संपादकीय

अगर महाराष्ट्र में दो मुख्यमंत्री बनाये जा रहे हैं या बनाने का निर्णय हो चुका हो तो भी यह विधि सम्मत निर्णय न हीं है | सारे विधिवेत्ता मानते है कि ये पद संवैधानिक नहीं है| इस पद पर आसीन व्यक्ति को मुख्यमंत्री की शक्तियां प्राप्त नहीं होतीं और न ही वो मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में वह प्रदेश की अगुवाई ही कर सकता है| यह भी एक प्रकार से सुविधा का संतुलन है इसे समान्य भाषा में “सरकार का आपसी बंटवारा” कहा जाता चाहे महारष्ट्र गुजरात राजस्थान मध्यप्रदेश उत्तर प्रदेश में अभी यह व्यवस्था चल रही हो या पहले चल चुकी हो अथवा भविष्य में लागू की जाने की सम्भावना हो यह असंवैधानिक थी है और रहेगी | वैसे भी जनता कभी उपमुख्यमंत्री के लिए वोट नहीं देती है | मुख्यमंत्री के संभावित उम्मीदवार चुनाव के पहले घोषित होते रहे हैं | इस घोषणा का प्रभाव भी मतदान और चुनाव के नतीजो पर हुआ है , इसके कई उदाहरण हैं | इसके विपरीत आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने कभी यह घोषणा नहीं की कि उसकी सरकार बनने पर कोई उप मुख्यमंत्री होगा

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उप-मुख्यमंत्री पद का जन्म उपप्रधानमंत्री पद से पैदा से हुआ है | यह तब भी सुविधा का संतुलन बनाने की कवायद थी और अब भी है | शुरुआत जहाँ से हुई वो किस्सा बड़ा ही रोचक है। वर्ष १९८९ में वीपी सिंह सरकार का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, मंत्रियों को शपथ दिलाई जा रही थी। उस दौरान देवी लाल को मंत्री पद के लिए शपथ उस समय के राष्ट्रपति दिला रहे थे लेकिन वो बार-बार “उप प्रधानमंत्री” बोल रहे थे।तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमण ने अपनी किताब में लिखा है, कि मैंने देवी लाल को कहा कि अभी आप सिर्फ मंत्री पद पर शपथ ले सकते हैं और इसके बाद आपको उपप्रधानमंत्री का पद दिया जा सकता है। इसके बाद शपथ ग्रहण समारोह शुरू हुआ तो सबसे पहले वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और जब देवी लाल आए तो वो शपथ में इस बार ‘उप प्रधानमंत्री’ पर अड़ गए। वो बार-बार उपप्रधानमंत्री बोलते रहे।राष्ट्रपति वेंकटरमण के बार-बार समझाने के बाद भी देवी लाल शपथ लेकर उप-प्रधानमंत्री बन गए। वैसे उप-प्रधानमंत्री हो या उपमुख्यमंत्री, वह काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स का सदस्य होता है केवल मंत्री की बजाए उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री शब्द का इस्तेमाल संबोधन में किया जाता है।

वैसे मुख्यमंत्री कई मौकों पर सूबे से बाहर यात्रा के दौरान जरूरी राजकीय कार्यों को पूर्ण करने के लिए अपने किसी वरिष्ठ मंत्री को जिसे वह उचित समझें कुछ शक्तियां दे सकते हैं|उप मुख्यमंत्री की राज्य में वही हैसियत है जो एक मंत्री की होती है और केंद्र में उपप्रधानमंत्री की हैसियत वही होती है जो कि एक केंद्रीय मंत्री की होती है यानी ए मेंबर ऑफ काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स| इसे देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा ही माना है| दरअसल इसके पीछे राजनीतिक व्यवस्था कम, विवशता ज्यादा दिखती है. यानि सरकार चलाने, गठबंधन धर्म का निर्वाह करने, मजबूरी का गठबंधन बनाने , विरोधियों के खिलाफ पार्टी को एकजुट रखने या दलों के वरिष्ठ नेताओं के बीच अहम के टकराव को कम करने के लिए उप मुख्यमंत्री पद की भी उत्पत्ति हुई| भाजपा आलाकमान ने विजय रूपाणी को गुजरात की कमान सौंपी तो नितिन पटेल को उप-मुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा। उस दौरान ये उप-मुख्यमंत्री पद काफी चर्चा में रहा था। वैसा ही माजरा देखने को राजस्थान में मिला |

चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने ३ दिनों की रस्साकस्सी के बाद मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री का नाम तय किया। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि क्या होता है उपमुख्यमंत्री का पद, क्या होती है इस पद पर आसीन व्यक्ति के पास शक्ति | चूँकि यह पद संवैधानिक नहीं है। इस पद पर बैठे व्यक्ति को मुख्यमंत्री के जितनी शक्तियां नहीं मिलती है और कभी मुख्यमंत्री के ना होने पर भी वो किसी तरह के फैसले नहीं ले सकता है | ऐसे में यह सुविधा संतुलन और नाम दरोगा रखने जैसी कहावत से अधिक कुछ भी नहीं है |