देहात भाजपा पर थोप दिया बिना जनाधार का तारांचद
भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक चुनावों को लेकर चल रही गहमी-गहमी के बीच बीकानेर शहर भाजपा अध्यक्ष की कमान पूर्व सभापति अखिलेश प्रताप सिंह को सौंपी गई है और जिला देहात भाजपा अध्यक्ष का जिम्मा तारांचद सारस्वत को। इनमें अखिलेश प्रताप सिंह की नियुक्ति को लेकर तो ज्यादा हलचल नहीं है, जबकि तारांचद सारस्वत को देहात अध्यक्ष की कमान सौंपे जाने से पार्टी की देहात लॉबी में खासी नाराजगी दिख रही है,देहात लॉबी के भाजपा नेताओं का मानना है कि पंचायती राज चुनावों को देखते हुए देहात भाजपा की कमान किसी दमदार और जनाधार वाले नेता को सौंपी जानी चाहिए थी,यही वजह है कि तारांचद को कमान सौंपे जाने के साथ ही भाजपा की देहात लॉबी में हायतौबा सुनाई देने लगी है मगर फिलहाल सब खैरियत है।

खाकी फौज की रैकिंग कैसे सुधरे
प्रदेशव्यापी स्तर पर रैकिंग में पिछडऩे के कारण बीकानेर की खाकी फौज के कप्तान सॉब का मिजाज थोड़ा गरमाया हुआ है,हालांकि रैकिंग में पिछडऩे का सारा दोष अकेले कप्तान सॉब का नहीं है लेकिन फिर जवाबदारी तो उनकी ही बनती है इसलिये सॉब मिजाज गरमाना लाजमी है। महकमें में ही इसे लेकर चर्चा है कि बीकानेर की खाकी फौज के ज्यादात्तर ठिकानेदार रैंकिग सुधारने के बजाय अपने सियासी आकाओं को खुश रखने में ज्यादा दिलचस्पी लेते है,इसके अलावा दो-दो मंत्रियों का गृह जिला होने के कारण खाकी फौज में सियासी हस्तक्षेप भी हद से ज्यादा बढ गया है। रैकिंग सुधारने के लिये माफियाओं के खिलाफ कोई मुहिम चलाओं तो छोटे-बड़े सारे सियासदार औकात बताना शुरू कर देते है। अब खाकी फौज के आलमदार रैकिंग सुधारे तो सुधारें कैसे? इनके अलावा भी रैकिंग के पिछडऩे के कारण तो कई सामने आये है लेकिन इनका खुलासा होने पर मामला ज्यादा गरमा सकता है..मगर फिलहाल सब खैरियत है।

सबकी नजरों में चढा है बीकानेर
आये दिन हो रही फायरिंग की वारदातों,बड़े पैमाने पर हो रही चोरियों और महिला प्रताडऩा के मामलों का लगातार बढता ग्राफ समेत पुलिस की प्रोफाईल से जुड़े अनेक मामलों को लेकर हमारे बीकानेर का नाम प्रदेश के पुलिस मुख्यालय तक गंूज रहा है,संगठित अपराधों के लिये तो बीकानेर का नाम टॉपटेन शहरों की हिटलिस्ट में शामिल हो चुका है। प्रदेश में क्रॉईम कंट्रोल को लेकर जब कभी भी बात चलती है तो बीकानेर का नाम खुद ब खुद ही सबकी जुबान पर आ जाता है,फिर भी हमारी खाकी फौज के कप्तान और उनके मातहत सब खैरियत का राग अलालते रहते है। मजे कि बात तो यह है कि प्रदेश की सत्ता के दो प्रभावशाली मंत्रियों और केन्द्र में सत्तासीन सरकार के प्रभावी मंत्री का जिला होने के बावजूद बीकानेर में क्राईम कंट्रोल का पलड़ा पूरी तरह कमजोर है। इसे लेकर मीडिया के मुखबिर भी आये दिन खाकी फौज के जिम्मेदारों को आगाह करते रहते है लेकिन फिर भी उनकी तरफ से सब खैरियत है।

आबकारी वालों के सर्दी में छूट रहे पसीनें
आबकारी विभाग के हनुमानगढ कार्यालय में हुए करोड़ों रुपए गबन के मामले की तपन ने हमारें बीकानेर आबकारी वालों के सर्दी में भी पसीनें छूटा रखे है। पता चला है कि गबन का ऐसा खेल महज हनुमानगढ में नहीं हुआ है बल्कि बीकानेर के आबकारी ठिकानें में भी ऐसे कई खेल चल रहे है,इसकी भनक लगने के बाद अब प्रदेश के सभी जिलों के रिकॉर्ड की जांच-पड़ताल कर आबकारी के रिकॉर्ड की परतें खोलकर गबन ढूंढऩे की कोशिश की जा रही है। इसके चलते किसी अनहोनी की आंशका के कारण बीकानेर के आबकारी ठिकाने वाले ड्यूटी के बाद भी दस्तावेजों की कांट छंाट और पुरानी रिकॉर्ड को खुर्द बुर्द करने की मुहिम में जुटे है,इसके लिये रिटायर्ड हो चुके पुराने एकांउटेंट की सेवाएं भी ऊपरा-उपरी ली जा रही है,कहीं कोई कमजोरी पकड़ में ना जाये इसलिये खासी सर्तकता बरती जा रही है,इसके बावजूद गबन के मामले की एसीबी स्तर पर होने वाली जांच की उड़ती खबरों ने यहां आबकारी के तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों की बीपी बढा रखी है लेकिन फिलहाल सब खैरियत है।

बड़े मियां भी सुभान अल्लाह…
बीकानेर की प्रशासनिक लॉबी के बड़े मियंा का कोई मुकाबला नहीं है,बड़े-बड़े मामलों को पर्दे के पीछे निपटाने में माहिर हमारे बड़े मियां ने यहां बिना किसी रूकावट के धूंआधार पारी खेलते हुए अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया,मजे कि बात तो यह है कि कार्यकाल की सफलताओं का पूरा पैकेज इस अंदाज में सोशल मीडिया में हाईलाईट करवाया है मानों अगला विधानसभा चुनावों इन्हे बीकानेर से ही लडऩा हो। फिलहाल प्रशासनिक लॉबी के इस बड़े मियां ने बीकानेर में जो कुछ किया है,वैसा आज तो कोई नहीं कर पाया और इसलिये दो राय नहीं है कि बड़े मिंया वाकई में बेमिसाल है.मगर फिलहाल सब खैरियत है।