बीकानेर। ‘सरकार की ओर से मन्दिरों का होनेवाला सरकारीकरण और सरकार द्वारा अधिगृहीत किये गये मन्दिरों की दुर्दशा, कुप्रबन्धना पर भारी रोष व्यक्त करते हुए हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मन्दिरों का नियन्त्रण भक्तों के हाथों में हो, यह काम सरकार का नहीं है। यही बात हिन्दू जनजागृति समिति पिछले 13 वर्ष से विभिन्न मंचों पर उठाती रही है तथा वर्ष 2006 से इस विषय को लेकर समिति आन्दोलन भी कर रही है।

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आनंद जाखोटिया, समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति, राजस्थान ने बताया कि मन्दिरों का सरकारीकरण और वहां के भ्रष्ट सरकारी कामकाज के कारण हिन्दू समाज और श्रद्धालुओं में बहुत रोष है। इसलिए हिन्दू जनजागृति समिति ने सभी राजनीतिक दलों से मांग की है कि श्रीराममन्दिर निर्माण की ही भांति मन्दिर सरकारीकरण के विषय में अपनी नीति लोकसभा चुनाव से पहले स्पष्ट करें।
प्राचीन काल में राज्यकर्ता मंदिरों को दान करते थे। परन्तु, इस देश में धर्मनिरपेक्ष शासनव्यवस्था लागू होने के पश्चात यह परम्परा टूट गई। अब इस शासन में हिन्दुओं के केवल धनी मंदिरों को लूटने का एकसूत्री कार्यक्रम आरम्भ हुआ है। मंदिरों में पुजारियों को बदलना, धार्मिक कृत्य, प्रथा-परम्परा बन्द करने का कार्य भी सरकार करने लगी है। सरकार अधिगृहीत मंदिरों में श्री सिद्धिविनायक मंदिर (प्रभादेवी), श्री विठ्ठल-रुख्मिणी मंदिर (पंढरपुर), श्री साई संस्थान (शिर्डी), श्री तुलजापुर मंदिर आदि सब प्रमुख मंदिर तथा 3067 मंदिरों की व्यवस्था देखनेवाली ‘पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समितिÓ में सरकारी भ्रष्टाचार तथा अनुचित कामकाज को हिन्दू जनजागृति समिति ने प्रमाण के साथ समय-समय पर उजागर किया है।

उन भ्रष्टाचारों के विरुद्ध वैध मार्ग से अनेक आंदोलन और वैधानिक लडाई अभी भी जारी है ।
जाखोटिया का कहना है कि यदि मस्जिदों की व्यवस्था मुसलमानों के हाथ में है और चर्च की व्यवस्था ईसाई समाज के हाथ में है, तो मठों और मंदिरों की व्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में क्यों नहीं? उनपर सरकारी नियंत्रण क्यों? अब देश में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है। ऐसे समय सब राजनीतिक दल मंदिरों के सरकारीकरण के विषय में अपनी-अपनी नीति हिन्दू समाज के सामने स्पष्ट करें, यह आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति करती है ।