शुभू पटवा की स्मृति में ‘हमारे समाज का पर्यावरण’ विषय परव्याख्यान का आयोजनबीकानेर । बहुत-से शोधों से पता चला है कि जो जीव जिस वातावरण में पैदा हुआ है यदि उसे किसी अन्य बनावटी वातावरण में रहने के लिए छोड़ दिया जाए तो उसके शरीर के साथ-साथ उसका मन भी अस्वस्थ होने लगता है। इसी तरह विश्व के सभी मनुष्य विकास के नाम पर एक चिड़ियाघर के पिंजरे में रहने लगे हैं। ये उद्बोधन स्वतंत्रा पत्राकार, पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री सोपान जोशी ने बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति, बीकानेर की ओर से समिति के संस्थापक सदस्य सुप्रसिद्ध पत्राकार एवं पर्यावरणविद की शुभू पटवा की स्मृति में प्रौढ़ शिक्षा भवन सभागार में आयोजित ‘हमारे समाज का पर्यावरण’ विषय पर व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्रीजोशी ने विभिन्न कथा प्रसंगो, वैश्विक घटनाओं, औद्योगिक व रासायनिक आविष्कारों, बनावटी नाइट्रोजन, जलवायु परिवर्तनों को लेकर हो रहे सम्मेलनों, यूरोपीय ग्वानों के लिए संघर्षों आदि के विभिन्न तथ्यों व दिवसों का जिक्र करते हुए बताया कि हमारे भारतीय दर्शन में मनुष्य को आरण्यिक कहा गया है। हमारा समस्त जीवन पर्यावरण दोहन और संवर्द्धन पर आधारित था। हम अपने स्वभाव से असहज से दूर हो रहे हैं। हर काम में हम अपर्यावरणिक हो रहे हैं। इसलिए हमें अपने आपको अपने आप से बचाना है।आधुनिक विकास का बाजार हमें कभी ये अवगत नहीं कराएगा कि हम प्रकृति से कितना दूर होते जा रहे हैं।हमारे सामाजिक पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप के बारे में गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर व गांधीजी ने हमें कईं बार चेताया भी है। पर्यावरण संवर्द्धन एवं स्वच्छता की संस्कृति के नाम पर केवल विकास के माॅडल तैयार करने की संस्कृति अपनानी शुरू कर दी है। ऐसी स्थिति में हम जहां रहते हैं, जिस वातावरण में रहते हैं उसमें ही हमें सजग और सहज होकर सुविधाओं की जगह संतुलन को अपनाते हुए अपने सामाजिक अभ्यारण्य का पर्यावरण स्वयं ही बनाना होगा।कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि अपने जीवन मूल्यों से समझौता करना – सामाजिक पर्यावरण को दूषित करना होता है।आज हमारे सामने जो भी प्रश्न हैं उनको चुनौतियों के रूप में ग्रहण करते हुए उनसे पार पाने के लिए समर्पित भाव से तैयार होना चाहिए। आज का विकास आर्थिक विकास है और यह केवल और केवल स्वार्थपूर्ति का आधार तैयार करता है। हमारे भारतीय दर्शन ने जीवन के एकत्व बोध को ही अध्यात्म माना है। इसलिए हमें मनुष्य होने के नाते और यदि अपने आप को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं तो प्रकृति और मुनष्यता के प्रति अपने को सर्वश्रेष्ठ जिम्मेदार भी मानकर अपना स्वआकलन करना चाहिए। यही आज का सामाजिक पर्यावरण है।कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्था के अध्यक्ष डाॅ.श्रीलाल मोहता ने स्मृतिशेष शुभू पटवा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जुड़े पर्यावरण संरक्षण के लिए भीनासर आंदोलन, निर्भिक पत्राकारिता, निर्णयों की अडिगता आदि आयामों की जानकारी दी। इसके साथ ही डाॅ. मोहता ने मुख्य वक्ता सोपान जोशी का परिचय देते हुए व्याख्यान विषय प्रवर्तन भी किया।कार्यक्रम के अंत में संस्था के मानद सचिव डाॅ. ओम कुवेरा ने आगंतुकों के प्रति संस्था की ओर से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीजोशी अपने कार्यों से पटवाजी की क्रियाशीलता का प्रभावी विस्तार कर रहे हैं। प्रारंभ में आगंतुक अतिथियों एवं उपस्थित महानुभावों द्वारा स्मृतिशेष शुभू पटवा के छायाचित्रा के समक्ष श्रद्धासुमन अर्पित कर नमन किया गया। तत्पश्चात् संस्था के मानद सचिव डाॅ. ओम कुवेरा एवं जन शिक्षण संस्थान के निदेशक श्रीरामलाल सोनी द्वारा आगंतुक अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संयोजन जन शिक्षण संस्थान के कार्यक्रम अधिकारी ओम प्रकाश सुथार ने किया। इस महत्ती आयोजन में शहर के प्रबुद्ध एवं सुधि महानुभावों की सक्रिय सहभागिता रही।