हर्षित सैनी
रोहतक, 20 अक्तूबर। लोक अदालत के विषय पर आज जिला एवं सत्र न्यायाधीश एएस नारंग एवं सीजेएम खत्री सौरभ के मार्गदर्शन में जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण रोहतक के पैनल के वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप द्वारा सिविल अस्पताल कलानौर के प्रांगण में लीगल केयर एंड स्पोर्ट सैंटर के संचालन के अवसर लोक अदालतों के संबंध में विस्तार से जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि लोक अदालत से अभिप्राय लोगों की अदालत से है। लोक अदालत की संकल्पना ग्रामीण आंचल में लगने वाली पंचायतों पर आधारित है। इसके इलावा आज के परिवेश में लोक अदालतों के गठन का आधार 1976 का 42 वां संविधान संशोधन है, जिसके अंदर संविधान के अनुच्छेद 39-ए में आर्थिक न्याय को जोड़ा गया है।

अधिवक्ता राजबीर कश्यप ने कहा कि लोक अदालत को अमल में लाने के दो मुख्य कारण है, पहला यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से बहुत सारे लोग न्याय पाने के लिए संसाधन नहीं जुटा पाते। दूसरा यदि वे कोर्ट तक पहुंच भी जाते हैं तो करोड़ों मुकदमें लंबित व अपूर्ण होने के कारण उनको समय से न्याय नहीं मिल पाता।
उन्होंने बताया कि हमारे न्यायिक समाज में एक लोकप्रिय सूक्ति है न्याय में देरी, अन्याय है अर्थात देर से मिले न्याय की कोई सार्थकता नहीं होती। लोगों को समय पर न्याय देने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया, जो 9 नवंबर, 1995 को लागू हुआ और विधिक सहायता एंव स्थायी लोक अदालतें अस्तित्व में आई।

अधिवक्ता राजबीर कश्यप का कहना था कि आज हर नागरिक आसानी से लोक अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 18(1)के तहत कोर्ट में लंबित मुकदमें को निपटाने के लिए आप कोर्ट की अनुमती से लोक अदालत में जा सकते हैं। वैवाहिक मामले, सिविल मामले, पेंशन और अन्य सेवा से संबधित मामले, भूमि अधिग्रहण के मामले, मनरेगा से जुड़े मामले, बिजली पानी में संबंधित इत्यादि मामलों को इन लोक अदालतों के माध्यम से निपटाया जा सकता है और लोक अदालत के निर्णय के प्रति दोनों पक्ष पूर्ण रूप से बाध्य रहेंगे।
इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप, पीएलवी माया देवी, डॉ. विक्रम, डॉ. विवेक, स्टाफ नर्स दया, सीमा रानी, रामकिशन व अन्य नागरिक उपस्थित रहे।