– देवकिशन राजपुरोहित

आज राजस्थान में कितना भ्रष्टाचार है इसकी पोल रोजाना एसीबी वाले खोल रहे हैं।इतना भ्रष्टाचार तो केवल पकड़ा जा रहा है।अगर एसीबी के पास भरपूर स्टाफ और पूरे अधिकार हों तो पता चले कि भ्रष्टाचार पूरी व्यवस्था में शरीर में खून की तरह हो गया है।
भ्रष्टाचार की ही श्रेणी में नारकोटिक्स भी आता है जो महाभ्रस्ताचार है।नारकोटिक्स में सभी प्रकार के नशीले पदार्थ यथा अफीम,कोकीन, हेरोइन,मेंड्रेक्स,भंग,डोडा पोस्त आदि आते हैं।सरकार ने बहुत ही कठोर कानून बना रखा है जिसके अंतर्गत ऐसे पदार्थ रखने,बेचने,खरीदने पर कठोर सजा का प्रावधान भी है।
नारकोटिक्स का अलग से कोई बहुत बड़ा विभाग भी कार्यरत है यह जानकारी तो मुंबई के सुशांत सिंह के बाद नोराकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा छापा मारी के बाद ही लोगों को पता चला।
राजस्थान में ऐसी अब तक कभी कोई कार्यवाही बड़े स्तर पीआर कभी नहीं सुनी गई।
कभी कभार पुलिस ही ऐसे लोगों को पकड़ती है और कार्यवाही करती है।पुलिस को मुखबिर या इसी व्यवसाय में कोई प्रतिस्पर्दी द्वारा शिकायत करने पर न्शीले पदार्थ पकड़े जाते हैं।

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जेसी कोई सस्थाह राजस्थान में भी कार्यरत है या नहीं कोई पुख्ता जानकारी नहीं है और न उसके माध्यम से कभी किसी कार्यवाही के समाचार ही सुर्खियां बन हो।
राजस्थान की सामाजिक जानकारी रखने वाले नेताओं और अधिकारियों को पता है कि राजस्थान में अफीम युगों युगों से सामाजिक परंपरा का हिस्सा रहा है।जन्म,सगाई,विवाह,महमानों के आगमन और मृत्यु पर अफीम की मनुहार की जाती है।अफीम गाला जाता है और अफीम की पार्टी भी की जाती है जिसे रियान या हथाई भी कहते हैं।जब पूर्व विदेशमंत्री ने जसोल में अफीम की रियान की थी तब बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
आज पश्चिमी और उत्तरी राजस्थान का कोई ऐसा गांव नहीं जहा पर अफीम का उपयोग नहीं किया जाता हो।इतना ही नहीं हरेक गांव में पांच दस तो अफीम के आदि मिल जायेंगे जो दिन में एक या दो बार अफीम या डोडा लेते हैं।उनको बंधानी भी कहा जाता है।जब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कहीं है तो वे आम आदमी अफीम कहा से लाते हैं। कैसे लाते है।क्या उनको कोई लाइसेंस दिया हुआ है।
इस समय अफीम का दूध एमपी से लाने वाले लोग गांव गांव तक पहुंचाते है।शुद्ध अफीम दूध के भाव डेढ़ लाख रुपए किलो है।दूध में लगभग दस गुनी मिलावट कर अफीम बना कर बेचा जाता है। यहां केवल अफीम का मात्र उदाहरण ही प्रस्तुत है।शेष नशीले पदार्थो की तो बात ही अलग है।सब पुलिस को पता है फिर नारकोटिक्स वाले कहा है क्या कर रहे हैं।
क्या एसीबी की तर्ज पर नारकोटिक्स वाले भी कभी कहीं छापा मारी करेंगे या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे।
अफीम को पकड़ना पुलिस या नारकोटिक्स के लिए बहुत ही आसान है।प्रत्येक गांव में अफीम के बंधानी तक पहुंचने पर वह विश्वास में आने पर अफीम विक्रेता और पेडलर तक आसानी से पहुंचा देगा और चैन जुड़ती जायेगी तथा करोड़ों का नशे का कारोबार पकड़ में आ पाएगा।

सरकार चाहे तो प्रत्येक थाने को टारगेट भी दे सकती है तथा अधिक अफीम विक्रेताओं को पकड़ने पर अवार्ड भी घोषित कर सकती है।
अगर अफीम पर नियंत्रण न किया गया तो हजारों जवान इसके आदि और हो जाएंगे।
एक बार पूरा ध्यान अफीम डोडा पकड़ने पर ही दिया जावे।इसी दौरान बाकी नशेड़ी भी पकड़ में आ जाएंगे जो गांवों में गांजे की चिलम या सिगरेट पीते है वे भी रडार पर आ जाएंगे।इतने अपराधी मिलेंगे कि जेलों में जगह कम पड़ जायेगी।बहुतों को तो खुली जेल घाटगेट भेजना पड़ सकता है।
एक सावधानी छापा मारनेवाली टीम को रखनी होगी।तुरंत कागजी कार्यवाही और अदालत को सुपुर्द करना होगा क्योंकि ये सभी एमएलए और एमपी लोगों के सीधे संपर्क में हैं और तुरंत राजनैतिक दबाव आ जायेगा,।यही कारण है कि पुलिस को पुख्ता जानकारी होते हुए उनको नहीं पकड़ती बल्कि अपना हफ्ता चुपचाप ले लेती है।
यो नशे की खेप के निंबाहेड़ा से जोधपुर पहुंचने का सुगम रास्ता है जहा व्यापारियों को पुलिस प्रशासन और राजनेताओं का भरपूर सहयोग समर्थन ब आशीर्वाद प्राप्त है।
मेड़ता रोड राजस्थान का केंद्र बिंदु है जिसके चारों ओर दस किलोमीटर की परिधि में तो जो चाहो जितना चाहो जैसा मॉल मिलेगा जोधपुर से बिलाड़ा पीपाड़ के बीच तो स्थिति और भी भयानक है।लेकिन कोई एजेंसी कभी ईमानदारी से किसी जगह छापा तो मारे या यह जहर का व्यापार इसी प्रकार फलता फूलता रहेगा।