– प्रतिदिन। -राकेश दुबे
देश में जो माहौल वर्तमान में बनता दिख रहा है, वह दुराव, दूसरों से घृणा करना, असहमति के लिए किसी तरह की सहिष्णुता न रखना जैसा है ।मेरे कुछ मित्र जो संवेदनशील हैं और इस परिदृश्य को निरपेक्ष भाव से महसूस करते हैं,उनमे से ज्यादातर पिछले कुछ सालों से परेशान हैं। समय-समय पर हम में से कुछेक ने एक-दूसरे से आशंकाएं सांझा की हैं, हम सबका निष्कर्ष राजनेताओं के भाषण-लेखों, धार्मिक और सांस्कृतिक अगुवाओं की बातें समाज को तोड़ने की दिखती प्रवृत्ति के कारण ही बना हैं। यह सब हमें किस ओर ले जा रहा है? यह समय गहरा मनन करने का है कि वास्तव में हम आज क्या बनाने जा रहे हैं, किन शक्तियों और उनके निरंकुश स्वभाव को खुला छोड़ने जा रहे हैं?
आज, एक बार फिर से विघटनकारी शक्तियां ठीक वैसे ही राक्षस बनाना चाहती हैं जो समाज और देश को बांटती रही है और हम फिर इतिहास के उसी चौराहे पर पुनः आकर खड़े हो गए हैं, जिसका अंतिम परिणाम देश का एवं दिल का बंटवारा है ।अधिसंख्य लोग नहीं जानते देश और ये प्रदेश किस रास्ते पर जाएगा। इस घड़ी में अब यह आपकी निगहबानी पर निर्भर है कि आप अपने दायित्वों के साथ देश के कानून के प्रति सही मायने में वफादार रहें ।यह मेरी, विशाल भारतीय समाज की और माने तो देश के संविधान की अपील है।
वर्तमान संदर्भ में महात्मा गांधी के चिंतन और विचारों की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है। वह सांप्रदायिक विभाजन के खिलाफ लगातार संघर्ष करते रहे और स्थितियां कितनी ही कठिन क्यों न हों, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका सपना था स्वाधीन भारत में एकता, सद्भाव और सौहार्द। जब कभी उन्हें सांप्रदायिक तनाव की कोई सूचना मिलती थी तो वह बहुत विचलित हो जाते थे। सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ वह अक्सर अनशन का सहारा लेते थे और लोगों को यह समझाने में कामयाब हो जाते थे।आज यह अनशन सम्मान नहीं मजाक बन गया है, अब इन सामाजिक प्रयोग को घंटों और मिनटों के हिसाब से करने में राजनेता अपनी शान समझने लगे हैं ।
गांधीजी का स्पष्ट मत था कि सभी समुदायों के नेताओं को एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखना चाहिए और ऐसे प्रयास करने चाहिए कि समाज में एकता कायम रहे। आज यह सम्पर्क और एकता एक दूसरे के काले कारनामे ढंकने तक सीमित रह गई है।गाँधी जी हर स्तर पर सांप्रदायिक सोच को हतोत्साहित करने के पक्ष में थे। उनका विचार था कि हम अपने समाज में जिस एकता की कामना करते हैं वह तभी कायम रह सकती है जब हम दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति सम्मान और उदारता का भाव रखें। यह लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक है।