-ईसीबी में “सतत विकास के लिए हरित उर्जा की तकनीकें” विषयक दो सप्ताह के ऑनलाइन कार्यशाला का हुआ आगाज

बीकानेर।अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर तथा राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वाधान में टैक्युप द्वारा प्रायोजित “सतत विकास के लिए हरित उर्जा की तकनीकें” विषयक दो सप्ताह के ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम का आगाज वेबेक्स एप के माध्यम से हुआ । उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि व प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता महाराणा प्रताप कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय व मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन. एस. राठोड ने बताया की जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये और ऊर्जा के सीमित संसाधन को देखते हुए अक्षय ऊर्जा क्षेत्रों में नवोन्मेषण व शोध पर जोर दिया जाना चाहिए। बायो-मास पर दिए अपने विशेष व्याख्यान में उन्होंने बताया की सम्पूर्ण देश में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है व बायो मास ऊर्जा के दोहन से ग्रामीण भारत में रोजगार के साथ किसानो व मजदूरों के आय बढ़ेगी जिससे हमें आत्म निर्भर बनने में मदद मिलेगी ।उन्होंने बताया की गैर प्रदूषणकारी हरित ऊर्जा के अनेक विकल्पों पर तीव्र गति से अनुसंधान चल रहे हैं। हरित उर्जा के प्रमुख स्त्रोतों में सौर उर्जा, पवन उर्जा, जल उर्जा, भू-तापीय उर्जा तथा बायोमास, जैव ईंधन और लैंडफिल गैस को भी हरित ऊर्जा के अन्तर्गत रखा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि लकड़ी के बुरादे, कचरे और जलाए जा सकने योग्य कृषि अपशिष्ट पेट्रोलियम आधारित ईंधन स्रोतों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं। अतः इनका उपयोग ऊर्जा स्रोत की तरह किया जा सकता है।

दुसरे सत्र में सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, दिल्ली की आचार्य डॉ. प्रियंका कौसल ने अपने व्याख्यान में बायो गैस के उत्पादन, उपयोग व क्षमता बढ़ाने के उपायों की विस्तार से चर्चा की । उन्होंने बताया की आने वाले वर्षों में कंप्रेस्ड बायोगैस का वाहनों में ईंधन के रूप में उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश प्रदुषण मुक्त हो सकेगा।

ईसीबी प्राचार्य जयप्रकाश भामू ने बताया कि हमारे देश में सौर, पवन और अक्षय ऊर्जा के कई विकल्प मौजूद हैं जिसकी मदद से हम देश की ऊर्जा की व्यवस्था को बदल सकते हैं। वैसे खत्म होते पेट्रोल डीजल और कोयला को देखते हुए हमें नित्य नए उर्जा के स्रोतों पर विचार करना चाहिए। यही वजह है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत का उपयोग देश में तेजी से बढ़ने लगा है। सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है साथ ही अक्षय ऊर्जा उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए टेक्विप-III समन्वयक डॉ. ओ पी जाखड़ ने बताया की ग्रीन एनर्जी के उपयोग के साथ-साथ ऊर्जा संरक्षण आज समय की जरूरत है। जितनी ऊर्जा हम बचाएंगे, उतनी हम अगली पीढ़ियों के लिए बचा सकेंगे। ग्रीन ऊर्जा आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘बचाव करने वाली’ साबित हो सकती है। हरित ऊर्जा के उपयोग से भावी पीढ़ियों को एक स्वच्छ पर्यावरण और बेहतर दुनिया हम सौंप सकते है।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सी एस राजोरिया ने बताया की पिछले तीन दशकों में, हरित ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से अनुसंधान और विकास कार्य हुए हैं और भविष्य में इसके उपयोग की अपार संभावनाएं है वहीं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विकास शर्मा ने कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए हरित ऊर्जा के उपयोग पर बल दिया।

कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. शैली वडेरा, डॉ. रजनीश (एनआईटी कुरुक्षेत्र), डॉ. गणेश प्रजापत एवं डॉ. रवि कुमार (ईसीबी बीकानेर) ने ट्रेनिंग में भाग लेने वाले प्रतिभागियों व विशषज्ञों का आभार व्यक्त किया व समय की ज़रूरत को देखते हुए ऊर्जा के क्षेत्र में इस तरह के अन्य कार्यक्रमों के आयोजन पर ज़ोर दिया जिससे युवा इंजीनियर अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकेI इस कार्यशाला में पुरे देश से विभिन्न तकनिकी महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के 900 से अधिक शिक्षक एवं रिसर्च स्कॉलर भाग ले रहे है ।

-: हरित ऊर्जा क्या है?
हरित ऊर्जा ऐसा स्थायी स्रोत है जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये अत्यधिक हानिकारक नहीं है। वास्तव में हरित ऊर्जा प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सूर्य, पवन, जल, भूगर्भ और पादपों से उत्पन्न की जाती है। वर्तमान में विश्व की लगातार बढ़ रही जनसंख्या के कारण ईंधन की लागत बढ़ रही है और इसके समानांतर परम्परागत ईंधन भंडारों में भी निरंतर कमी होती जा रही है। ऐसे में सभी लोग ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत खोजने में जुट गए हैं। भविष्य की अपार संभावनाओं से युक्त हरित ऊर्जा आज की आवश्यकता बनती जा रही है।