देश की गंभीर होती अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक हस्तक्षेप से अनेक पेंचीद्गियाँ उलझने लगी हैं । उदहारण के लिए नागरिक विमानन सेवा। सरकार द्वारा २५ मई से विमानन सेवाओं की ‘आंशिक’ शुरुआत की घोषणा से सम्पूर्ण विमानन जगत चकित हो गया । इस चकित होने कारण साफ़ है कि इससे पिछली घोषणा में कहा गया था कि विमानन सेवाएं जून से शुरू हो सकती हैं। देश की विमानन कंपनियां कोविड-१९ महामारी के आगमन से पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रही थीं और देशव्यापी लॉकडाउन ने उनकी दिक्कतों को बड़ाया है कम नहीं किया। नागरिक उड्डयन मंत्री ने घोषणा की है कि विमानन सेवाओं की शुरुआत एक तिहाई परिचालन के साथ होगी। इस दौरान विमान में और हवाई अड्डे पर कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक परिपत्र में कहा है कि विमानन कर्मियों और यात्रियों को कुछ मानकों का पालन करना होगा। फेस मास्क, दस्ताने, सुरक्षा कतार में सामाजिक दूरी, तापमान की अनिवार्य जांच, आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करना, साथ ले जाने वाले सामान की मात्रा सीमित करना, यात्रा के दौरान भोजन नहीं देना आदि कदम उठाए जाएंगे। ये कदम कम से कम इतने तो अनिवार्य तौर पर अपेक्षित ही है।
विमानन उद्योग पर यह बात लागू नहीं होती है। जैसे अकेले दिल्ली-मुंबई मार्ग पर सात से अधिक विमानन कंपनियां कई सीधी उड़ान संचालित करती हैं। ऐसे में कीमतों के अतिशय ऊंचा होने की आशंका वैसे भी कम रहती है। बहुत संभव है कि विमानन कंपनियां ५० दिनों के लॉकडाउन के बाद हालात का फायदा उठाने के लिए कुछ हद तक कीमतों में इजाफा करें, परंतु प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन टिकटिंग सेवा द्वारा घट-बढ़ मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया के कारण किसी तरह के व्यावसायिक समूहन की आशंका निर्मूल हो जाती है। दूसरे शब्दों में, आपूर्ति शृंखला में शामिल तमाम एजेंटों के लिए एक साथ कीमतों में इस तरह के बदलाव करना बहुत मुश्किल है। यदि विमानन कंपनियां टिकट बहुत मंहगी दर पर बेचती हैं तो मांग और आपूर्ति का नियम स्वत: इसे नियंत्रित करेगा, क्योंकि यात्री उड़ान भरने या न भरने के लिए स्वतंत्र हैं। दोनों सिरों पर मूल्य नियंत्रण जटिलताएं बढ़ाएगा।इस बात को विमानन विभाग के प्रशासनिक अमले को सोचना चाहिए था ।