– पं. रविन्द्र शास्त्री लेख

17 अक्टूबर, शनिवार से आदि शक्ति माँ दुर्गा की उपासना का महाउत्सव नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा किए जाने का विधान है। नवरात्रि की पूजा से पहले यानि नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना यानि कलशस्थापना की जाती है और समस्त देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और इसके बाद नौ दिनों तक माँ के अलग-अलग रूपों का पूजन होता है। पुराणों के अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रुप मानते हैं, इसलिए लोग माँ दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं। इस लेख में हम आपको मुख्य रूप से घटस्थापना की विधि और उसके महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।

घटस्थापना से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है। नवरात्रि में घटस्थापना यानि कलश स्थापना का खास महत्व होता है। कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन यानि कि प्रतिपदा को जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर घटस्थापना शुभ मुहूर्त में किया जाए, तो देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जातकों को मनचाहा फल देती हैं, लेकिन यदि घटस्थापना की प्रक्रिया शुभ मुहूर्त और पूरे विधि-विधान से ना हो, तो नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक की जानें वाली पूजा सार्थक नहीं मानी जाती और शुभ फलों की प्राप्ति भी नहीं होती।

यह बेहद ज़रूरी है कि आप नवरात्रि के पहले दिन में होने वाली घटस्थापना से जुड़ी सारी जानकरी रखें, ताकि 9 दिनों तक की जानें वाली पूजा सार्थक हो और उसमें कोई कमी न रह जाए। हमेशा घटस्थापना की प्रक्रिया दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले ही संपन्न कर लेनी चाहिए। इसके अलावा कलशस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे उत्तम माना गया है।

घटस्थापना 2020 शुभ मुहूर्त
वर्ष 2020 में शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर, शनिवार से प्रारंभ हो रही है और यह महापर्व 26 अक्टूबर 2020, सोमवार तक मनाया जाएगा।

– कलशस्थापना का शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि 2020 घटस्थापना मुहूर्त
घटस्थापना की तारीख़
17 अक्टूबर, शनिवार
घटस्थापना करने का समय 06:23:22 से 10:11:54 तक और 11: 55 : 46 से 12 : 40 55 तक

– अपने शहर में घटस्थापना का मुहूर्त, नियम और विधि जानने के लिए सम्पर्क करें

– घटस्थापना का महत्व
नवरात्रि में घटस्थापना यानि कलशस्थापना का अपना विशेष महत्व होता है। यह प्रक्रिया नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है, जिसके बाद ही देवी दुर्गा के इस महापर्व का शुभारंभ होता है। चाहे चैत्र नवरात्रि हो या शरद नवरात्रि, दोनों में ही प्रतिपदा के दिन शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक कलश स्थापना की जाती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कलश स्थापित करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। कलश को बेहद मंगलकारी माना जाता है। शास्त्रों में कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा और मध्य में देवी शक्ति का निवास बताया गया है। नवरात्रि के दौरान स्थापित किए जाने वाले कलश में संसार की सभी शक्तियों का घट के रूप आह्वान कर उसे स्थापित किया जाता है। घटस्थापना करने से घर पर आने वाली सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

घटस्थापना की आवश्यक सामग्री
घटस्थापना के लिए सबसे पहले आपको कुछ ज़रूरी सामग्रियों को एकत्रित करना होता है।
इसके लिए आपको चाहिए-

चौड़े मुँह वाला मिट्टी का कलश (आप सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते हैं)
किसी पवित्र स्थान की मिट्टी
सप्तधान्य (सात तरह के अनाज)
जल ( गंगाजल लें)
कलावा/मौली
सुपारी
आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
छिलके/जटा वाला नारियल
लाल कपड़ा
फूल और फूलों की माला
पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते (सभी न मिल पाए तो इनमें से कोई भी 2 प्रकार के पत्ते ले सकते हैं)
कलश को ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का)
फल और मिठाई
घटस्थापना की संपूर्ण विधि
नवरात्रि के पहले दिन कलशस्थापना करने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठें और स्नान आदि करके साफ कपड़े पहन लें।
अब जिस जगह पर कलश स्थापना करनी हो वहां के स्थान को अच्छे से साफ़ करके एक लाल रंग का कपड़ा बिछा लें और माता रानी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
इसके बाद सबसे पहले किसी बर्तन में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें। ध्यान रहे कि उस बर्तन के बीच में कलश रखने की जगह हो।
अब कलश को उस बर्तन के बीच में रखकर उसे मौली से बांध दें और कलश के उपर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएँ।
कलश में गंगाजल भर दें और उसपर कुमकुम से तिलक करें ।
इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, पंच रत्न, सिक्का और पांचों प्रकार के पत्ते डाल दें।
पत्तों के ऐसे ऱखें कि वह थोड़ा बाहर की ओर दिखाई दें। इसके बाद कलश पर ढक्कन लगा दें और ढक्कन को अक्षत से भर दें।
अब लाल रंग के कपड़े में एक नारियल को लपेटकर उसे रक्षासूत्र से बाँधकर ढक्क्न पर रख दें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए। (नारियल का मुंह वह होता है, जहां से वह पेड़ से जुड़ा होता है।)
इसके बाद सच्चे मन से देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए कलश की पूजा करें।
कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला, इत्र और नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
जौ में पूरे 9 दिनों तक नियमित रूप से पानी डालते रहें, आपको एक दो दिनों के बाद ही जौ के पौधे बड़े होते दिखने लगेंगे।
कलश स्थापना के साथ बहुत से लोग अखंड ज्योति भी जलाते हैं। आप भी ऐसा करते हैं तो ध्यान रखें कि ये ज्योति पूरे नवरात्रि भर जलती रहनी चाहिए।
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा करें।
ध्यान रखें कि माँ शैलपुत्री को चढ़ाने वाला प्रसाद शुद्ध गाय के घी से बनाएं। इसके अलावा अगर जीवन में कोई परेशानी है या बीमारी है तो भी माता को शुद्ध घी चढ़ाने से शुभ फल प्राप्त होता है।
नोट – यदि आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार और भी विधिवत तरीके से स्वयं या किसी पंडित जी द्वारा पूजा और् दुर्गास्तशती का पाठ करवा सकते हैं।

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नवरात्रि के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान

नवरात्रि में विशेष रूप से माँ दुर्गा की पूजा और व्रत रखने वाले जातक को पूरे नौ दिनों तक ब्रह्मचर्य का सच्ची श्रद्धा से पालन करना चाहिए। जो जातक नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, उन्हें केवल एक समय का ही भोजन करना चाहिए। इस दौरान आप केवल दूध, फल और शाकाहारी भोजन ही ग्रहण किया करें। माँ दुर्गा के इन पावन नौ दिनों तक भूमि शयन यानि ज़मीन पर सोने से बहुत अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। नौ दिनों तक भूल से भी किसी को मदिरा या माँस का सेवन नहीं करना चाहिए। यहाँ तक कि नवरात्रि के नौ दिनों तक प्याज़ या लहसुन का उपयोग या सेवन करना भी वर्जित होता है।