-राकेश दुबे
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बहुत सारे स्पष्टीकरण आ गये हैं | समर्थन और आलोचना दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता चल रही है | संसद में बने कानून की सडक पर व्याख्या हो रही है | लोकतांत्रिक देश में संसद व सड़क की आवाज के बीच भी एक तालमेल हो। जिसका माध्यम पक्ष और प्रतिपक्ष की आपसी समझदारी और सजगता हो सकती है | राजनीति से ऊपर देश और उसमें शांति होना चहिये | सत्ता प्राप्त करना और सुचारू शासन चलाना हर दल की अभिलाषा होती है, परन्तु राजनीतिक दल को यह नहीं मान बैठना चाहिए, संसदीय प्रक्रियाओं में चुने हुए जन-प्रतिनिधि और विभिन्न वैचारिक राजनीतिक समूह ही पूरे समाज व देश के प्रतिनिधि हैं। व्यक्तियों का विचार और दृष्टिकोण बनता-बदलता रहता है| देश के नागरिक पशोपेश में हैं आज वे न तो बहुमत के आधार पर बनी सरकार को दरकिनार कर सकते हैं, और न आम जिंदगी की उथल-पुथल और अंतर्विरोधों से जुड़े आंदोलनों की अनदेखी कर सकते हैं।
आज़ादी के बाद नए भारत के निर्माण में मूल तत्व सत्य और अहिंसा ही स्थापित हुआ है । तब हिंसावादी धाराएं भी थीं, उन्हें तब भी तरजीह नहीं मिली । १८५७ की पहली कोशिश की भयानक विफलता और लगभग आधी शताब्दी के आत्ममंथन के बाद हमारे देश के नायकों व लोगों ने सुसंगठित प्रतिरोध, विशेषकर असहयोग और अहिंसक आंदोलनों के रास्ते से बंगाल विभाजन से लेकर चंपारण और जलियांवाला बाग से होते हुए भारत छोड़ो आंदोलन ने जिस राजनीतिक-संस्कृति रचना की उसी से ये दोनों तत्व निकल कर आये हैं । राजनीतिक दलों को याद रखना चाहिए कि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के अलावा एक तीसरा पक्ष तटस्थ नागरिक समाज भी होता है।
यह एक प्रमाणित बात है जब जनांदोलन से जुड़े लोग लोकतांत्रिक लक्ष्मण रेखा लांघते हैं, तब सत्ता-प्रतिष्ठान को हर तरह की बर्बरता की छूट मिल जाती है। इसीलिए शुरू से आखिरी तक शांतिपूर्ण बने रहना एक असरदार प्रतिरोध की बुनियादी शर्त है। अगर किसी सभा में वक्ताओं की तरफ से भाषायी हिंसा होने लगे या किसी सार्वजनिक प्रदर्शन में निर्दोष लोगों को आतंकित किया जाना शुरू हो जाए या सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने की हरकतें होने लगें, तो उस अभियान या आंदोलन के आयोजकों को समझ लेना चाहिए कि वे एक बेलगाम हो रहे घोड़े पर सवार हैं। ऐसे में अगर घोड़े की लगाम हाथ भी जाती है, तो सबसे पहले सवार ही धराशायी होता है। कई उदहारण हैं |
गांधी जी फिर याद आते हैं- “ हर आदमी अपने हक की बात करने से पहले अपना फर्ज अदा करें |”-हरिजन सेवक ६ ७ ४७ | सरकार, पक्ष प्रतिपक्ष और नागरिक सभी इस बात को समझें, यही राष्ट्रहित है |