Vikas Dubey Encounter

– इसे कहते हैं चिट भी मेरी और पट भी मेरी। अपराधी विकास दुबे की गिरफ्तारी और एनकाउंटर पर नेताओं के बदलते बयान।
-हैदराबाद में गैंग रेप के आरोपियों का भी एनकाउंटर हुआ था।
राजनीतिक संरक्षण में ही पनपता है अपराध और अपराधी।

जयपुर।10 जुलाई को प्रात: 6 बजे कानपुर के निकट भउती गांव के मुख्य मार्ग पर अपराधी विकास दुबे पुलिस के एनकाउंटर में मारा गया। यह वहीं विकास दुबे हैं जिसने गत दो जुलाई की रात को कानपुर के बिकरू गांव में एक डीएसपी सहित यूपी पुलिस के आठ जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। आठ पुलिस जवानों की हत्या पर विपक्ष को यूपी की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला करने का अवसर मिल गया।

आरोप लगाया गया कि भाजपा के नेताओं का संरक्षण होने की वजह से विकास दुबे गिरफ्तार नहीं हो रहा है। इस बीच 3 से 8 जुलाई की अवधि में विकास के पांच साथियों को पुलिस ने ढेर कर दिया। जबकि तीन को गिरफ्तार किया गया। 9 जुलाई को जब सुबह मध्यप्रदेश के उज्जैन में जब महाकाल मंदिर से विकास दुबे को गिरफ्तार किया गया तो विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने दुबे को मरने से बचा लिया। यह भी आरोप लगाया गया कि यूपी सरकार की मिली भगत की वजह से विकास दुबे उज्जैन तक पहुंचा। यहां तक कहा गया कि यूपी चुनाव में मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कानपुर के प्रभारी थे और अभी उज्जैन के प्रभारी हैं। यानि मिश्रा ही विकास दुबे को कानपुर से उज्जैन तक लाए। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से लेकर यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव तक ने योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब जब 10 जुलाई को कानपुर के ही भउती गांव में विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया, तब विपक्ष फिर अनेक सवाल खड़े कर रहा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सत्ता में बैठे नेताओं को बचाने के लिए विकास को मार डाला गया। विपक्ष के नेताओं के बदलते बयान ही चिट भी मेरी पट भी मेरी वाली कहावत को चरितार्थ करती है। जहां तक विकास को राजनीतिक संरक्षण का सवाल है तो सब जानते हैं कि बसपा और समाजवादी पार्टी से विकास के संबंध रहे हैं। गत ढाई वर्ष के शासन को छोड़कर यूपी में पिछले 20 वर्षों में सपा और बसपा का शासन रहा है। इस अवधि में अपराध कितना मजबूत हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। इसी विकास दुबे ने घर में घुसकर भाजपा के एक पदाधिकारी की हत्या कर दी। असल में अपराधी का कोई ईमान धर्म नहीं होता है।

अपराधी सिर्फ अपराधी होता है। जिस तरह 8 पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतारा उसी तरह विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया। अब जांच पड़ताल का काम चलता रहेगा, लेकिन समाज में विकास दुबे की मौत का अच्छा संदेश जाएगा। यह माना जाएगा कि मौजूदा हालातों में यूपी में अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण नहीं है। विकास दुबे उज्जैन से जिस गाड़ी में रवाना हुआ था, कानपुर में एनकाउंटर के समय वह गाड़ी नहीं थी, कानपुर से पहले रास्ते में मीडिया वाहनों को क्यों रोका गया? विकास दुबे जब उज्जैन में बगैर हथियार के पकड़ा गया तो कानपुर में पुलिस पर गोली क्यों चलाई? जैसे अनेक सवालो की जांच होती रहेगी। लेकिन सब जानते हैं कि जब गैंगरेप के मामलों को लेकर गत वर्ष देशभर में गुस्सा था, तब तेलंगाना की पुलिस ने हैदराबाद में पांच आरोपियों को गैंगरेप वाले स्थान पर ही एनकाउंटर में मार गिराया था। हैदराबाद का एनकाउंटर भी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद हुआ था। तब देशभर में आरोपियों की मौत पर कोई अफसोस नहीं जताया गया। विकास दुबे के एनकाउंटर से यूपी पुलिस की हौंसला अफजाई के साथ अपराधियों में भय भी होगा। यूपी पुलिस को अब और जिम्मेदारी के साथ काम करने की जरुरत है। यदि यूपी सरकार का रुख सख्त नहीं होता तो विकास दुबे का एनकाउंटर भी नहीं होता। इस बात को यूपी पुलिस को अच्छी तरह समझना चाहिए। अंदाजा लगाया जाए कि 8 पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद भी यदि विकास दुबे जेल में ऐशोआराम की जिंदगी जीता तो यूपी पुलिस के मनोबल का क्या होता? विकास दुबे को जहां होना चाहिए वह वहां पहुंच गया है। अब पुलिस को उत्तर प्रदेश की जनता को राहत देने का कार्य करना चाहिए। यूपी पुलिस को भी अपनी छवि सुधारने की जरुरत है। आप जनता को यह लगाना चाहिए कि पुलिस उनकी मददगार है।