों में जगह दे सकते हैं। मुख्यमंत्री गहलोत फ्लोर पर बहुमत साबित करने के लिए नहीं कहेंगे जब तक भाजपा राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट की नहीं कहती। वे गुर्जर, मीणा व जाट विधायकों को तवज्जो देने के लिए दो-तीन उप मुख्यमंत्री बना सकते हैं। वहीं पार्टी का दबाव बनाकर पायलट खेमे में शामिल विधायकों वापस लाने के लिए संसदीय सचिव व मंत्रिमंडल में जगह दे सकते हैं। वे भाजपा या राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल के विधायकों में भी सेंध मार सकते हैं। माना जा रहा है कि ऐसे ही किसी फार्मूले से गहलोत अपनी सरकार बचा सकते हैं। इसी बीच ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के चलते भाजपा भी सक्रिय हो गई है। भाजपा लगातार हालात पर निगाह जमाये हुए है, मौके की तलाश कर रही भाजपा में बैठकों का दौर जारी हो चुका है। इस संदर्भ में आज भी एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन रखा गया था जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी शामिल होना था लेकिन उन्होंने ऐनवक्त पर अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया।

वे अब तक इस मामले से अपने आपको दूर रखे हुए है न तो राजे ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की है और न ही आज वे भाजपा कार्यालय पर प्रस्तावित बैठक में शामिल हुई। राजे का आगे भी बैठक में आने व नहीं आने पर भी संशय बना हुआ है। कुल मिलाकर हर ओर संशय के चलते कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा। पूरे घटनाक्रम में गुत्थियां उलझी हुई है, इस बीच सभी के दिमाग में यही चल रहा है कि अब आगे क्या होगा !