प्रतिदिन। -राकेश दुबे

आलोचना. प्रति आलोचना के साथ ही देश में एक सवाल सब पूछते थे कोरोना वायरस की वैक्सीन कब से लगनी शुरू होगी? अब इस सवाल का जवाब सरकार ने दे दिया है. सरकार ने कहा है कि १६ जनवरी से वैक्शीनेशन का काम शुरू हो जाएगा। आलोचनओं का दौर भी जारी है इसी के बीच एक बार फिर बताया है कि सबसे पहले किसे वैक्सीन की डोज दी जाएगी। इससे पहले बताया गया था कि वैक्सीन को मंजूरी मिलने के १० दिन के भीतर वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा, लेकिन अब १६ जनवरी की तारीख तय हुई है।लेकिन, विवाद बदस्तूर जारी है।
विवादों की शुरुआत २०२० के बिहार विधानसभा चुनाव से ही हो गई थी, जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में मतदाताओं को मुफ्त में कोरोना टीका देने की बात कही। इस वादे का उसे कितना चुनावी लाभ मिला, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है, लेकिन सत्ता में उसकी वापसी कोरोना वैक्सीन पर संभावित सियासी टकराव का संकेत दे रही थी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा इसे भारतीय जनता पार्टी की वैक्सीन बताना, इसी की कड़ी है। हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई भी दी, लेकिन तब तक विरोधी पार्टियां उन पर हमलावर हो चुकी थीं।

वैसे एक बात साफ है कि मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए वैक्सीन की राजनीति करना जितना गलत था, उसे खास पार्टी का टीका बताना उतना ही निंदनीय। इसका तीसरा पक्ष भी है। कुछ विपक्षी नेता स्वदेशी वैक्सीन की मंजूरी पर सवाल उठा रहे हैं। उनकी चिंता है कि तीसरे फेज का ट्रायल पूरा हुए बिना टीके का इस्तेमाल जोखिम भरा हो सकता है। यह विज्ञान की जरूरत है इसे राजनीति नहीं कह सकते। चिकित्सक व महामारी विज्ञानी भी इस बाबत चिंता जता रहे हैं। लोगों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और इसके लिए विपक्ष का आवाज बुलंद करना वाजिब है।
सामान्य बात है, अगर सरकार की नीतियां अगर सही से काम नहीं कर रही हों, तो उस पर सवाल उठेंगे ही। संविधान ने तमाम दलों को ये अधिकार दे रखे हैं। पर विपक्ष का अति-उत्साहित होकर अपना यह दायित्व निभाना जन-विरोधी भी हो सकता है। उसे फूंक-फूंककर अपना कदम उठाना चाहिए, क्योंकि यदि लोगों के मन में एक बार शंका घर कर गई, तो फिर टीकाकरण अभियान पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है, और इसका नुकसान अंतत: आम जनता को ही होगा। विरोधियों को बेशक प्रश्न पूछने चाहिए, लेकिन किसी तरह के अविश्वास को खाद-पानी देने से उन्हें बचना चाहिए। यह बहुत बारीक रेखा है, जिसके लिए विपक्ष को सतर्क रहना चाहिए । इसलिए सरकार की जवाबदारी बनती है कि बताएं सुरक्षित ट्रायल के बिना टीके के इस्तेमाल की अनुमति क्यों दी गई है? ऐसी कौन सी मजबूरी है कि उसे यह जोखिम भरा कदम उठाना पड़ा?
प्रजातंत्र का तकाजा हा कि जनता को सब कुछ पता होना चाहिए; बिना उसकी मदद से कोरोना के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। इस तरह के संवेदनशील मामलों में पारदर्शिता बहुत जरूरी होती है। जनता अगर यह समझती है कि सरकार उससे कुछ नहीं छिपा रही, तो तंत्र में उसकी भागीदारी स्वाभाविक तौर पर बढ़ जाती है। कोरोना संक्रमण-काल की नाजुकता से हर कोई वाकिफ है। यह सभी जानते हैं कि सरकार एक बड़ी चुनौती से मुकाबिल है। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में सबको टीका लगाना इतना आसान भी नहीं। हालांकि, अपने यहां टीकाकरण का बुनियादी ढांचा मौजूद है, जो एक राहत की बात है।