राजस्थान के 49 निकाय प्रमुखों के चुनावों के परिणाम 26 नवम्बर को घोषित हो गए। 49 में से अधिकांश निकायों में कांग्रेस के प्रमुख बने हैं। कांग्रेस की इस सफलता के पीछे सीएम अशोक गहलोत की राजनीतिक कुशलता रही है। निकायों के चुनाव की गंभीरता को देखते हुए गहलोत ने पहले ही प्रत्यक्ष पद्धति के बजाए पार्षदों के माध्यम से निकाय प्रमुख चुनने का निर्णय लिया। हालांकि वार्ड पार्षदों में कांग्रेस का भाजपा से बराबर का मुकाबला रहा, लेकिन निर्दलीय पार्षदों की वजह से अधिकांश निकायों में कांगे्रस के उम्मीदवारों की जीत हो गई। कई निकायों में कांग्रेस ने निर्दलीय पार्षदों को ही निकाय प्रमुख का उम्मीदवार बना दिया। हालांकि पार्षदों के चुनाव के परिणाम 19 नवम्बर को ही आ गए थे, लेकिन कांग्रेस सरकार ने अपनी रणनीति के तहत निकाय प्रमुख के चुनाव सात दिन बाद 26 नवम्बर को करवाए। यानि एक सप्ताह में कांग्रेस को जोड़ तोड़ करने का पूरा अवसर मिल गया। आमतौर पर निकायों के चुनाव सत्तारूढ़ पार्टी से प्रभावित होते हैं। निकाय चुनाव को लेकर गहलोत सरकार ने जो भी निर्णय लिए उनका फायदा कांग्रेस को हुआ है। यही वजह है कि भरतपुर नगर निगम पर कांग्रेस काबिज होने में सफल रही है, हालांकि कांग्रेस को उदयपुर और बीकानेर नगर निगम में हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन 29 नगर पालिका में से 24 पर कांग्रेस की जीत हो रही है। इसी प्रकार 17 नगर परिषद में से 14 पर कांग्रेस जीत रही है। यानि निकाय चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को मात दी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने सत्ता का दुरुपयोग कर निकाय चुनाव में उम्मीदवार जितवाए हैं। पूनिया का यह आरोप राजनीति से भरा हो सकता है, लेकिन कई स्थानों पर देखने में आया है कि निकाय चुनाव में भाजपा एकजुट नजर नहीं आई जिसका फायदा कांग्रेस को मिला है।